ज़्यादा पैसा ज़्यादा ख़ुशी, नई स्टडी
ज़्यादा पैसा, ज़्यादा चिंता का फंडा अब बदलता जा रहा है, प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस (PNAS) में प्रकाशित इस नई स्टडी के मुताबिक जितना ज्यादा उतनी ज़्यादा ख़ुशी। इस स्टडी में कहा गया था कि एक सीमा के बाद आपकी खुशी का स्तर रुक जाता है. लेकिन शोधकर्ताओं ने सोचा कि फिर से इस बारे में स्टडी की जाए. ताकि यह पता चल सके कि क्या ज्यादा पैसे की वजह से ज्यादा खुशी मिलती है.
हाल में की गई स्टडी के लेखक और सामाजिक शोधकर्ता मैथ्यू ए. किलिंग्सवर्थ ने कहा कि साल 2018 में एक स्टडी आई थी जिसमें कहा गया था कि अगर आप अमेरिका में हर महीने 60 से 75 हजार डॉलर कमाते हैं, तो आपकी खुशी का स्तर बेहतरीन रहता है. लेकिन स्तर के बाद यह खत्म होने लगता है. या फिर एक जगह पर रुक जाता है. इससे आपको किसी तरह का भावनात्मक सपोर्ट नहीं मिलता. लेकिन हमारी नई स्टडी में हैरान करने वाले परिणाम सामने आए हैं.
शुरुआती स्टडी में लोगों के आय और हैप्पीनेस रेटिंग को ट्रैक किया जा रहा था. लोगों से पूछा गया था कि वो पिछले कुछ दिनों में वो कितने खुश थे. इसकी रेटिंग करनी थी. लेकिन परिणाम उलटे आए. कोई ये ढंग से नहीं बता पाया कि वो क्यों और कब खुश थे. लेकिन जब उनसे पूछा गया कि पैसे की वजह से कोई खुशी मिली तो बोले- हां.
मैथ्यू ए. किलिंग्सवर्थ ने कहा कि लोगों के लिए यह बड़ा मुश्किल काम है कि वह पिछले किसी मौके पर मिली खुशी को याद रख सके. वो एक बार यह नहीं बता पाते कि उन्हें सबसे बड़ी खुशी कैसे मिली. लेकिन जब उसमें पैसे को जोड़ा जाता है तब उन्हें तत्काल याद आ जाता है. चाहे वह शॉपिंग हो, डिनर हो या कहीं घूमने जाना हो. क्योंकि आजकल लोग किसी भी खुशी को पैसे से तौलते हैं. अगर पैसा सही तरीके से खर्च हुआ है तो उन्हें उससे संबंधित मौकों की याद रहती है.
किलिंग्सवर्थ ने कहा कि लोग खुशी के असली मायनों को नहीं खोजते. लेकिन उन्हें कुछ पैसे खर्च करके या बचा कर कोई खुशी मिलती है, तो वो उन्हें कई सालों तक याद रहती है. वो वैसी चीजें बार-बार करना चाहते हैं. किलिंग्सवर्थ ने कहा कि इस स्टडी के लिए हमने एक हैप्पीनेस रेटिंग एप बनाया. जिसमें पूछा गया था कि आप अभी कैसा महसूस कर रहे हैं. आप अपनी जिंदगी से पूरी तरह से संतुष्ट हैं या नहीं. किलिंग्सवर्थ ने 17.25 लाख लोगों से यह डेटा कलेक्ट किया.
इन 17.25 लाख लोगों में से 33,391 लोग नौकरी करते थे. इनकी आय और खुशी का पैमान एक स्तर पर था. यानी जितना ज्यादा पैसा ये लोग कमाते थे, उतनी ज्यादा खुशी इन्हें मिलती थी. लोग ज्यादा पैसे को ज्यादा खुशी के साथ जोड़ते हैं. यह दैनिक स्तर पर भी है और जिंदगी को पूर्ण संतुष्टि देने के लेवल पर भी. फिर किलिंग्सवर्थ ने इसे गणनात्मक स्वरूप दिया. यानी संख्याओं के आधार पर खुशियों का पैमाना तय करने की कोशिश की.
मैथ्यू ए. किलिंग्सवर्थ ने कहा कि लोग खुशी के लिए, अपना दर्द कम करने के लिए और मनोरंजन का स्तर बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करते हैं. इसके लिए उन्हें ज्यादा पैसे चाहिए. क्योंकि कम पैसे से खुशियां नहीं हासिल की जा सकती. आप मनोरंजन नहीं कर सकते. आप चाहकर भी किसी प्रकार की भौतिक खुशी को हासिल नहीं कर सकते. अमेरिका में जिन लोगों की तनख्वाह या मासिक कमाई 60 से 80 हजार डॉलर है, उनमें दुख की मात्रा कम मिली. वो जिंदगी से संतुष्ट हैं. वो लगातार ज्यादा खुशियां या मनोरंजन हासिल करने के लिए पैसे खर्च कर पा रहे हैं.
किलिंग्सवर्थ का कहना है कि जिसके पास इतनी आय है कि वो ज्यादा से ज्यादा खर्च करके, खुद को खुश रख सकते हैं तो वो ये काम करने में हिचकते नहीं है. इससे आपके अंदर की निगेटिविटी भले ही थोड़े समय के लिए लेकिन कम होती है. लेकिन जो लोग ढंग से नहीं कमा पाते वो इतने प्रसन्न नहीं है. वो इतना मनोरंजन या खुशियां हासिल नहीं कर पाते. हालांकि इस स्टडी में पैसे और खुशियों का कोई कट-ऑफ प्वाइंट हासिल नहीं हो पाया. लेकिन आंकड़ें यह बताते हैं कि ज्यादा पैसे ही ज्यादा खुशियों लाती हैं.
किलिंग्सवर्थ ने यह भी बताया कि स्टडी में यह तय नहीं हो पाया है कि कमाई की कोई सीमा नहीं है. जिसके आधार पर आप खुशियों का निर्धारण कर सकें. लेकिन 60 से 80 हजार डॉलर्स महीना कमाने वाले लोग अमेरिका में खुश हैं. वो अपनी जिंदगी से पूरी तरह से संतुष्ट हैं.
साभार: आजतक