कोरोना, आर्थिक संकट LAC विवाद के लिए मोदी सरकार की नीतियां जिम्मेदार: सोनिया गाँधी
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोरोना महामारी, पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ तनाव को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस वर्किंग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के कुप्रबंधन और उसकी गलत नीतियों के कारण चीन के साथ सीमा पर मौजूदा संकट है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने कहा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कुप्रबंधन को मोदी सरकार की ‘सबसे विनाशकारी विफलताओं’ के तौर पर दर्ज किया जाएगा।
देश में फैली कोरोना महामारी के मुद्दे पर बोलते हुए सोनिया गांधी ने कहा, “इस समय की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि लोगों को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाए। गरीबों के हाथों में सीधे पैसे दिए जाने चाहिए। एमएसएमई को बचाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए, लेकिन ऐसा करने बजाय, सरकार ने एक खोखले वित्तीय पैकेज की घोषणा की, जो राजकोषीय घटक सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से भी कम था। सोनिया गांधी ने कहा, “प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद, जिन्होंने अपने हाथों में सभी प्राधिकरणों को केंद्रीकृत किया, महामारी जारी है। केंद्र ने राज्य सरकारों कोई भी वित्तीय मदद नहीं दी।”
सोनिया गांधी ने कहा कि कोरोना महामारी के बीच अब चीन के साथ एलएसी पर सीमा संकट गहरा गया है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अप्रैल-मई, 2020 से लेकर अब तक, चीनी सेना ने पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र और गालवान घाटी, लद्दाख में हमारी सीमा में घुसपैठ की है। अपने चरित्र के अनुरूप, सरकार सच्चाई से मुंह मोड़ रही है। घुसपैठ की ख़बरें और जानकारी 5 मई, 2020 को आई। समाधान के बजाय, स्थिति तेजी से बिगड़ती गई और 15-16 जून को हिंसक झड़पें हुईं। 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, 85 घायल हुए और 10 ‘लापता’ हो गए जब तक कि उन्हें वापस नहीं किया गया। प्रधानमंत्री के ब्यान ने पूरे देश को झकझोर दिया जब उन्होंने कहा कि “किसी ने भी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की”। राष्ट्रीय सुरक्षा और भूभागीय अखंडता के मामलों पर पूरा राष्ट्र हमेशा एक साथ खड़ा है और इस बार भी, किसी दूसरी राय का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। कांग्रेस पार्टी ने सबसे पहले आगे बढ़कर हमारी सेनाओं और सरकार को अपना पूरा समर्थन देने के घोषणा की। हालांकि, लोगों में यह भावना है कि सरकार स्थिति को संभालने में गंभीर रूप से असफल हुई है। भविष्य का निर्णय आगे आने वाला समय करेगा लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि हमारी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए सरकार के द्वारा उठाये जाने वाला हर क़दम परिपक्व कूटनीति और मजबूत नेतृत्व की भावना से निर्देशित होंगे। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि अमन, शांति और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पहले जैसी यथास्थिति की बहाली हमारे राष्ट्रीय हित में एकमात्र मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। हम स्थिति पर लगातार नजर बनाये रखेंगे।
उन्होंने कोरोना महामारी को लेकर कहा कि भारत में महामारी फरवरी में आयी। कांग्रेस ने सरकार को अपना पूरा समर्थन देते हुए लॉकडाउन 1.0 का समर्थन किया। शुरूआती हफ्तों के भीतर, यह स्पष्ट हो गया था कि सरकार लॉकडाउन से होने वाली समस्याओं का प्रबंधन करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी। जिसका परिणाम साल 1947-48 के बाद सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी के रूप में सामने आया। करोड़ों प्रवासी मजदूर, दैनिक वेतन भोगी और स्व-नियोजित कर्मचारी की रोजी रोटी तबाह हो गयी। 13 करोड़ नौकरियों के खत्म हो जाने का अनुमान लगाया गया है। करोड़ों सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम शायद हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। प्रधानमंत्री, जिन्होंने सारी शक्तियों और सभी प्राधिकरणों को अपने हाथों में केंद्रीकृत कर लिया था, उनके आश्वासनों के विपरीत महामारी लगातार बढ़ रही है। स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में गंभीर कमियां उजागर हुई हैं। महामारी शायद अभी भी सबसे ऊंचे पायदान पर नहीं पहुंची है। केंद्र ने अपनी सारी जिम्मेदारियां राज्य सरकारों पर डाल पल्ला झाड़ लिया, लेकिन उन्हें कोई अतिरिक्त वित्तीय सहायता नहीं दी गयी है। वास्तव में, लोगों को यथासंभव अपनी स्वयं की रक्षा करने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। महामारी के कुप्रबंधन को मोदी सरकार की सबसे विनाशकारी विफलताओं में से एक के रूप में दर्ज किया जाएगा। मैं पार्टी के अपने सभी कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देना चाहती हूं, जो अलग-अलग राज्यों में अपने जोखिम पर प्रवासी और अन्य प्रभावित लोगों को सहायता और मदद देने के लिए आगे आये।”
उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक बाजार में जब कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिर रही हों, ऐसे समय में सरकार ने लगातार 17 दिनों तक निर्दयतापूर्वक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि करके देश के लोगों पर पहले से लगी चोट और उसके दर्द को गहरा किया है। नतीजा यह है कि भारत की गिरती अर्थव्यवस्था 42 वर्षों में पहली बार तेजी से मंदी की ओर फिसल रही है। मुझे डर है की बेरोजगारी और बढ़ेगी, देशवासियों की आय कम होगी, मजदूरी गिरेगी और निवेश और कम होगा। रिकवरी में लंबा समय लग सकता है, और वह भी तब, जब सरकार अपनी व्यवस्था को ठीक करे और ठोस आर्थिक नीतियों को अपनाए।
बैठक में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा, “संकट से निपटने के लिए जिस साहस और परिमाण और प्रयास की आवश्यकता है, उससे महामारी का सामना नहीं किया जा रहा है। एक और उदाहरण सीमा पर संकट है, जो अगर दृढ़ता से नहीं निपटा गया तो गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। मैं सोनिया जी की टिप्पणी का भी समर्थन करता हूं।”