अमेरिका की जूनियर पार्टनर बनी मोदी सरकार: IPF
लखनऊ:
मोदी सरकार वैसे तो गुटनिरपेक्षता की जगह भारत की विदेश नीति का आधार रणनीतिक स्वायत्ता कहती है लेकिन सच्चाई यह है कि इस बार अमेरिकी दौरे में मोदी सरकार ने वस्तुतः अमेरिका का जूनियर पार्टनर होना स्वीकार कर लिया है। यह भारत के 70 साल के इतिहास में पहली बार हुआ है कि भारत सरकार ने अमेरिका में चीन के ऊपर हमला किया है जबकि इसके पहले भारत सरकार विदेश में कूटनीतिक भाषा में ही अपनी बात रखती थी। जहां तक तकनीकी और सेमीकंडक्टर चिप्स निर्मित करने की बात है वह महज एक छलावा है। गुजरात की कम्पनी में भारत को चिप्स बनाने की न तो तकनीकी देने और न ही डिजायन करने का अमेरिका से समझौता हुआ है। यह महज चिप्स की टेस्टिंग और असेंबलिंग करने का समझौता हुआ है। यह वक्तव्य आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति की हुई बैठक के आधार पर जारी किया गया। वक्तव्य को आइपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापूरी ने जारी किया।
विपक्षी एकता के बारे में कार्यसमिति का यह मानना है कि जैस-तैसे जोड़ तोड़ करके विपक्षी एकता बन भी जाए तो भी वह भाजपा को हराने का वांछित परिणाम नहीं हासिल कर सकता है। विपक्षी एकता का आधार विजन आधारित रोजगार, कृषि विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और पूंजी पर नियंत्रण जैसे मुद्दों पर बनी एकता पर ही हो सकता है। जन मुद्दों की उपेक्षा करके कोई भी विपक्षी एकता कारगर नहीं होगी।
समान नागरिक संहिता पर भी बैठक में चर्चा हुई और यह माना गया कि पर्सनल ला ही नहीं अन्य कानूनों में भी जो भेदभाव वाले कानून हैं उन्हें हटाने की जरूरत है। जैसे उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन कानून में लड़कियों को कृषि भूमि में अधिकार नहीं दिया जाता। उसी तरह मुस्लिम पर्सनल ला में लड़कियों को कृषि भूमि पाने के अधिकार से वंचित किया गया है। एक देश एक कानून का भाजपा का नारा विभाजनकारी और चुनावी गणित से संचालित है। भारत में जहां हजारों किस्म की शादी, विवाह और उत्तराधिकार जैसे मामलों में बड़ी भिन्नता मौजूद है वहां इस तरह के नारे का कोई मतलब नहीं है। इसीलिए पिछले विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में यह माना था कि न तो यह आवश्यक है और न ही वांछित है। पर्सनल ला और समान कानून में जो कानून समानता के अधिकार से लोगों को वंचित करते हैं, खासकर महिलाओं को, यदि उन्हें दूर करने में भाजपा की केन्द्र सरकार इच्छुक होती तो अब तक वह एक देश एक कानून की नारेबाजी की जगह समान नागरिक संहिता के ठोस प्रस्ताव का दस्तावेज जनता के सामने ले आती।