मनीष तिवारी का बुक बम: संयोग या साज़िश
तौक़ीर सिद्दीक़ी
राजनीतिक हलकों में एक बात मशहूर है कि कांग्रेस को हराने के लिए कांग्रेसी ही काफी हैं और इस तरह के कांग्रेसी जिनका शुमार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में होता है चुनाव के दौरान काफी एक्टिव हो जाते हैं. यह नेता चुनाव के दौरान बयानबाज़ी और अपनी किताबों का विमोचन करके अपनी पार्टी का बंटाधार करने में जुट जाते हैं.
कांग्रेस पार्टी के ऐसे ही एक नेता हैं जिनका शुमार भी सलमान खुर्शीद की तरह वरिष्ठ नेताओं में होता है, कई बार केंद्र में कैबिनेट मंत्री के पद को सुशोभित भी कर चुके हैं, नाम है मनीष तिवारी। उन्होंने भी एक किताब लिखी है, शीर्षक है ’10 Flash Points; 20 Years – National Security Situations that Impacted India’. अपनी इस किताब में मनीष तिवारी ने मुंबई हमले के लिए अपनी ही सरकार और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ज़िम्मेदार ठहराया है. उनका मानना है कि 9/11 के बाद मनमोहन सिंह को मोदी सरकार की तरह सर्जिकल स्ट्राइक करना चाहिए थी.
अपने “बुक बम” में उन्होंने अपनी ही सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुंबई हमले के बाद जो क़दम उठाने जाने चाहिए थे वह नहीं उठाये गए. मनीष तिवारी ने कहा कि संयम ताकत की पहचान नहीं, बल्कि कमजोरी की निशानी है. 26/11 एक ऐसा मौका था जब शब्दों से ज्यादा जवाबी कार्रवाई दिखनी चाहिए थी.’ हालाँकि उन्होंने इसपर सर्जिकल स्ट्राइक का उदाहरण न देकर अमेरिका के 9/11 हमले का दिया और कहा कि अमेरिका ने जैसी त्वरित कार्रवाई की थी, वैसी ही कार्रवाई की ज़रुरत थी.
ज़ाहिर सी बात है कि अब इसपर सियासत होना लाज़मी है, क्योंकि भाजपा के लिए यह मौका भी है और दस्तूर भी. उसे चुनावी मौकों पर ऐसे अवसरों की तलाश भी रहती है जो बैठे बिठाये उन्हें मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आज़ाद और मनीष तिवारी जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता देते रहते हैं. यह सभी वही नेता हैं जो कांग्रेस शासनकाल में सत्ता का एक लम्बा सुख भोग चुके हैं और अब हाशिये पर हैं। यह वह नेता हैं जो हरगिज़ नहीं चाहते कि कांग्रेस मज़बूत हो. यह समझना ही नहीं चाहते कि यह लोग अपनी पारी खेल चुके हैं और शायद इसीलिए चुनाव के समय इनका फ़्रस्ट्रेशन निकलता है.
अभी कुछ ही दिन पहले सलमान खुर्शीद हिंदुत्व की तुलना ISIS और बोको हराम से करके कांग्रेस की किरकिरी करवा चुके हैं और अब मनीष तिवारी जो एक तरह से मनमोहन सिंह की आलोचना की आड़ में नरेंद्र मोदी के गुणगान कर रहे हैं. आप इसे संयोग नहीं कह सकते। संयोग तो कभी कभार होने वाली घटना को कहते हैं मगर जब चुनिंदा समय पर लगातार ऐसी घटनाएं घटित होने लगें तो संयोग नहीं साज़िश कहलाई जाती हैं.
बेशक आप कह सकते हैं कि यह अभिव्यक्ति की आज़ादी है, पर यह आज़ादी एक ख़ास समयचक्र में क्यों नज़र आती है. क्यों यह आज़ादी आम दिनों में नहीं दिखाई देती. मनीष तिवारी यह पीड़ा 26/11 से अबतक अपने दिल में लिए हुए हैं. इतने बरस तक उनकी यह पीड़ा क्यों नहीं छलकी। क्यों उन्होंने इसके बाद भी सत्ता का सुख भोगा, क्यों नहीं उन्होंने मंत्रिपद से इस्तीफ़ा दिया। आज जब पंजाब का चुनाव सिर पर तो उन्होंने अपना “बुक बम” पार्टी पर फोड़ा है. ऐसा करके वह किसकी मदद करना चाहते हैं, अपनी या फिर भाजपा की.
वैसे तो पांच राज्यों के चुनाव होने वाले हैं लेकिन भाजपा के लिए यूपी का चुनाव सबसे अहम् है और काले कृषि कानून वापसी के बाद पंजाब में भी अब अकालियों के साथ पुनर्गठ्जोड़ की बातें होने लगी हैं , ऐसे में सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी के “बुक बमों” को इन दोनों राज्यों के चुनावों से अलग करके नहीं देखा जा सकता। सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब से यूपी चुनाव में भाजपा को ध्रूवीकरण का एक मुद्दा दिया है तो वहीँ मनीष तिवारी की किताब ने पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को घेरने का मौका दिया। अब आप इसे भले ही संयोग मानें पर मैं तो साज़िश ही कहूंगा