कोरोना की नकारात्मकता में सकारात्मकता की तलाश
ज़ीनत शम्स
दुनिया में लगभग 7. 8 अरब इंसान रहते हैं, इंसानों से अलग भी दुनिया में लगभग 8.7 करोड़ विभिन्न प्रकार की प्रजातियां रहती हैं जिनमें तरह तरह के जंगली जानवर, पक्षी. रेंगने वाले, पानी में रहने वाले जीव जंतु| लेकिन इस दुनिया को सबसे ज़्यादा नुक्सान इंसान ने ही पहुँचाया है| मानव ही मानवजाति का सबसे बड़ा दुश्मन है | बहुत से जानवरों का डीएनए (हाथी , घोड़ा, गाय, चीता आदि) मानव से बहुत क़रीब है | इनकी संवेदना और व्यवहार का पैटर्न भी इंसानों से बहुत मिलता हुआ है, जानवर न तो रेप करते हैं और न ही हत्या|
इतिहास गवाह है कि हमेशा मानव ने ही मानव जाति को दुनिया से मिटाने के लिए विनाशकारी हथियार बनाये| इस दुनिया में करोड़ों प्रजातियां हैं जो आराम से रहती हैं | इंसान कौन होता है यह फैसला करने वाला कि कौन यहाँ रहेगा और कौन नहीं? मानव जाति ने ही अपने भौतिक सुख के लिए प्रकृति का विनाश किया, जानवरों पर अत्याचार किया, जंगलों को समाप्त किया| औद्योगिक विकास के लिए कल कारख़ाने लगाए , वाहन बनाये, जहाज़ उड़ाए | कारखाने की गन्दगी से नदियाँ मैली हुईं, सागर तटों को बंदरगाहों और सैलानियों ने गन्दा किया | हमारा वातावरण बहुत प्रदूषित हो गया था| प्रकृति भी हवा, पानी, पेड़, पौधे, जीव, जंतु सबसे मिलकर ही चलती है|
मानव को अपने ऊपर बहुत घमण्ड हो गया था कि वह तो दुनिया पर राज कर सकता है| वही दुनिया का मालिक है| बड़ी बड़ी मिज़ाइलें, परमाणु बम सभी धरे रह गए| एक छोटे से रोगाणु ने दुनिया को रोक दिया| अब स्थिति यह है दुनिया के बड़े बड़े देश जो दुनिया को अपनी मुट्ठी में क़ैद करना चाहते थे आज कोरोना के भय से घरों में क़ैद हैं| एक माइक्रोस्कॉपिक वायरस ने इन्हें बता दिया कि तुम कितने लाचार और मज़बूर हो |
पांच महीने पहले शुरू हुई इस महामारी में 44 लाख लोग बीमार हो चुके है और अब तक तीन लाख लोग अपनी जान गँवा चुके हैं|
अगर हम ध्यान दे तो हमें पता चलेगा कि जब जब मानव का वन्य जीवियों पर अत्याचार बढ़ा है तब तब वायरस और संक्रमण जैसी महामारियों ने जन्म लिया है| प्रकृति को इंसान की ज़रुरत नहीं , वह अपना उपचार स्वयं कर लेती है | यह हमने देखा है कि इंसान घरों में क़ैद है तो धरती और आसमान सब अपने आप ठीक हो रहे हैं |
दुनिया की आधी जीडीपी प्रकृति पर निर्भर है| हम प्रकृति का दोहन तो करते हैं लेकिन उसको बचाने के लिए कुछ नहीं करते| एक पेड़ को काटने पर 6 पेड़ों को लगाना चाहिए लेकिन क्या हम ऐसा करते है और गर अगर करते हैं तो सिर्फ कागज़ी योजनाओं में| गंगा की सफाई में कितना पैसा खर्च हुआ, क्या वास्तव में हुआ ? क्या गंगा साफ़ हुई? हां! साफ़ हुई मगर सरकारी कोशिशों से नहीं प्रकृति से प्रयास से निर्मल हुई |
जब दुनिया में आर्थिक असंतुलन बढ़ जाता है और ग़रीब तक उसकी ज़रुरत का धन नहीं पहुँचता तो भी महामारी आती है | आर्थिक व्यवस्था को चलाने वालों को इस बारे में सोचना होगा |
- कोरोना वायरस ने हमें अवसर दिया है कि हम घर पर रहकर अपनी ग़लतियों के बारे में जानें और उनसे सीखें, उन्हें सुधारकर प्रकृति को सबके रहने लायक बनाएं| मानव दुनिया का मालिक नहीं मेहमान है | दुनिया का मालिक वही है जिसने इस दुनिया को बनाया है|
- भौतिकतावाद को बदलें| ज़िन्दगी जीने के लिए हमें भौतिक वस्तुओं की कितनी ज़रुरत है यह हमें लॉकडाउन ने बता दिया है|
- अपने लोगों के साथ रहें, परिवार के साथ समय व्यतीत करें |
- हम बिना जंक फ़ूड के भी रह सकते हैं |
- सोचिये, जब हम अपने घरों में बंद हैं तो कैसा महसूस कर रहे हैं| ऐसा ही वह जानवर भी महसूस कर रहे होंगे जो चिड़िया घरों में मनोरंजन का सामान बने हैं |
- सोशल नेटवर्किंग ज़रूरी है लेकिन इसके साथ ही यह नकारात्मकता और डर फैलाती हुई महसूस होती है|
- इंटरनेट ज़रूरी है लेकिन इसका कहाँ अधिक इस्तेमाल हो रहा है यह भी आपने लॉकडाउन के समय पढ़ या सुन लिया होगा |
- उन लोगों को भी देखिये जो करोड़ों कमाते है लेकिन मानवता को कुछ नहीं देते | कोरोना वायरस ने हमें बता दिया कि मीज़ाइल और परमाणु बम से कोई दुनिया पर राज नहीं कर सकता |
- पैसा और प्रसिद्धि सदा साथ नहीं देगी लेकिन हमारा शरीर सदा हमारे साथ रहेगा, अंत समय तक, जो ईश्वर की देन है|
- एक्टर हमारा मनोरंजन करते हैं लेकिन हमारे समाज के असली हीरो तो डॉक्टर हैं और सच में वह दुनिया में इंसान रुपी भगवान् हैं ( इस विषय पर बहस हो सकती है)
- हमें अपनी साफ़ सफाई की आदतों को बढ़ाना होगा| एक स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छता बहुत ज़रूरी है |
- व्यायाम को आदत बनाना होगा क्योंकि किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज़रूरी होती है |
- खान पान को सुधारना और संतोष को अपनाना होगा |
दुनिया के सभी देशों को स्वास्थ्य का बजट बढ़ाना होगा, नागरिकों को स्वास्थ्य के प्रति सचेत करने होगा, स्कूल कालेजों में फिजिकल एजुकेशन को अनिवार्य बनाना होगा क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है|
और अंत में एक बात! नकारात्मकता में भी सकारात्मकता को तलाशें| कोरोना ने बेशक दुनिया को बहुत डराया है, लोगों में निराशा फैलाई है, हताशा बढ़ाई लेकिन अगर ज़रा ग़ौर से देखें और सोचें तो हम पाएंगे कि कोरोना के कारण काफी कुछ सकारात्मक भी हुआ है, बस इसी सकारात्मकता को पकड़िए और नकारात्मकता को छोड़िये| जब यह तय ही हो गया है कि हमें कोरोना के साथ ही जीना है तो क्यों न अच्छा सोचें?