खानए काबा दुनिया में खुदा के जलाल व जमाल का आईना
मोहम्मद आरिफ नगरामी
खानए काबा क्या है, इस दुनिया में अर्शे इलाही का साया है, यह रहमतों और बरकतों का खजाना है, यह खुदा के जलाल व जमाल का आईना है, यह तौहीद का मरकज और हकपरस्ती का सरचशमा है। यह रूहानी इल्म व मारफत का मौजज़न दरिया है, जहां से पूरा आलम सैराब होता है। यह तजल्लियाते रब्बानी का वह दमकता हुआ सूरज है जिसके नूर से कायनात का जर्रा जर्रा दरख्शां है, यह ऐसी मकनातीसी ताकत है जिसकी तरफ लोग बेताबाना खिचें चले आते हैं। इस दुनियाये आब व गिल का यह नुक्तये आगाज है। यह बैते मामूर है और अजल से खुदापरस्ती का मरकज है।
बडे़ बड़े पैगम्बरों ने इसकी जियारत से आंखें सेंकी और उसके नूर से अपने दिल को मुनव्वर किया। बैतुल मकदिस से पहले यही इबादतों का किबला बना रहा। (दुनिया के बुतकदे मेें पहला वह घर खुदा का) इस बैते अतीक (पुराने घर) को हजरत इब्राहीम अलै0 और हजरत इस्माईल अलै0 ने पुरानी बुनियादों को ढॅूढ कर नये सिरे से तामीर किया। हमने इब्राही अलै0 के लिये इस घर की जगह को ठिकाना बनाया था।
इस तामीर के बाद हजरत इब्राहीम अलै0 जब हज की पुकार बलंद करते हैं तो इस पुकार को ऐसी मकबूलियत हासिल होती है कि वही घर तमाम अहले अरब का मरकज बन जाता है। हजरत इब्राहीम अलै0 की पुकार से अरब के गोशे गोशे के लोग लब्बैक लब्बैक कहते हुये खिंचे चले आते हैं। ढाई हजार बरस तक यह घर अमन का ऐसा गहवारा बना रहता है कि उसके गिर्द व पेश सारे मुल्क मेें कुश्त व खून का बाजार गरम होता है, मगर इसके हुदूद मेें किसी को किसी पर हाथ उठाने की हिम्मत नहंी होती और इसी घर के बदौलत अरब को हर साल चार महीने ऐसे मुयस्सर आ जाते हैं जिनमें काफिले इतमिनान से सफर करते हैं, तेजारत चमकती है और बाजार लगते हैं, फिर इस घर का यह दबदबा था कि इस पूरे मुद्दत में कोई बडे से बडे जालिम और जब्बार भी उसकी तरफ आंख उठा कर न देख सका और जिस ने यह जुर्रात की वह अल्लाह के गजब का ऐसा शिकार हुआ कि इबरत बन के रह गया।
खानए काबा वह मरकजे रूहानी है जहां आकर कौमें जबानें और तहजीबेें अपने इम्तेयाजात को खो देती हैं और अपना रूप रंग मिटा कर तहजीबे इब्राहीमी में मदगम हो जाती हैं। यह अमन का घर है, यह मिल्लते इब्राहीमी और दावते मोहम्मदी का मंबा है। यह इस्लाम का गहवारा है, यहां पूरी इस्लामी बिरादरी एक ईकाई है। यह एक सालाना रूहानी इजतेमा और बैनलअकवामी दीनी काफ्रेंस है, यह तजल्ली गाह, खुदावन्ती और मनारये इस्लाम है जिसकी जूफेशां किरनों से पूरी कायनात मुनव्वर है।
मुसलमान जहां कही रहता हो, जो जबान चाहे बोलता हो, जो लेबास चाहे पहनता हो, जिस रंग व नस्ल से तअल्लुक रखता हो, जिस हाल में रहता हो, यही उसका रूहानी मसकन है। इसी से इसकी किस्मत वाबस्ता है। इसका दिल व जान इसी पर फिदा होने के लिये बेकरार रहती है। इसी मयकदे तौहीद के वह वलवलये ताजा लेता है और बेपायां मोहोब्बत के कम से कम खुम चढ़ाता है, वह शौक के परदों से उड कर यहां पहुंचना चाहता है।
अल्लाह तआला की हिकमत और रसूले करीम सल0 की वसीयत, ने महरे तसदीक सब्त कर दी है। इस्लाम को अलावा यहां कोई दीन व मुल्क न रहे और इस एक किबले के सिवाय कोई दूसरा किबला न हो, इस सर जमीन में अल्लाह वाहिद के सिवाय किसी का सजदा न हो, एक र्कुआन के अलावा किसी दूसरे सहीफे जिन्दिगी पर ईमान लाने वालों का यहां गुजर न हो और ता केयामत यह इस्लाम का बेआमेजा चश्मये हेयात बना रहे, कुफ्र व शिर्क की नेजासतों से पाक रहे, यह ईमान की वह भट्ठी बना रहे, जो अखलाक व किरदार को कुन्दन बनाती रहे। अकीदे का पुख्तगी, नजर को ताबंदगी, फिक्र को रोशनी, और रूह को पाकीजगी बख्शती रहे।
खुदा की मशीअत हुयी कि यह मुबारक खित्तये जमीन इन्सानी आबादियों के लिये उमुल्ल व कुरा बन जाय और एक छोटा सा चौकोर घर दुनिया जहां की मजिस्दों की मां बना रहे।
पहाडों से गिरी यही बेआब व गयाह, सरजमीने हजरत आदम अलै0 का पहला पड़ाव था, यहां कहीं शायद (अरफात) में उनकी मुलाकात हव्वा से हुयी थीं। हजरत इब्राहीम अलै0 ने उसको शाद व आबाद किया था, हजरत इस्माईल अलै0 और हजरत हाजरा ने इस वीराने को गुलो गुलजार बना दिया था। शीश अलै0 यहीं आये थे, नूह अलै0 ने इसी का तवाफ किया था, हूद और सालेह अलै0 ने यहीं पनाह ली थी। इस मुकद्दस सरजमीन को मोहम्मद सल0 मौलिद व मसकन बनना था। इसी से मुत्तसिल सफा भी है और वह मरवा जहां बूढे बाप हजरत इब्राहीम अलै0 ने जवान बेटे हजरत इस्माईल अलै0 की कुर्बानी की थी, यह चाहे जमजम है जो शीरख्वार इस्माईल अलै0 के पैरों की रगड़ से इस तरह उबल पडा था कि आज तक उबला चला जा रहा है। इसी के पड़ोस में मिना, मुजदलफा और अरफात भी है, इसी काबा के मशरिकी कोने मेें वह हजरे असवद भी है जो हजरत इब्राहीम अलै0 इस्माईल अलै0 और मोहम्मद सल0 के मुकद्दस हाथों और लबों का बोसा लेता रहा है, यहीं जिबरईल अलै0 बुर्राक लेकर आये थे, इसी शहर में गारे हेरा भी है, जहां आखिरी बार हिदायत की किरनंे फूटीं थीं, इसी मुकद्दस घर के सेहन में रसूले कायनात सल0 ने जिन्दिगी के 53 साल बसर किये थे, इन्हीं की फिजाओं और हवाओं में वहीये इलाही के पाकीजा बोल अब भी सुने जा सकते हैं। यहां का हर जर्रा नैयरे काबा और हर कतरा निसाने, गौहरे बदख्शां हैं। यहां का हर गली, हर नुक्कड, हर राह व मन्जिल यह अजमते इस्लाम की कहानी है। यहां की शौकत और यहां के जलाल के सामने आंखें नीची हो जाती हैं, यहां अकीदत व एहतेराम से सर अपने आप झुक जाता है। यहां आकर शाहों और जब्बारों के खितवत व तमकिनत इज्ज व इन्केसार का लेबादा ओढ़ लेती है। यहां के दास्तान इश्क व वफा से ईमान के खून में हरारत पैदा होती है।
यही अल्काबतुल मुशर्रफा इसलाम की अब्दियत, कुल्लियत और वहदत का खुला हुआ मोजिजा और अल्लाह के जमाल व जलाल का आईना फैजाने नुब्बूवत की जलवागाह और एहसान व तजकिया का पावर हाउस यहां की एक नमाज दूसरी मसाजिद की एक लाख नमाजों से बढ कर है।
आकाश के नीचे और जमीन क ऊपर यकीनी तौर पर दुनिया की अफजलतरीन जगह खानए काबा है। इमामे हनीफा, इमामे शाफई, इमाम अहमद हंबल, मक्का मुकर्रमा को दुनिया का सबसे अफजल तरीन खित्तये जमीन, तस्लीम करते हैं, अल्बत्ता इमामे मालिक की राय में दुनिया का अफजलतरीन जमीन वह है जहां रहमतुल्लिलआलमीन आराम फरमा रहे हैं, यानी रौजये रसूल।
खुदा के इस घर का हज किया जाता है। इस्लाम का पांचवां रूक्न य हीं अन्जाम दिया जाता है, सुन्नते इब्राहीमी और तौहीदे खालिस का मुजाहिरा जिस शान के साथ कदम कदम पर यहां होता है, कहीं और नहंी होता। बन्दे की चाहत और वफूरे शौक को देख कर उसे घर बुलाया जाये तो महबूब का दीदार न सही, काबा की जियारत को मुमकिन बनाया जाता है। यहां पहुचं कर बन्दे को जो कल्बी सुकून मिलता है उसको बयान नहीं किया जा सकता ।