हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला शरीयत में हस्तक्षेप, AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट में किया चैलेन्ज
टीम इंस्टेंटखबर
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक अहम् मीटिंग में कर्नाटक के हिजाब विवाद पर विस्तार से चर्चा हुई, बैठक में शामिल शामिल सभी लोगों का यह मानना है कि कर्नाटक के उडुपी स्कूल के हिजाब विवाद पर अदालत का फैसला न केवल संविधान की धारा 151 के खिलाफ है बल्कि संविधान की धारा 14, 19, 21 और 25 के भी खिलाफ है. बैठक की अध्यक्षता हजरत मौलाना सैयद मोहम्मद रबी हसनी नदवी ने की
बैठक में कहा गया कि देश का संविधान हर नागरिक को अपनी पहचान और सम्मान के साथ जीने का अधिकार और शिनाख्ती आज़ादी का हक़ देता है. बोर्ड का मानना है कि यह फैसला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है बल्कि उन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के अधिकार से भी वंचित करता है.
बोर्ड मेम्बरान ने इस बात पर भी गहरी चिंता व्यक्त की कि इस निर्णय से मुस्लिम छात्रों के शिक्षा के अधिकार पर असर पड़ेगा। यह निर्णय मुस्लिम छात्रों के लिए यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि वे किस शिक्षा और हिजाब को किसको प्राथमिकता दें । हालांकि यह फैसला अडुपी (कर्नाटक) की स्कूली छात्राओं के व्यक्तिगत अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा था लेकिन अब इसे कर्नाटक के सभी स्कूलों, जूनियर कॉलेजों और बोर्ड परीक्षाओं तक बढ़ा दिया गया है, जो बेहद निंदनीय और शर्मनाक है।
वर्किंग कमेटी का मानना है कि उच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर बोलते हुए यह भी फैसला सुनाया दिया कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इस पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कार्यसमिति ने कहा, “क्या अब अदालतें तय करेंगी कि किस धर्म कौन सी बात अनिवार्य है और कौन सी नहीं?” कार्यसमिति इस संबंध में स्पष्ट करना आवश्यक समझती है कि किस धर्म कौन सी बात अनिवार्य है और कौन सी नहीं, ये तय करने का अधिकार अदालतों को नहीं बल्कि उस धर्म के धर्मगुरुओं और स्कालर्स को है. इसी तरह, भारत के संविधान के आलोक में, प्रत्येक व्यक्ति को यह तय करने का अधिकार है कि उसके धर्म ने उसके लिए क्या अनिवार्य किया है और क्या नहीं।
बोर्ड की वर्किंग कमेटी को इस बात पर भी घोर आपत्ति और चिंता है कि अदालतें अब मनमाने ढंग से पवित्र पुस्तकों की व्याख्या कर रही हैं, भले ही उनके पास ऐसा करने का न तो अधिकार है और न ही वह इसके योग्य है । कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले ने यह भी आशंका जताई है कि भविष्य में अन्य धार्मिक पहचानों, जैसे पगड़ी, क्रॉस और बिंदियों आदि पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
कार्य समिति ने उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने के बोर्ड के निर्णय का पुरजोर समर्थन किया और इस बात पर भी संतोष व्यक्त किया कि बोर्ड की याचिका दो महिला सदस्यों द्वारा दायर की गई थी और एक याचिका बोर्ड द्वारा ही दायर की गई। कार्यसमिति ने कर्नाटक सरकार से मांग की कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर स्कूल आने परीक्षा देने से न रोके।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्य समिति ने समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए उत्तराखंड राज्य विधानसभा द्वारा विशेषज्ञ समिति के गठन को असामयिक और असंवैधानिक करार दिया। बोर्ड को लगता है कि भारत जैसे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक देश में समान नागरिक संहिता की मांग करना धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के समान है। भारत का संविधान नागालैंड और मिजोरम की नागा और कोकी जनजातियों को आश्वासन देता है कि भारत की संसद ऐसा कोई कानून नहीं बनाएगी जो उनके धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों और परंपराओं को निरस्त कर दे।
कार्य समिति यह समझती है कि समान नागरिक संहिता वास्तव में अल्पसंख्यकों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने की दिशा में पहला कदम है। कार्य समिति को लगता है कि यह वास्तव में हिंदुत्व के बड़े एजेंडे का एक प्रमुख हिस्सा है जिसके द्वारा वह देश में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक इकाइयों को बहुसंख्यक के धर्म और संस्कृति में जबरन एकीकृत करना चाहता है। कार्यसमिति यह समझती है कि बहुलता में एकता ही भारत की असली ताकत और पहचान है और इसे खत्म करने का कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयास देश में अराजकता और अस्थिरता को ही जन्म देगा। कार्यसमिति समझती है कि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है और देश के सभी न्यायसंगत लोगों और धार्मिक इकाइयों को इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए।
इस बैठक की कार्यवाही का संचालन बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने किया।