देश की तरक्की के लिए कारपोरेट अर्थव्यवस्था पर नकेल लगाना ज़रूरी: अखिलेन्द्र
- तीनों कानूनों की वापसी पर कम पर समझौता नहीं
- एआईपीएफ और मजदूर किसान मंच करेगा संवाद और किसान आंदोलन के समर्थन में प्रतिवाद
5 दिसम्बर 2020, गहरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही कारपोरेट अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मोदी सरकार ने किसान विरोधी तीन अध्यादेशों को संसद में घोर गैर लोकतांत्रिक ढंग से पारित करके कानून बना दिया। इसी तरह मजदूर विरोधी लेबर कोड बनाकर लम्बे संघर्ष के बाद हासिल सभी अधिकारों को रौंद दिया गया। यहां तक कि 8 घंटे की जगह उनके काम के घंटे 12 करने की व्यवस्था कर दी गई। दरअसल मोदी सरकार देश के आम नागरिकों के खिलाफ अडानी-अम्बानी जैसे पूंजीपतियों के लाभ के लिए हमला कर रही है। इसका नागरिकों के सभी हिस्सों द्वारा मिलकर मुकाबला करना चाहिए। ये बातें किसान विरोधी कानूनों की वापसी पर जारी किसान आंदोलन के सक्रिय समर्थन के लिए आयोजित आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की वर्चुअल बैठक में अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहीं।
उन्होंने कहा कि ये जो तीन किसान विरोधी कानून है उसमें पहला आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 यह कहता है कि कोई भी एक पूंजीपति या पूंजीपतियों का समूह गेंहू, चावल, दाल, तिलहन, सब्जी समेत जितना भी कृषि उत्पाद है उसको खरीद कर रख सकता है और सरकार उसके ऊपर किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं रख सकती। कहने का मतलब यह है कि यदि अम्बानी फसल उत्पादों की जमाखोरी जितनी चाहे करे, सस्ते दर पर किसानों से फसलें खरीदें और जितने ऊंचे दाम में बेचना चाहे बेच सकता है। इससे बेइंतहा महंगाई बढ़ेगी, उपभोक्ता समेत आम नागरिक तबाह हो जायेगा। साफ है कि इस कानून में किसानों को लूटने के सिवा और कुछ नहीं मिलना है। दूसरा कानून कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून 2020 है जो कांट्रैक्ट फार्मिंग का कानून है। इस कानून में पूंजीपति जिस रूप में चाहे किसानों से समझौता करने के बाद उनकी खेती लेकर खेती कराए और अगर वह पूंजीपति मनमानी करे तो उसके खिलाफ किसान कोर्ट में मुकदमा भी नहीं कर सकता। अंग्रेजों ने भी इतना काला कानून बनाने का साहस नहीं किया था जितना मोदी सरकार कर रही है। तीसरे कानून कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 में निजी क्षेत्र को फसलों को खरीदने का पूरा अधिकार है इसमें सरकार पूंजीपतियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए बाध्य भी नहीं कर सकती है।
अखिलेन्द्र ने कहा कि दरअसल सरकार की मंशा है कि वह कृषि बाजार को पूरी तौर पर कारपोरेट के हवाले कर दे। जबकि देश की अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए किसानों और नागरिकों के लिए यह जरूरी था कि सरकार फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए कानून बनाती और फसलों की खरीद और भुगतान की गारंटी करती। ज्ञातव्य है कि किसान लम्बे समय से स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार फसलों के लागत मूल्यों के डेढ़ गुना ज्यादा दाम पर भुगतान करने की मांग कर रहे हंै। आज जरूरत किसान व नागरिक प्रतिनिधियों को लेकर बड़े पैमाने पर सहकारी समितियों के निर्माण की थी, जिससे सरकारी तंत्र द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को भी रोका जाता तथा गांव व कस्बा स्तर पर फसलों की खरीद और स्टोरेज की व्यवस्था की जाती और नागरिको की खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी मजबूत किया जाता। इसके लिए सरकार को कृषि मद पर बजट में ज्यादा खर्च करने की जरूरत थी जिससे सरकार बच रही है। यह सभी को मालूम है कि अंतराष्ट्रीय पूंजी और देशी-विदेशी पूंजीपतियों के दबाब में अटल बिहारी सरकार के जमाने में राजकोषीय घाटे को 3 प्रतिशत से ज्यादा न करने के लिए राजकोषीय जबाबदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 लाया गया था, आज उसे भी तत्काल रद्द करने की जरूरत है।
अखिलेन्द्र ने कहा कि यह दुनिया ने देखा है कि बाजार अर्थव्यवस्था से नागरिकों का भला नहीं हुआ। यहां तक कि कोविड महामारी में भी बाजार अर्थव्यवस्था के पैरोकार अमेरिका व यूरोप में लोगों की कैसे मौतें हुई यह जगजाहिर है। इसलिए किसान समेत आम नागरिकों की जिदंगी बचाने और देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए यह जरूरी है कि कारपोरेट अर्थव्यवस्था पर नकेल लगाई जाए और शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार पर खर्च बढाया जाए। इसे करने की जगह मोदी सरकार ने जनता पर हमला बोल दिया है। किसानों पर उत्पीड़न, दमन, उनके आंदोलन के विरूद्ध षडयंत्र और कुप्रचार लगातार चलाया जा रहा है। हमें यह याद रखना होगा कि नागरिकों पर हमले के लिए ही भाजपा और आरएसएस हिन्दु-मुस्लिम कार्ड खेल रही है। इससे सचेत रहना होगा और सभी तबकों के बीच एकता बनाए रखनी होगी। हर हाल में जनविरोधी, किसान उत्पीड़न सम्बंधी तीनों काले कानून निरस्त कराने, काम के घंटे 12 करने वाले व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशाएं कोड समेत चारों लेबर कोड वापस कराने, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 और सभी काले कानूनों के निरस्तीकरण के लिए लड़ना होगा। बैठक में निर्णय हुआ कि मजदूर किसान मंच और आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट इन सवालों पर जनता के साथ संवाद कायम करेगा और किसानों के जारी आंदोलन के साथ मिलकर अपना प्रतिवाद दर्ज करायेगा। बैठक में एआईपीएफ बिहार प्रवक्ता व पूर्व विधायक रमेश सिंह कुशवाहा, लाल बहादुर सिंह, यूपी के अध्यक्ष डा. बी. आर. गौतम, महासचिव डा. बृज बिहारी, शगुफ्ता यासमीन, उपाध्यक्ष उमाकांत श्रीवास्तव, राजेश सचान, ई. दुर्गा प्रसाद आदि ने अपनी बात रखी। बैठक की अध्यक्षता एआईपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी ने और संचालन दिनकर कपूर ने किया।