इरम और बानी-ए-इरम
प्रोफेसर डाक्टर अब्दुल हलीम क़ासमी
प्रिंसिपल इरम यूनानी मेडिकल काॅलेज, लखनऊ
इरम यूनानी मेडिकल काॅलेज व हाॅस्पिटल शहरे लखनऊ की एक मुअतबर, इल्मी, फन्नी, तहज़ीबी और सकाफती सोसाइटी इरम एजुकेशनल सोसाइटी के ज़ेरे एहतिमाम चलने वाला तिब्बे यूनानी का एक शोहरतयाफ्ता और अवाम व तलबा के माबैन मक़बूल तरीन इदारा है। यह इदारा मिनस्ट्री आॅफ आयूष के तहत एक बावक़ार कमीश्न, नेशनल कमीश्न फाॅर इन्डियन मेडिसन से मंज़ूर शुदा और उसके तमाम कवानीन का पासदार है।
इरम यूनानी मेडिकल काॅलेज मैदाने तिब में क़दम रखने वालों की आरज़ूओं और तमन्नाओं की तकमील और उनकी तामीर है, यहाँ कामयाबी व कामरानी के मसालक और मतलूब व मक़सूद की मनाज़िल की तरफ़ रहनुमाई की जाती है।
यह इदारा खूबसूरत कैम्पस के साथ साथ वसी व अरीज़ अराज़ी पर मुहीत है जिसमें कुशादा एकेडमिक बिल्डिंग, हाॅस्पिटल, हज़ारों किताबों से आरास्ता पैरास्ता मरकज़ी लाईब्रेरी और तलबा व तालिबात की रहाईश के लिए अलाहेदा अलाहेदा दारूल अक़ामा (हाॅस्टल) भी मौजूद हैं।
इस इदारे की बुनियाद 2004 में डाक्टर ख्वाजा सै0 मो0 यूनुस साहब और उनके लाएक़ व फाएक़ फरज़न्दान की मेहनतों और अन्थक कोशिशों से अपने वक़्त के उल्मा कुबर ‘‘जिसमें सरे फहरिस्त मौलाना सै0 राबे हस्नी नदवी रह0 हैं’’ और दीगर मुअक़रीन और मुअज़ज़ीन शहर की मौजूदगी में बड़े ही तज़क व एहतिशाम के साथ रखी गई। जिसका वाहिद मक़सद क़ौम के नौनिहालों को तालीम व तालीम के ज़ेवर से आरास्ता व पैरास्ता करके उनको कामयाबी और कामरानी के आला मुक़ाम पर फ़ाएज़ किया जा सके।
यह इदारा 2006 से तादमे तहरीर रोज़ ब रोज़ कामयाबी की मंज़िल तय करता आ रहा है।
इस इदारे के बानी डाक्टर ख्वाजा सै0 मो0 यूनुस मरहूम हैं जिनको तालीमी मैदान में सर सैय्यद अवध के नाम से मौसूम किया जाता है, ख्वाजा साहब सैकड़ों किताबों के मुसन्फ़ि, मुख्तलिफ़ हुकूमती व ग़ैर हुकूमती एवार्ड याफ्ता, शहरे लखनऊ व एतराफ़ की एक माया नाज़ शख़्सियत, दूरअन्देश, दीनी व असरी उलूम से बेहरावर, इल्म व अमल का हसीन संगम, मुकारम एख़लाक़ व मुहासिन एखलाक़ का बेहतरीन मजमुआ, अज़ीम उल मर्तबत और ग़ैर मामूली ज़हानत व फतानत के मालिक थे।
1947 के बाद सैकड़ों अफ़राद ने तालीमी मैदान में तबा आज़माई की और हिन्दुस्तान के हर खित्ते और हर इलाक़े में स्कूलस, काॅलेजिज़, यूनिवर्सटियाँ, मदारिस, मकातिब और दीगर इदारे क़ायम किये। इन बानियान और क़ौम के तईं फिक्रमन्द अफराद में एक नाम डाक्टर ख्वाजा सै0 मो0 यूनुस का भी आता है, जिन्हांेंने सर ज़मीन लखनऊ व एतराफ़ में तालीम व तालीम का वह जाल बिछाया है कि अक़्ल हैरान व शशद रह जाती है। बाज़ अकाबिर का कहना है कि आज़ाद हिन्दुस्तान में किसी फर्द वाहिद ने इतना बड़ा तालीमी कारनामा अन्जाम नहीं दिया। प्रोफेसर आसिफ़ा ज़मानी, सदर शोबाए फ़ारसी लखनऊ यूनिवर्सीटी ख्वाजा साहब के बारे में रक़मतराज़ हैं कि ‘‘जो शख़्स मौजे हवादिस से हंसते खेलते गुज़र जाने का हुनर जानता हो और कामयाबियाँ उसकी क़दम बोस हों’’ उस शख़्स का नाम ख्वाजा यूनुस है। डाक्टर खलीक अन्जुम, जनरल सिक्रेट्री अन्जुमन ए तरक़्क़ी उर्दू नई देहली फरमाते हैं ख्वाजा यूनुस गोश्त पोश्त के नहीं बल्कि लोहे के बने हुए इन्सान हैं, जब वह किसी काम का इरादा करते हैं तो उनके आहनी अज़्म के आगे कोई चीज़ रूकावट नहीं बन सकती है। शम्स फरूख़ाबादी मुक़ाला निगार आकाशवाणी लखनऊ का कहना है कि ‘‘हैरत होती है कि एक बेयार व मददगार शख़्स, खुद अंधेरे में रह कर इतनी रौशन कलीदें कैसे रौशन कर डालता है, बिला शुबाह यह जहदे मुसलसल की ही करामात हैं’’।
ख्वाजा साहब ने 1970 में अपनी बेटी इरम बानों के नाम पर इरम एजुकेशनल सोसाइटी की बुनयाद डाली और एक बहुत ही बोसीदा मकान में इरम माॅडल स्कूल के नाम से एक मदरसा लखनऊ के मोहल्ले बारूदख़ाना में क़ायम किया और देखते देखते बहुत ही कम वक़्त में इस छोटे से पौधे से तना वर दरख़्त की शक्ल एख़तियार कर ली जो लखनऊ व एतराफ़ के इलाक़े को साया फिगन और इल्म व फ़न की जड़ों को मज़बूत किये हुए है। आपने दीनी तालीमी कौन्सिल के परवर्दा थे वहाँ की ज़िम्मेदारियों से सुबुकदोशी के बाद एक मदरसा क़ायम किया और फिर तसल्सुल के साथ कई दीनी व असरी इदारों का क़याम भी अम्ल में आया, और फिर ख्वाजा साहब की वफ़ात के बाद उनके नौनिहालों ने भी इस सोसाइटी को मज़ीद तरक़्की के राह पर गामज़न किया, जिसका सिलसिला ताहुनूज़ जारी है।
आपकी तालीमी खिदमात के एतराफ़ में बहुत सारे एवाडर्स से आपको सरफ़राज़ किया गया जिसमें तीन सदरे जम्हूरिया एवाडर्स, 10 गर्वनर एवाडर्स, 8 वज़ीर आला एवाडर्स, 4 चीफ़ सिक्रेट्री एवाडर्स, और समाजी खिदमात के एवज़ 25 एवाडर्स शामिल हैं।
आप 4 मार्च 2019 तक़रीबन 84 साल की उम्र में इस दारे फानी से दारे जावेदानी की तरफ़ रहलत फरमा गये।
ख्वाजा सै0 मो0 यूनुस के इन्तेक़ाल के बाद उनकी औलादों ने सोसाइटी को संभाला और उनके नक्शे क़दम पर साबित क़दम रहे और दुनिया को तालीम व तहज़ीब के सांचे मंे ढाल कर कामयाबी व कामरानी की राह पर ला खड़ा करने का ज़िम्मा लिये हुए हैं। इरम एजुकेशनल सोसाइटी के तमाम शाखों के सरपरस्ते आला डा0 ख्वाजा सै0 यूनुस साहब के बड़े साहबज़ादे डाक्टर ख्वाजा रज़्मी यूनुस साहब मुक़र्रर हुए लेकिन डाक्टर ख्वाजा रज़्मी यूनुस साहब का क़ल्बी लगाओ इरम यूनानी मेडिकल काॅलेज से ज़्यादा ही था इसकी वजह यह थी कि डाक्टर ख्वाजा रज़्मी यूनुस ने बज़ाते खुद इस इदारे से तालीम हासिल की थी। अक्सर अवक़ात इरम यूनानी मेडिकल में ही गुज़ारते थे। डाक्टर ख्वाजा रज़्मी यूनुस की पैदाईश यकुम अक्टूबर 1973 को हुई और आखिर दम तक वालिद मोहतरम के साथ तालीम से मुन्सलिक रहे और बाद में भी इस सिलसिले को बरक़रार रखा।
डाक्टर ख्वाजा रज़्मी यूनुस साहब जज़्बाए इन्सानी से मामूर, शफ्क़त व मोहब्बत से पेश आने वाले, सखी, फय्याज़, मुन्किसिर तबा, साहबे दिल, मुसतक़िल मिज़ाज, खुश गुफ्तार, खुदा तरस, आला ज़रफ़, रौशन ख्याल और नेक तबीयत, निगहदाश्त फितरत के मालिक थे, जिनकी सरपरस्ती में इदारा तरक़्क़ी की राह पर हमेशा गामज़न रहा और दिन दूनी राज चैगनी कामयाबी और कामरानी की मनाज़िल तय करता रहा, इल्म तिब और तहज़ीब व सकाफ़त में अपना एक अलग मुक़ाम बनाया जिसकी गवाही यहाँ के दरो दीवार देते हैं।
वालिद मोहतरम की वफ़ात के बाद बहुत जल्द डाक्टर ख्वाजा सै0 रज़्मी यूनुस साहब भी 9/मई 2021 को तक़रीबन 49 साल की उम्र में अबदी दुनिया की तरफ़ कूच कर गये और बहुत ही क़लील मुद्दत में बाप और बेटे अपने मुतवस्लीन, मुलहेक़ीन और मोहब्बीन को दायमी ग़मे फिराक़ दे गये।
इरम एजुकेशनल सोसाइटी के दो बड़े और मज़बूत सतून के इस दुनिया से चले जाने के बाद इरम एजुकेशनल सोसाइटी की ज़िम्मेदारी दूसरे भाईयों ने अपने कंधों पर ली, डाक्टर ख्वाजा बज़्मी यूनुस साहब इस सोसाइटी के मैनेजर, इन्जीनियर ख्वाजा फैज़ी यूनुस साहब डायरेक्टर इरम एजुकेशनल सोसाइटी, इन्जीनियर ख्वाजा सैफ़ी यूनुस साहब सिक्रेट्री इरम एजुकेशनल सोसाइटी और डाक्टर ख्वाजा रज़्मी यूनुस मरहूम की अहेलिया मोहतरमा डाक्टर शाज़िया बेगम साहिबा मैनेजिंग डायरेक्टर इरम यूनानी मेडिकल काॅलेज व हाॅस्पिटल मुक़र्रर हुए। इस तौर पर लखनऊ व बाराबंकी में चलने वाले तक़रीबन तीन दर्जन मेयारी तालीमी इदारे क़ौम व मिल्लत की खि़दमत अन्जाम देने में मसरूफ़ हैं।