मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलंदाज़ी मुसलमानों को स्वीकार नहीं: जमीअत
टीम इंस्टेंटखबर
जमीअत उल्माए हिन्द महमूद मदनी गुट के यूपी के देवबंद में चल रहे राष्ट्रीय सम्मलेन के दुसरे दिन पेश किये प्रस्तावों में स्पष्ट कर दिया गया कि कोई मुसलमान इस्लामी कायदे कानून में किसी भी दखलंदाजी को स्वीकार नहीं करता. यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की गलती करती है, तो मुस्लिम और अन्य वर्ग इस घोर अन्याय हरगिज स्वीकार नहीं करेंगे और इसके खिलाफ संवैधानिक सीमाओं के अंदर रहकर हर संभव उपाय करने के लिए मजबूर होंगे.
आज जलसे में पारित किए गए प्रस्ताव में कहा गया कि समान नागरिक संहिता लागू करने को मूल संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिशों की जा रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल शादी, तलाक, खुला (बीवी की मांग पर तलाक), विरासत आदि के नियम-कानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए नहीं हैं. नमाज, रोजा, हज की तरह ये भी मजहबी आदेशों का हिस्सा है. जो पवित्र कुरान और हदीसों से लिए गए हैं.
प्रस्ताव में कहा गया कि पर्सनल लॉ में बदलाव या पालन से रोकना धारा 25 में दी गई गारंटी के खिलाफ है. इसके बावजूद अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को खत्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं और संविधान व पिछली सरकारों के आश्वासनों और वादों को दरकिनार कर के देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं.
प्रस्ताव में प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा करके देश में अमन-शांति खराब करने वाले दलों के रवैये पर नाराजगी जाहिर की गई. वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की ईदगाह मस्जिद समेत कई मस्जिदों के खिलाफ ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे अमन-शांति और अखंडता को नुकसान पहुंचा है.
प्रस्ताव में कहा गया, ‘बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है. ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है. संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी, वह उसी तरह बरकरार रहेगी. बताया गया कि निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है.
प्रस्ताव में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ’पूजा स्थल क़ानून 1991 एक्ट 42’ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए.