बेरोज़गारी के दानव का बढ़ता आकार और सरकार
ज़ीनत क़िदवाई
बीजेपी की सरकार ने 2014 में में 2 करोड़ लोगों को हर साल नौकरी देने का वादा किया था| इसी मुद्दे पर वह प्रचंड बहुमत प्राप्त कर बहुमत में आई थी | सत्ता में आये हुए 6 साल हो गए हैं लेकिन वादा वादा ही रह गया और भारत में बेरोज़गारी अपने चरम पर पहुँच गयी | स्वतंत्र भारत के इतिहास में देश सबसे बड़ी रोज़गार की समस्या से जूझ रहा है | शिक्षितों में बेरोज़गारी का स्तर 60 प्रतिशत तक पहुंच चूका है, शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी 27 प्रतिशत तक है| 24. 95 प्रतिशत मज़दूर बेरोज़गार हैं वहीँ सरकार रोज़गार देने का ढिंढोरा पीट रही है | अगर शहरों में 27 और गांवों में 23 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हैं तो रोज़गार किसको मिल रहा है?
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (CMIE) के अनुसार सिर्फ इस वर्ष अप्रैल माह में 11.4 करोड़ लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं | 9.1 करोड़ श्रमिक, 1.8 करोड़ छोटे बिजनेसमैन और 1.78 करोड़ वेतनभोगी लोगों की नौकरी गयी है | CMIE के MD के अनुसार नौकरीपेशा लोगों की संख्या 39.6 करोड़ से घटकर 28 2 करोड़ रह गयी है | बिजनेस कैटेगरी में भी 1.8 करोड़ के बेरोज़गार होने की चौंकाने वाली बात सामने आयी है क्योंकि बिजनेसमैन अपने की तभी बेरोज़गार घोषित करता है जब उसे रोज़गार चलाने की सम्भावना नहीं दिखाई देती|
उत्तर प्रदेश में 21 और 22 फ़रवरी 2018 को इन्वेस्टर मीट हुई थी| 500 कंपनियों ने प्रतिभाग किया था और 1045 एमओयू पर हस्ताक्षर किये गए थे | 4.28 लाख करोड़ रूपये का इन्वेस्टमेंट और 28 लाख रोज़गार के अवसर प्रदान करने और आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य रखा गया था | बुंदेलखंड के डिफेन्स कॉरिडोर में 2.8 लाख जॉब और इन्वेस्टमेंट की घोषणाएं हो चुकी थी| उद्योगमंत्री सतीश महाना ने बताया कि 1045 प्रोजेक्ट्स से 90 परियोजनाओं में जनवरी 2020 से प्रोडक्शन शुरू हो जायेगा मगर अभी तक कहीं कुछ नज़र नहीं आ रहा|
प्रधानमंत्री की बहुचर्चित योजना कौशल विकास मिशन में कितने युवा प्रशिक्षण पाए और कितनो को रोज़गार मिला यह भी अब सबको पता चल चुका है| इसी तरह का हश्र वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना का भी हुआ| मनरेगा में भी रोज़गार के अवसर बेहद सीमित हैं | मौजूदा प्रदेश सरकार में रोज़गार का अभूतपूर्व अभाव है मगर सरकार अपनी पीठ थपथपाने में लगी है| प्रोपेगंडा चल रहा है कि सरकार ने जो 70 लाख नए रोज़गार सृजन और खाली पदों को भरने का जो चुनावी वादा अपने घोषणापत्र में किया था उसका एक बड़ा हिस्सा पूरा हो गया है| इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या होगा कि कोरोना संकट के समय में नए रोज़गार पैदा करने की बात की जा रही है जबकि बैकलॉग भर्तियों पर रोक लगा दी गयी है | वैसे पहले ही भर्ती प्रक्रिया ठप्प ही थी | यह तय है कि कोरोना काल में नए रोज़गार की घोषणाएं पहले की ही तरह कागज़ी साबित होंगी | पहले से स्थापित उद्योगों में जो संकट आया है उनको संकट से उबारने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है | हकीकत में मज़दूरों को बंधुवा बनाया रहा है और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है |
योगी मॉडल पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, श्रमिकों के लिए नया आयोग बनाया जा रहा है जबकि एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज पहले से है | चाहे नीति आयोग हो, नया कोष हो या अब यह श्रम का जो विषय है उसका उपयोग न करके हर एक मुद्दे पर कुछ नया बनाने का प्रयास क्यों? यह सरकार का अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने का तरीक़ा और जनधन का अपव्यय है|
2014 के बीजेपी के मेनिफेस्टो में दो करोड़ के वादे पर युवाओं ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत से जिताया लेकिन सत्ता मिलने के बाद सरकार अपना किया वादा भूल गयी और विपक्ष ने जब वादा याद दिलाने की कोशिश की तो देश को भ्रमित करने वाले काम किये| अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर देश को नागरिकता संशोधन और NRC में फंसा दिया | देश की जीडीपी गिरती जा रही है और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है और जो युवा सरकार से आशा लगाए बैठा था कि सरकार उसके लिए कुछ करेगी वह निराशा के अन्धकार में डूबता ही जा रहा है |
कोरोना के बाद की स्थिति तो और भी विकट दिख रही है, जिन युवाओं ने अपना स्टार्टअप शुरू किया वह भी लोन के चक्रव्यूह में फंस चुके हैं| छोटे व्यापारी , कुटीर उद्योग जो मंदी की मार पहले से झेल रहे थे कोरोना ने उनकी कमर तोड़ कर रख दी और वह भी बेरोज़गारों श्रेणी आ गए | विश्व खाद्य कार्यक्रम का आंकलन है कि कोरोना के कारण 2020 के अंत तक भुखमरी की कगार पर 13 करोड़ लोग होंगे| कुल मिलाकर रोज़गार के मुद्दे पर हालात बहुत डरावने हैं | बेरोज़गारी का दानव मुंह खोले खड़ा है, राजनीति जारी है और जारी ही रहेगी क्योंकि इस देश में राजनीति से बढ़कर कुछ भी नहीं|