पैयामे इन्सानियत के अलमबरदार… मौ. अली मियां नदवी
मोहम्मद आरिफ नगरामी
हजरत मौलाना अली मियां नदवी की शख्सियत हिन्दुस्तान ही नही बल्कि सारे आलमे इस्लाम में कौमी यक्जेहती, अमन व अमान अखवत व मोहब्बत की अलामत समझी जाती है। मुफक्करे इस्लाम उस मुल्क को हर तरह से अमन व आशती का गेहवारा देखना चाहते थे। उस मुल्क की सालमियत और उसकी हिफाजत के लिए हमेशा बिदराने वतन से तबदला ख्याल फरमाया करते थे। और उसके लिए हमेशा कोशा रहा करते थे। कि हमारे मुल्क में अमन व अमान कायम हो, हमारा मुल्क भाईचारगी की मिसाल हो।
पैयामे इन्सानियत के जले में एक मर्तबा आपने उसी दर्द व कुर्ब बयान फरमायाः खुदा को मालूम कि तुम को मालूम नही इन्सान कैसे कैसे गुन है। उससे इल्म का दरिया कैसा उबलता है समंद्रों में वह वसअत गहराई न होगी जो उसमें है उसकी आंखों में जो माहब्बत की चमक है वह पेश करने से तुम कासिर हो उसके दिल में नर्मी है मोहब्बत है गदाज है। उस पर दर्द की चौखट लगती है जिससे तुम महरूम हो इकबाल ने बड़ी जुर्रत से कहा थाः
दर्द दिल के वास्ते पैदा किया इन्सान को
वरना ताअत के लिए कुछ कम न थे करो बयां
फरिश्तो के पास यह दौलत नही इन्सान खुदा के यहां फरिश्तो के मुकाबले में वह दिल पेश कर सकता है। जो चोट खाया हुआ हो.
खंजर चले किसी पे तड़पते है हम अमीर
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है
किसी पर खंजर चले, किसी के तलवार में कांटा चुभे तो उसकी कसक उसके दिल में महसूस होती है। इन्सान के पास जो सबसे बड़ा सरमाया है वह मोहब्बत का सरमाया है वह आनस है जो इन्सान की आंख सेस किसी बेवा के सरको नंगा, किसी गरीब के चूल्हे को ठंडा किसी मरीज की कराह सुनकर टपक पड़ता है, आंसू का वह कतरा जो समन्द्रो मंे डाल दिया जाये तो उसे पाक कर दें, गुनाहों के जंगल में डाल दयिा जाये तो सबको जला कर नूर से बदल दे फरिश्ते सब कुछ पेश कर सकते है लेकिन आंसू का वह कतरा नही पेश कर सकते जिसकी कीमत आपने भी नही पहचानी, जो आप इन्सान दूसरे इन्सान के लिए बहाता है।
हम रात को उठकर रोते है
जब सारा आलम सोता है
फरिश्ते अपने मालिक को देख-देखकर और उसकी जात व सफात को पहचान कर नही सो सकते, लेकिन वह इन्सान जो किसी की मुसीबत व दर्द की वजह से नही हो सकता। उसके जागने को फरिश्तो की बेदारी नही पहुच सकती।
एक जगह फरमत है कि इन्सान के पास सबसे अनमोल चीज यह है कि वह दूसरे के दर्द से मुतासिर होता है उसके अन्दर मोहब्बत का मादा है उसको हरकत देने वाली चीज मिल जाये तो वह हरकत में आ जाता है फिर न मजहब को देखता है न मिल्लत को न फिर्के को न इलाके को, न वतन को देखता है न मुल्क को देखता है, इन्सान-इन्सान का दिल देखता है उसके दर्द को महसूस करता है जिस तरह मकनातीस लोहे को खंीचता है और वह खींचने पर मजबूर है उसी तरह इन्सान के दिल का मकनातीस इन्सान के दिल को खींचता है।
जो आंख ही से न टपके तो फिर लहू क्या है।
अगर इन्सान से यह दौलत छिन जाये तो वह दीवालिया हो जायेगा। अगर कोई मुल्क उससे महरूम हो जाये अगर अमरीका की दौलत, रूस का निजाम, अरब मुमालिक के पैट्रोल के चश्मे हो, हुस्न बरसता हो सोने और चांदी की गंगा जमुना बहती हो लेकिन उस मुल्क में मोहब्बत का चश्मा खुश्क हो चुका हो तो वह मुल्क कंगाल है उस मुल्क पर अल्लाह की रहमतें नाजिल न होंगी।
अभी इन्सान की आंख आंसू बहाने के काबिल है अभी इन्सान का दिल तड़पने, सुलगने और चोट खाने के काबिल है जो दिल उस काबिल नही है ऐसे दिल को दिल नही कहते बल्कि पत्थर की सिल कहते है जो खुदा की बारगाह में कौड़ी के काबिल नही चाहे वह मुसलमान का दिल हो या हिन्दू, सिख, इसाई का दिल हो, दिल तो इसलिए है कि वह तड़पे, लरजे,रोय उसमें जमीन से ज्यादा शादाबी, आबशार से ज्यादा सेराबी कायनात से ज्यादा वुसअत और बादलो से ज्यादा बरसने की सलाहियत हो।
कोई जाकर यह कह दे अबर नेसां से कि क्यो बरसे
कि जैसे मीना बरसता है हमारे दीद तर से
वह आंख इन्सान की आंख नही नरगिस की आंख है जिसमें नमी न हो वह दिल इन्सान का दिल नही चीते का दिल है जिस पर कभी दर्द की चोट न लगे, जो कभी इन्सानियत के गम में रोना तड़पना न जाने वह पेशानी जिस पर कभी निदामत का पसीना न आये वह पेशानी नही बल्कि कोई चटटान है।
जो हाथ इन्सानियत की खिदमत के लिए नही बढ़ता वह मफलूज है वह हाथ जो इन्सान की गर्दन काटने के लिए बढ़ता है उससे शेर का हाथ बेहतर था। अगर इन्सन का काम काम काटना था तो कुदरत उसको बजाये हाथो के तलवार देती, अगर इन्सान का मकसद जिन्दगी सिर्फ माल जमा करना था तो उसके सीने में धड़कते हुएदिल के बजाये एक तिजोरी रख दी जाती, अगर इन्सान का सिर्फ तखरीब के मंसूबे बनाना था तो उसके अन्दर इन्सान का दिमाग न रखा जाता बल्कि किसी शौतान, किसी राक्षस का दिमाग रख दिया गया होता‘‘
मंदरजा बाला इकतेसाब में आपने दिल निकाल कर रख दिया है आप हमेशा कौमी यक्जेहती के लिए मुतफक्कर रहा करते थे उस मुल्क को हमेशा हरा भरा खुश हाल देखाना चाहते थे। इन्सानियत एक दूसरा दर्द व गम आप जिस तरह महसूस करते थे चाहते थे कि ऐसे ही सारे मुल्क के लोग एक दूसरे के दर्दगम में शरीक हो।
आप अपने अकसर खिताब में कहा करते थे तमाम कौमें इन्सानियत की शाखें है असल चीज इन्सानियत है उस इन्सानियत को तबाही और हलाकत से बचाने के लिए आज कितने अफराद और कितनी र्पािर्टयां आदमियत के नाम से सर गरम और इन्सानियत को बचाने के काम में मसरूफ है?‘‘
तहजीब व तमददुन सियासत व हुकूमत अदब व फलसफा और इन्म व फन के आशयाने इन्सानियत की शाख पर कायम है। अगर इन्सानियत की शाख बाकी है तो आप जैसा चाहे वैसा नशेमन बना लें। लेकिन शाख पर बड़े से बड़ा तेशा चलायें।
आज हमारे मुल्क में इन्सान को इन्सान से मोहब्बत और हमदर्दी नही रही, पहलू में वह दिल नही जो इन्सनियत के सोज में जलते है। उसका दर्द महसूस करते हो नफसा नफसी का कयामत खेज मंजर हे। हर एक को अपनी-अपनी पड़ी है। आज कोई एक दूसरे की मसीहाई करने वाला नही, किसी के दर्द में कोई काम आने वाला नही, कोई किसी का पुरसाने हाल नही, हर शख्स एक दूसरे से भाग रहा है। आज हमारे सामने कयामत का मंजर है हर शख्स नफसी-नफसी के आलम में है।
आज के उस पुर फसाद वक्त में मौलाना की तहरीक को आगे बढ़ाने की जरूरत है उनके पैगाम को आम करने की जरूरत है, वरना हमारा यह मुल्क बिखर जायेगा। उसका अमन छिन जायेगा। उसकी गंगा जमुनी तहजीब मिट जायेगी। इसलिए वक्त से पहले इसकी तरफ तवज्जो की जरूरत है।