तरावीह-रमज़ान की अहम खुसूसियत
मोहम्मद आरिफ नगरामी
कुरआन मजीद एक तरफ तो इन्सानी रहुमाई के लिए मोअज्जजाना सतेह की अजीमुल तरबियत किताब है दूसरे उसका पढ़ना सआदत भी है अल्लाह रब्बुल इज्जत के इस कलाम कुरआन मजीद का रमजानुल मुबारक से बहुत खुसूसी तालुक हे इसी माह मुबारक में वह नाजिलकिा गया। उसकी खुसूसियत का खास तौर पर जिक्र फ़रमाया ।
और रमजान के महीने की खुसिसयात से कुरआन मजीद का तालुक भी बहुत जाहिर होता है उस माह मुबारक मंे वह खूब पढे जाने का इन्तेजाम है खास तौर पर नमाजों में और तरावी की नमाज तो शायद खास तौर पर इसलिए रखी यगी है वह परवरदिागर आलम का कलाम मुकददस है इसलिए उसका पढ़ना भी इस्लामी इबादत है तरावी को अल्लाह ताला ने कुरआन मजीद की हिफाजत का एक बड़ा जरिया बनाया है। उसकी वजह से कुरआन से इशतेगाल बहुत ही बढ़ जाता है। अगर तरावी न होती तो कुरआन पर तवज्जह रमजान में इतनी ज्यादा न होती इसी तरावी का नतीजा है कि पूरी दुनिया में हजारों लाखों हाफिज कुरआन पाक सुनाते हे जिसकी वजह से कुरआन पाक की हिफाजत का बेहतरीन इन्तेजाम है।
रमजानुल मुबारक में तरावी का अमल एक मुफीद और दीनी तकवियत का बेहतरीन जरिया है नीज इस का कुरआन मजीद से बहुत गहरा तालुक है उसमें कुरआन मजीद के सुनने और सुनाने वाले दोनो ही बड़ा फायदा उठाते है और कलाम इलाही को सुनने और सुनाने में रजाए इलाही का जो हुसूल है वह दीनी तरक्की और मकबूलियत का कीमती जरिया है इसी के साथ साथ इस अमल से कुरआन मजीद की हिफाजत के अमल को बड़ी तकवियत मिलती है और इमान वालो को इसकी तकवियत का जरिया बनने की सआदत मिलती है। जिसकी हिफाजत का असल खुद अल्लाह रब्बील आलमीन ने वादा फरमाया।
मसला की रौ से तरावी एक मसनून अमल है और वह जमाअत के साथ अमल में लायी जाती है और रमजान की खुसूसियात में दाखिल है। इस तरह वह बहुत अहमियत भी रखती है दीन में इसकी अहमियत और हकीकत पर हजरत मौलाना सैयद अबुल हसन अली हसनी नदवी रह. ने ‘‘अरकान अरबा’’ में जो तहरीर फरमाया है वह उसके मुखतलिफ पहलुओं पर अच्छी रोशनी डालता है वह लिखते है।
अल्लाह ताला ने उस उम्मत में तरावी की हिफाजत और उसके एहतेमाम का जजबा भी पैदा फरमाया है तरावी की नमाज हुजरू स.अ. से साबित है लेकिन आप ने तीन दिन पढ़ कर उसकों इसलिए छोड़ दिया था। कि कहीं यह उम्मत पर फर्ज न हो जाये। और मशक्कत का बाअस हो इब्ने शहाब जहरी से रवायत करते है मुझसे अरवा ने बताय वह कहते है मुझे हजरत आयशा रजि. अन्हा ने खबर दी कि रसूल स.अ. एक बार देर से रात में अपने घर से निकले और मस्जिद में नमाज पढ़ी और आप स.अ.के साथ और कुछ लोगो ने भी नमाज पढ़ी जब सुबह हुई तो लोगो ने उसके मुतालिक गुफ्तगूं शुरू की और बहुत से लोग जमा हो गये दूसरे रोजे जब आप स.अ. ने नमाज पढ़ी तो सबने आप स.अ. के साथ नमाज पढ़ी फिर सुबह हुई और उसका चरचा हुआ तीसरी रात नमाजियों की तादाद बहुत बढ़ गयी।
रसूल स.अ. बाहर तशरीफ लाये और नमाज पढ़ी और सबने आप स.अ. के साथ नमाज अदा की। जब चैथी रात आयी तो नमाजियों की कसरत से मस्जिद में जगह न रही यहां तक कि फज्र की नमाज के लिए बाहर तशरीफ लाये और नमाज पढ़ने के बाद लोगों की तरफ मुतवज्जा हुए और फरमाया कि तुम लेागों की मैाजूदगी मुझसे पोशीदा नही थी लेकिन मुझे डर हुआ कि यह नमाज पर फर्ज न कर दी जाये फिर तुम उससे आजिज हो जाओं फिर रसूल स.अ. की वफाद हो गयी और यही सूरत रही।
आप स.अ. के बाद सहाबा किराम रजि. उस पर अमल पैरा रहे और उस उम्मत ने मुखतलिफ मुल्कों और मुखतलिफ जबानों में उसकी पूरी हिफाजत की यहां तक कि तरावी की नमाज तमाम अहले सुन्नत और सलेहीन उम्मत की अलामत बन गयी। उसके अलावा इससे हाफिज कुरआन में भी बड़ी मदद मिली इस सिलसिले में बाज उन मुमालिक के साथ जो मरकज इस्लाम से बहुत और थे अललाह ताला की खास फजल रहा। चुनाचे हिन्दुस्तान व पाकिस्तान में तरावी और खत्म कुरआन का जितना एहतेमाम है और अवाम व ख्वास सब इसके गुरूदीदा है यह बात इस दर्जे में किसी और मुल्क में नही मिलती यहां मोहल्ला की छोटी छोटी मस्जिदों में भी तरावी का एहतेमाम किया जाता है और कम अज कम एक खत्म जरूर होते है। और उसमें कोई शुबा नही कि इस सुन्नत के की वजह से हिफाजत की तादाद में बहुत नुमाया इजाफा हुआ और रमजान की खातिर पूरे साले कुरआन मजीद के दौर का मामूल बन गया और ऐसे ऐसे हाफिज पैदा हुए जो हैरत अंगेज कमालात रखते थे और हैसियत के मालिक थेः हज़रत मौ. सै. अबुल हसन अली नदवीं
हजरत शेखुल हदीस मौलाना मोहम्मद जाकरिया कानदेहनवी रह. ने फजाएल रमजान में और इब्ने खजीमा के हवाले से हजरत सलमान फारसी रजि. से मरफोअन नकल किया है कि आखिर शाबान में रसूल स.अ. ने सहाबा को खिताब फरमाया और कहा कि तुम्हारे ऊपर एक महीने आ रहा है जो बहुत अजीम बरकत वाला महीना है उसमें एक रात है शबे कदर जो हजारों महीनो से बढ़कर है अल्लाह तालान ने उस के रोजे को फर्ज फरमाया और उसके रात के कयाम यानी तरावी का सवाब की चीजें बनाया।
तरावी के सिलसिले में उम्मत का जो तर्ज अमल रहा है और आयमे दीन ने उसका जो एहतेमाम किया है उससे उसकी अपनी अनफरादियत व खुसूसियत मालूम होती है कि उसका एहतेमाम रात के इब्तेदाई हिस्से में इशां की नमाज के साथ किया गया और तहज्जुद का एहतेमाम आखिर शब में तरावी के नमाज जमाअत से हजरत उमर बिन अलखताब रजि. ने बीस रकआत फकहाए सहाबा के मशविरे और इत्तेफाक से मुकर्रर की और हजरत अबी बिन काब रजि. जैसे जलील कदर सहाबी से इमामत कराई और उन्होने उसमें कुरआन मजीद सुनाया इस तरह सहाबा रजि. ने इल्मी तौर पर पूरा इत्तेफ़ाक़ जाहिर किया और उसकी वजह से यह सुन्नत हर तरफ आम हो गयी। और यह शर्फ व सआदत हजरत उमर रजि. के हिस्से में आयी कि उस अजीम सुन्नत का अजर उनके जरिये हुआ और कुरआन मजीद ज्यादा से ज्यादा पढ़ने का भी जरिया बनी और हिफाजत के लिए बड़ी मुबारक साबित हुई कि वह उसके जरिये कुरआन मजीद की अपने सीनो में महफूज रखते है सहाबा के बाद ताबेईन और फिर तबा ताबेईन और दूसरे आईमा व मोहददीस उलमा व फिक्हा और दीन पर अमल करने वालो ने उसका एतराजम किया और हरम शरीफ मंे भी उस वक्त से तसलसुल के साथ तरावी पढ़ी जाती है।
कुरआन मजीद मुकम्मल किये जाने का अमल जारी है और कुरआन मजीद मुकम्मल होने के बाद यह तरीका बरकरार रहता है इस तरह यह दो अलग अलग सुन्नते भी हुई तरावी में पूरा कुरआन मजीद सुना जाये और पूरे माह मुबारक तरावी पढ़ी जाये अगर चे तरावी की जमाअत सुन्नत काफिया है लेकिन इतनी अहम सुन्नत है कि महद्दिस जलील शेख अब्दुल हक मोहद्दीन दहलवी किसी शहर के लोग तरावी छोड़ दे तो उसके छोड़ने पर इमाम इन से मुकातला करें तरावी और उसकी जमाअत ने वह खुसूसियत व इम्तेयाज हासिल किया कि यह अहल सुन्नत अलजमाअत का शआर बन गया चुनाचे रवाफज (शिया हजरात) इससे पहलू तही करते है गालबन यही वजह है कि रवाफज को आम तौर पर कुरआन मजीद याद नही होता क्योकि तरावी की खुसूसी ताकीद हजरत उमर रिज. के हवाले से मिलती है इस लिए वह शिया उससे दिलचस्पी नही रखते लेहाजा वह इसके फैज से महरूम है। हजरत उमर रजि. ने और दीगर तमाम सहाबा ने मिल कर उस पर अमल किया, उस मुबारक और अजीम होने के लिए तहनिया बात ही काफी है। यह सही हदीस में है कि रसूल स.अ. ने इसलिए तरावी और तहज्जुद का मामूल जो रमजान की रातों में रहा है वह इसी माह मुबारक की खासियत है रमजान के बाद तहज्जुद की सुन्नी इसी तरह पूरे बाकी रहती है और यही वह अजीम सुन्नत है जिसाके अल्तजाम रसूल स.अ. ने सफर व हजर दोनो में किया है और जब उसमें किसी मशगूलियत और किसी सबब से कमी रह गयी तो सुबह उस कमी को पूरा फरमाया आप स.अ. ने उसका हुक्म नही दिया कि उम्मत दुशवारी में न पड़े लेकिन तरबीग दी शौक दिलाया और उसकी फजीलत बय1ान की चुनाचे तहज्जुद सालेहीन का शऊर बन गयी अलबत्ता यह तन्हा पढ़ी जानी बेहतर है।