न्यायपालिका की छवि बहुसंख्यकवादी संस्थान बन जाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक: शाहनवाज़ आलम
लखनऊ
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने तमिलनाडु और पुदुचेरी की बार काउंसिल द्वारा देश के मुख्य न्यायाधीश और कॉलेजियम की न्यायाधीशों को पत्र लिखकर मद्रास हाईकोर्ट में जजों की पदोन्नति और नियुक्ति में मुस्लिम और ईसाई वर्गों के उम्मीदवारों पर भी विचार करने की मांग का समर्थन किया है।
लखनऊ स्थित प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि धर्म के आधार पर जजों की नियुक्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन धर्म के आधार पर किसी की नियुक्ति भी नहीं रोकी जानी चाहिए जैसा की हाल के वर्षों में होता हुआ दिखा है। उन्होंने कहा कि अगर किन्हीं राज्यों के बार काउंसिलों को पत्र लिखकर मुस्लिम और ईसाई वर्ग के उम्मीदवारों को भी न्यायाधीश बनाने पर विचार करने की मांग करनी पड़ रही हो तो समझा जा सकता है कि अल्पसंख्यक वर्गों में न्यायपालिका की छवि एक बहुसंख्यकवादी संस्था की बन चुकी है। जो किसी भी सेकुलर और लोकतांत्रिक देश के लिए घातक है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि देश के सामने जस्टिस अकील कुरैशी का उदाहरण है जिनका नाम वरिष्ठता के आधार पर कॉलेजियम ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए भेजा था। लेकिन केंद्र सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश नहीं मानी। जिसके खिलाफ़ गुजरात के वकील संघ ने क़ानून मंत्री से समय मांगा था लेकिन क़ानून मंत्री ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। जिसके बाद वकील संघ ने जस्टिस अकील कुरैशी की नियुक्ति में केंद्र सरकार द्वारा देरी करने के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जिसपर सोलिसिटर जनरल ने केंद्र सरकार को समय देने की मांग की लेकिन इसी बीच केंद्र सरकार ने रवि शंकर झा को मध्यप्रदेश का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया। इस मामले में कॉलेजियम सरकार के खिलाफ़ कोई स्टैंड नहीं ले पायी।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि देश के हाई कोर्ट्स के सबसे वरिष्ठ मुख्यन्यायाधीश जस्टिस अकील कुरैशी का नाम एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में जज के बतौर नियुक्ति के लिए कॉलेजियम ने भेजा लेकिन केंद्र सरकार ने फिर उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनने दिया और उनके रिटायर होने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की। इस बार फिर कॉलेजियम सरकार पर एक सार्थक टिप्पणी तक नहीं कर पाया।
शाहनवाज़ आलम ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने ऐसा सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि 2010 में गुजरात हाईकोर्ट का जज रहते जस्टिस अकील कुरैशी ने सोहराबुद्दीन शेख फ़र्जी मुठभेड़ कांड में अमित शाह को सीबीआई रिमांड पर भेज दिया था।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के सामने यह चुनौती है कि उनकी कॉलेजियम मुस्लिम और ईसाई वर्ग के पात्र उम्मीदवारों के नामों पर विचार करते समय सरकार के दबाव में धर्म के आधार पर पक्षपात न करे। उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को यह भी संज्ञान में रखना चाहिए कि जिस तमिलनाडु और पुदुचेरी बार काउंसिल की तरफ से उन्हें पत्र भेजा गया है उसी हाईकोर्ट में पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने मुस्लिमो और ईसाइयों के खिलाफ़ हिंसक भाषण देने की आरोपी भाजपा नेत्री विक्टोरिया गौरी को जज नियुक्त कर दिया था। जिससे मुख्य न्यायाधीश की आरएसएस और मोदी सरकार के आगे रेंगने वाली छवि और मजबूत हुई थी।