लखनऊ

मकतबे इमामिया के पहले मुजतहिद अयातुल्लाह सैय्यद दिलदार अली ग़ुफ़रानमआब की ज़िन्दगी और उनके मकतबे फ़िक़्ही ओ कमाली पर  नूरे हिदायत फाउंडेशन की ओर से दो रोज़ा सेमिनार का आयोजन हुआ।

रात 8 बजे समापन सत्र आयोजित हुआ, समापन सत्र की शुरुआत मौलाना हैदर मेहदी करिमी ने क़ुरान की तिलावत से की। उसके बाद मौलाना तक़ी रज़ा बुरक़ई ने हज़रत ग़ुफ़रानमआब के इल्मी आसार और फ़िक्री अबाद ओ जिहात पर कलिदी ख़ुत्बा पेश किया। उनके बाद मौलाना रज़ा हैदर ने मकतबे फिक़ही ओ कलामी लखनऊ की ज़रुरत पर तक़रीर की। अंत में सेमिनार के अध्यक्ष मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने तक़रीर करते हुए कहा कि हज़रत ग़ुफ़रानमआब ने बहुत सीमित संसाधनों के बावजूद नजफ़-ए-अशरफ और ईरान की यात्रा की ताकि उलेमा और फ़ोक़हा से इल्म हासिल कर सकें। जब वह हिंदुस्तान लौटे तो उस समय मकतबे इमामिया के ख़द्दो ओ ख़ाल वाज़ेह नहीं थे और अक्सर लोग या तो तक़य्ये में ज़िन्दगी बसर कर रहे थे या सूफीइज़्म और अख़बारियात के ज़ेरे असर थे। हज़रत ग़ुफ़रानमआब ने हर महाज़ पर फ़िक्री और इल्मी अंदाज़ में मुक़ाबला किया और मकतबे इमामिया की तरवीज ओ इशाअत के लिए पहले स्कूल की बुनियाद रखी। इस स्कूल ने बार्रे सग़ीर में मकतबे इमामिया के अक़ाएद और तालीमात को आम किया और विद्वान शागिर्द और उलेमा तैयार किये, जिनके इल्मी और फ़िक्री आसार पर गुफ़्तुगू के लिए आज हम सब यहाँ जमा हुए है। उन्होंने कहा कि जल्द ही इस नई ईमारत में एक तहक़ीक़ी मरकज़ और लाइब्रेरी बनाई जाएगी, ताकि मुहक़्क़िक़ और दानिशवर हज़रात इससे इस्तेफ़ादा कर सकें।

तक़रीर के अंत में मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि इतने खराब मौसम के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में उलेमा और मोमनीन का इस सेमिनार में आना इस बात का सबूत है कि लोग अब मकतबे हज़रत ग़ुफ़रानमआब की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। आदिल फ़राज़ ने समापन सत्र का संचालन किया। मेज़बान के रूप में मौलाना आसीफ जायसी और अहमद अब्बास नक़वी ने सभी मेहमानो का शुक्रिया अदा किया।

सेमिनार के समापन सत्र में मौलाना शमसुल हसन, मौलाना तक़ी हैदर नक़वी, मौलाना रज़ा हैदर ज़ैदी, मौलाना ग़ज़नफर नवाब, मौलाना मुहम्मद हुसैन, मौलाना अशरफ अल ग़रवी आयतुल्लाह सिस्तानी के प्रतिनिधि, मौलाना मुहम्मद हसन ताहा फाउंडेशन, मौलाना अक़ील अब्बास, मौलाना अरशद हुसैन अर्शी, मौलाना तहज़ीबुल हसन, मौलाना मुहम्मद मूसा, मौलाना हैदर मेहदी करीमी, मौलाना तफसीर अब्बास, मौलाना अबुल फ़ज़्ल आबिदी, मौलाना शबाहत हुसैन, मौलाना डॉ. अरशद जाफरी, मौलाना डॉ. ज़ीशान हैदर, मौलाना सरताज हैदर ज़ैदी, मौलाना डॉ. ज़फरुन नक़ी, मौलाना शाहिद कमाल और अन्य उलेमा ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।