क्या ट्रम्प ने ईरान से मान ली है हार?
तेहरान: एनबीसी टीवी की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने केरोलिना में अपनी एक चुनावी सभा में दावा किया ईरान उन्हें दोबारा राष्ट्रपति नहीं बनने देना चाहता लेकिन अगर वे चुनाव जीत जाते हैं तो ईरान ही सबसे पहले उनसे संपर्क करेगा और एक नए समझौते की बात करेगा। ट्रम्प ने सन 2018 में अमरीका को परमाणु समझौते से बाहर निकाल लिया था और ईरान पर एकपक्षीय प्रतिबंध बहाल करने के साथ ही उस पर अधिकतम दबाव डालने की नीति अपनाई थी। अमरीका ने इसी तरह ईरान से सहयोग करने वाले देशों पर भी प्रतिबंध लगाने की धमकी देकर अन्य देशों को ईरान के साथ व्यापार से रोक दिया था।
ईरान पर अधिकतम दबाव डालने के साथ ही ट्रम्प का दावा है कि जल्द ही ईरानी उनसे संपर्क करेंगे और एक ऐसे समझौते पर वार्ता के लिए तैयार हो जाएंगे जिसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम, उसकी क्षेत्रीय भूमिका और उसके मीज़ाइल कार्यक्रम के बारे में बात की जाएगी। ट्रम्प का पहला राष्ट्रपति काल ख़त्म होने वाला है और उनके शासनकाल में अमरीका ने ईरान के ख़िलाफ़ हर संभव कोशिश की यहां तक कि आईआरजीसी के कमांडर जनरल क़ासिम सुलैमानी को भी शहीद कर दिया लेकिन वह ईरान को झुका नहीं सका। इस दौरान ईरान ने अपनी स्वेदशी व आंतरिक क्षमताओं का इस्तेमाल करके अपनी ज़रूरतों को किस तरह पूरा किया है और उपभोग की वस्तुओं से लेकर पेट्रोल व हथियारों तक की किस तरह पैदावार की है, इसकी अनदेखी करते हुए ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों की बहाली को दो साल हो चुके हैं और उस पर अधिकतम दबाव के बावजूद तेहरान ने कभी भी किसी दूसरे समझौते की बात नहीं की है बल्कि उसने अमरीका के उल्लंघनों के जवाब में, अपनी परमाणु प्रतिबद्धताओं को पांच चरणों में कम किया है।
इन सारी बातों से पता चलता है कि हर तरह के हथकंडे इस्तेमाल करने के बावजूद ट्रम्प, ईरान के मुक़ाबले में हार चुके हैं और अमरीका की ओर से लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के कारण ईरान ने तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था से छुटकारा पाने की दिशा में भी अहम क़दम उठा लिए हैं। इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि ट्रम्प ईरान के मुक़ाबले में हार गए हैं क्योंकि उनका यह बयान ही उनकी ओर से अपनी हार को स्वीकार करने के अर्थ में है कि अगर वे चुनाव जीत गए तो ईरान उनसे संपर्क करने वाला सबसे पहला देश होगा। इसका सीधा अर्थ यही है कि वे ईरान को झुकाने में कामयाब नहीं हुए हैं। दूसरी ओर अमरीका की ओर से लगाए गए अमानवीय प्रतिबंधों के कारण पूरी दुनिया में अमरीका की छवि बुरी तरह से ख़राब हुई है और इसके अलावा भी अमरीका के लिए कई नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, जैसे डाॅलर का वर्चस्व ढीला पड़ता जा रहा है और अब अनेक देश अपनी राष्ट्रीय करेंसियों में द्विपक्षीय व्यापार करने लगे हैं। इसके अलावा अमरीका को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भी बहुत अपमानित होना पड़ा और वह ट्रिगर मेकेनिज़म भी सक्रिय नहीं कर सका।
हालांकि चुनाव में अमरीकी जनता के लिए आंतरिक मामलों को प्राथमिकता हासिल है लेकिन ऐसा लगता है कि ईरान के मुक़ाबले में ट्रम्प की हार, आंतरिक मामलों से हट कर पूरी दुनिया में व्यापक मुद्दा बन जाने के कारण, अमरीकी मतदाताओं के वोटों को भी प्रभावित करेगी। विशेष कर इस लिए कि ट्रम्प के डेमोक्रेट प्रतिस्पर्धी ने भी अपने चुनावी भाषणों में इस विषय यानी ईरान के मुक़ाबले में अमरीका की हार को भुनाने की कोशिश की है और कई बार इस बात की ओर इशारा किया है।
रोचक बात यह है कि अमरीका के चुनावी मैदान में ईरान के विषय की अहमियत को ट्रम्प की टीम के सदस्यों के बयानों से भी समझा जा सकता है क्योंकि वे भी वही बात कह रहे हैं जो ट्रम्प कह रहे हैं। तेल अवीव में अमरीका के राजदूत डेविड फ़्रेडमैन ने एक इंटरव्यू में कहा है कि ईरान दिन में पांच बार दुआ करता है कि ट्रम्प इलेक्शन में न जीतें क्योंकि अगर वे जीत गए तो तेहरान उनके साथ सार्थक सहयोग करने पर मजबूर होगा। इस दावे के विपरीत विश्व व्यवस्था में अमरीका की पोज़ीशन कमज़ोर करने के ट्रम्प के क्रियाकलाप और इसी तरह उनके कुशासन के कारण जिसके चलते अमरीकी अर्थव्यवस्था 33 प्रतिशत कमज़ोर हुई है, ईरान में कई ऐसे केंद्र हैं जो दुआ करते हैं कि ट्रम्प दोबारा अमरीका के राष्ट्रपति बन जाएं ताकि पूरी तरह से इस देश का बंटाढार कर दें। इसके अलावा ट्रम्प का निरंतर यह दावा कि वे सत्ता हस्तांतरित नहीं करेंगे और देश में गृहयुद्ध की संभावना है, इस बात का सूचक है कि यह अमरीकी जनता है कि जो दिन में 24 बार प्रार्थना करती है कि ट्रम्प मतदान से पहले ही मर जाएं ताकि अमरीका तबाह होने और गृहयुद्ध में पड़ने से बच जाए।