खुशआमदीद माहे रमजान
मोहम्मद आरिफ नगरामी
अल्लाह तआला ने सूरह बक़रा में इरशाद फ़रमाया कि ऐ इमान वालो!तुम पर रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ कर दिये गये हैं। जैसा कि तुम से पहले लोगो पर फर्ज़ किये गये थे। ताकि तुम परेहज़गार बन जाओ जब कि माह शाबानुलमोअज़्ज़म के ख़त्म पर रमज़ान अलमुबारक का महीना शुरू होता है अब जब कि रमज़ानुल मुबारक का महीना आ रहा है खु़दा का लाख लाख शुकर है कि हम ईमान वाले हैं। और ईमान वालो पर ही रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ किये गये हैं। अगर इस माहे मुबारक के रोज़ो से तक़वा हासिल करना है तो हस्बे ज़ेल चंद ज़रूरी चीज़ो का एहतेमाम करना भी ज़ुरूरी है। जहां तक हो सके हम हलाल रोज़ी हासिल करें। सूद ख़ोरी जुंआं शराब नोशी जैसी हराम चीज़ो से दूर रहें। बंदा रमजान मुबारक के एक महीना में भूक और प्यास को बरदाश्त करता है तो उस को यह एहसास होता है कि फ़ाक़ा भूक और प्यास किसे कहते हैं।
हुज़ूर स0 ने फ़रमाया! रमज़ानुल मुबारक की आमद पर आसमानो के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं। और जन्नत के दरवाज़े भी खोल दिये जाते हैं और दोज़ख़ के दरवाज़ो को बंद करके शयातीन को ज़न्जीरो में जकड़ दिया जाता है और फिर निदा करने वाला कहता है! ऐ नेक बंदो और खु़शनसीबो! इस मुबारक माहे रमज़ान में आमाल सालेह और परहेज़गारी के लिये बारगाहे खु़दावंदी की तरफ़ चले आओ! अल्लाह के घर की तरफ़ आओ- यही वह मुक़द्दस महीना है जिस में अमले ख़लील पर भी जज़ाय जलील अता की जाती है।
हज़रत इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है! बहुत सारे मुसलमान रोज़ादार रोज़ा तो पाबंदी से रखते हैं लेकिन उन्हें यह फ़िक्र बिलकुल नहीं होती वह जिस चीज़ से सहरी करते हैं और इफ़्तार करते हैं। वह हलाल है या हराम है या फिर रोज़ा रख कर दिन भर ग़ीबत, झूट और फुज़ूल गुफ़्तगू और कामों में लगे रहते हैं। अल्लाह तआला हम सब मुसलमान भाइयों को सही रोज़ादार बनने की तौफ़ीक़ अता फ़रमायें और बुराइयों से बचाये और इस मुबारक रमज़ान का एहतेराम कराए।
हज़रत इमाम शाफ़ी रहमुतुल्ला अलै0 ने फ़रमाया मै यह चाहता हूं कि रोज़ा दार रमज़ानुलमुबारक के महीने में ज्यादा अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करें। क्योकि हज़रत सरवरे आलम सल0 इस मुबारक महीने में इनसान की ज़रूरियात जिन्दगी ज्यादा हो जाती है और हर शख़्स ज्यादा से ज्यादा इबादत कर लेना चाहता है। जिस की वजह से कमाई के मवाके़ पर कुछ कम हो जाते हैं। और ग़रीब मज़दूरो के लिये तो और भी ज्यादा इस लिये मालदारो को चाहिये कि वह इस मुबारक महीने में अपनी दौलत का कम अज़ कम कुछ हिस्सा अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करें तकि ग़रीबो के जुरूरियात पूरी हो जायें।
रमज़ानुल मुबारक में एक अहम इबादत ’’तिलावते कुरआन’’ भी है रमज़ानुलमुबारक नेकियों का महीना है। इस माहे मुबारक में अज्रो सवाब बढ़ा दिया जाता है इस माहे मुतबारक में अपने नफ़्स पर मुकम्मल तौर पर क़ाबू ना मुनासिब अलफ़ाज़ ज़बान से निकालना। अगर कोई झगड़ा करता है तो उस झगड़ालू से कहदेना मै रोज़ा से हूं मेरा रोज़ा है इस तरह ग़ैर शरई आमाल। मोसकी, सिनेमा, वग़ैरा से दूर रहना ज़रूरी हैं बंदे की नियत में खु़लूस हों दिल में अल्लाह का ख़ौफ़। मालिके हक़ीक़ी की अताअत का जज़्बा भी हो। रज़ाए इलाही की तलब हो! रोज़ा इस ईमान के साथ रखा जाए कि अगर हमारे ज़िम्मे किसी का हक़ है। किसी का हम पर कर्ज़ है अगर अदा करने के क़ाबिल न हो तो आपस में मिल कर मामला साफ़ कर लें। अल्लाह अपना हक़ माफ़ कर देता है। लेकिन बंदे का हक़ उस वकत माफ़ होता है जब बंदा माफ़ कर दे।
रोज़ो के लिये इख़लास और इतबा हज़रत सरवरे आलम सल0 ज़रूरी है। रसूलल्लाह सल0 ने फ़रमाया ईमान और एहसान के साथ जिस ने माहे रमज़ान के रोज़े रखे अल्लाह ताला उसके तमाम गुनाहों को माफ़ फरमाता है।’’
रमज़ानुल मुबारक रहमत का अज़ीम महीना में तौबा और इस्तग़फ़ार की कसरत करें दुनिया और आखि़रत की आफ़ात व मुसीबत से निजात मिल जाएगी। अल्लाह ताला फ़रमाता है! तुम्हें जो कुछ मुसीबते पहुंची है वह तुम्हारे अपने हाथो का बदला है। और वह तो बहुत सी बातो को दर गुज़र फ़रमाता देता है। अल्लाह ताला का इरशाद है। ऐ ईमान वालो अल्लाह के सामने सच्ची तौबा करो
कुरआन करीम की कसरत से तिलावत करें चूकि कुरआन पाक रमज़ानुलमुबारक में नाज़िल हुआ है। अल्लाह ताला के रसूल सल0 रमज़ानुल मुबारक में कुरआन पाक का दौर फ़रमाते है। सदकात व ख़ैरात की कसरत करें सदक़ात का सवाब सत्तर गुना ज्यादा बढ़ा दिया जाता है। इस मुबारक माहे रमज़ान में नमाज़े बजमाअत पाबंदी से अदा करें एक नमजा से दूसरी नमाज़ एक जुमा से दूसरा जुमा एक रमज़ान से दूसरे रमजानुलमुबारक तक के गुनाहों को अल्लाह ताला माफ़ फ़रमाता है, साथ ही नमाज़ तहज्जुद का एहतेमाम करें और दुआओं का भी एहतेमाम करें क्योकि रोज़ा दार की दुआ इफ़्तार से क़ब्ल रद नही होती। अपने भाइयों को नेकी का हुक्म करना। बुराई से रोकना। दावत व तबलीग़ का काम ज्यादा करना। मालिके हक़ीक़ी की इबादत के लिये इंसान में तक़वा पैदा हो तो खु़दा की इबादत व अताअत और फ़रमाबरदारी की लिज्जत महसूस होती है। तक़वा यह है कि इनसान हराम चीज़ो से इजतनाब करे। रोज़ा एक ऐसी इबादत है कि कोई भी दूसरी इबादत इस का बदल नही बन सकता
हज़रत आयशा सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह अनहा से रवायत है कि रसूल अल्लाह सल0 शाबान की महीने का इतना एहतेमाम न फ़रमाते फिर जब रमज़ानुलमुबारक का चांद नज़र आता तो रोज़े रखने लगते। रमज़ानुल मुबारक नेकियों का महीना हे इस माहे मुबारक में अपने मुलाज़मीन के साथ नेहायत नरमी और शफ़क़त के साथ पेश आना चाहिए अब अपने नफ़्स पर कन्ट्रोल करना हमारा काम है जमीआ अहले इस्लाम यह अज़्म कर लें तो इस मुक़द्दस महीने का साया हम हम पर ऐसा कि हमेशा के लिए दुनिया की मुसीबते और आखि़रत के अज़ाब से निजात पालेंगे अल्लाह ताला हम सब मुसलमानो को अमल सालेह की तौफ़ीक़ अता फ़रमाएं। आमीन!