हमीरपुर: बाईस साल की उम्र में शंकरपुर गांव की प्रधान बनी प्रियंका
- किशोरियों की हमदर्द, महिलाओं की सखी बनी प्रियंका
- दिल्ली का जॉब छोड़ गांव की समस्याओं के निदान में जुटी
- महिलाओं-किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर भी रहती हैं एक्टिव
हमीरपुर;
महज बाईस साल में कुरारा ब्लाक की ग्राम पंचायत शंकरपुर की कमान संभालने वाली स्नातक उत्तीर्ण प्रियंका गांव की किशोरियों की हमदर्द और महिलाओं की सखी बन चुकी है। किशोरियों और महिलाओं को शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के प्रति जागरूक करना हो या कुपोषण की समस्या हो प्रियंका के प्रयासों का असर हर जगह दिखाई देने लगा है। वहीं किशोरियां माहवारी प्रबंधन को लेकर पहले से ज्यादा सजग हुई है।
रघवा गांव निवासी बाईस वर्षीय प्रियंका निषाद ने शंकरपुर ग्राम पंचायत से प्रधानी के चुनाव में जीत दर्ज कर ब्लाक में सबसे युवा प्रधान का खिताब अपने नाम किया। प्रियंका ने अपनी कार्यशैली व व्यवहार से ग्राम पंचायत की किशोरियों व महिलाओं के लिए आदर्श बनी हैं। किशोरियों को माहवारी प्रबंधन के प्रति जागरूक करने के कार्य हो चाहे बच्चों के बीच कुपोषण को दूर करने के लिए प्रयासों की बात हो या फिर महिलाओ को गर्भावस्था में देखभाल या प्रजनन अधिकारों का मामला हो, प्रियंका इन सभी मुद्दों पर बखूबी समझ रखती हैं और इन मुद्दों पर वह महिलाओं व किशोरियों को जागरूक भी करती हैं। वही आंगनवाड़ी व स्कूलों की देखभाल और इनसे मिलने वाली सुविधाओं को भी सुगमता से ग्रामीणों तक पहुंचाने के कार्य में उनकी पैनी निगाह रहती हैं।
रघवा में सहयोग संस्था द्वारा संचालित लर्निंग सेंटर की संचालिका ज्योति बताती हैं वह किशोरियों को पढ़ाती हैं जिसमें ग्राम प्रधान प्रियंका आकर किशोरियों को माहवारी प्रबंधन, एनीमिया, किशोरावस्था में देखभाल आदि विषयों पर जागरूक करती हैं और उन्हें सेनेटरी पेड आदि की उपलब्धता में सहयोग करती हैं। किशोरियां करुणा, शिल्पी, शालिनी, दिव्यांशी, पलक आदि बताती हैं कि प्रधान प्रियंका हम लोगों की सहेली हैं। हमें वह बहुत अच्छी-अच्छी स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां देती हैं और हमें विभिन्न मामलों में परामर्श देती हैं।
दिल्ली का जॉब छोड़ लड़ा ग्राम प्रधानी का चुनाव
ग्राम प्रधान प्रियंका निषाद ने बताया कि उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई के बाद दिल्ली में जॉब करना शुरू कर दिया। लेकिन मन गांव की समस्याओं के समाधान पर लगा रहा। खासतौर से महिलाओं, किशोरियों की स्वास्थ्य-शिक्षा संबंधी समस्याएं उन्हें कचोटती रही। जब उनके ग्राम में प्रधानी का चुनाव हुआ तो उन्होंने भी पंचायत की राजनीति के द्वारा महिलाओं व किशोरियों का हालत बदलने की ठानी और ग्रामवासियों के विवेकपूर्ण मताधिकार के प्रयोग से वह ग्राम की प्रधान बनी। प्रियंका ने अपनी ग्राम पंचायत में अधिक से अधिक लोगों के आयुष्मान कार्ड बनवाने के साथ ही आंगनवाड़ी व स्कूली योजनाओं को सभी पात्रों तक पहुंचाने में विशेष भूमिका निभाई है।