ईश्वर-अल्लाह एक नहीं हो सकते!
राजेंद्र शर्मा
आखिर ये मोदी जी के विरोधी चाहते क्या हैं? हिंदू क्या अपने धर्म की रक्षा भी नहीं करें। और वह भी हिंदुस्तान में। आखिर, पटना में अटल जी के जन्म शताब्दी वर्ष के आयोजन में जुटे लोगों ने ऐसा क्या किया क्या था, जिसका इतना शोर मचाया जा रहा है। बेचारे हिंदू धर्म की ही रक्षा तो कर रहे थे।
एक तो भोजपुरी लोक गायिका देवी को ऐसे मौके पर मंच पर चढ़ने ही नहीं देना चाहिए था। पुराने टाइप के गायक-गायिकाओं को मंच और मंच के रास्ते सिर पर चढ़ाने के जमाने कब के लद गए।
शताब्दी अटल जी की होने से क्या हुआ, अब पार्टी तो मोदी जी की है। गाना-वाना अगर कराना ही था, तो किसी हिंदू-पॉप बैंड को बुलाना चाहिए था, जय श्रीराम गाने के लिए ; जैसे मुंबई में बुलाया गया था देवेंद्र फडनवीस के तीसरी बार के शपथ ग्रहण के मौके पर। पर भक्तों को निराश करते हुए देवी को मंच पर चढ़ाया गया। और देवी जी ने आते ही रामधुन छेड़ दी। पर नकली रामधुन ; होना चाहिए था जय श्रीराम, जय जय श्रीराम और लगीं करने रघुपति राजाराम। खैर! रघुपति राघव राजाराम तक को फिर भी हिंदू धर्मरक्षकों ने टॉलरेट कर लिया। पर देवी जी तो खुद को साक्षात देवी कहलवाने पर तुली हुई थीं। राजाराम का मामला तो फिर भी सिर्फ पुराने फैशन में नाम लेने का था, वह तो अटल जी के प्रोग्राम में अल्लाह की घुसपैठ कराने पर तुल गयीं।
और फिर वही होने लगा, जो कि हमेशा घुसपैठ के मामले में होता है। अल्लाह मियां को मंच पर जरा-सी एंट्री क्या मिल गयी, लगे हमारे ईश्वर से बराबरी का दावा करने। घुसपैठिया संस्कृति गायिका देवी की जुबान पर चढ़कर बोलने लगी — ईश्वर अल्लाह तेरो ही नाम! ईश्वर है, वही अल्लाह भी है। यानी हमारे ईश्वर की अपनी कोई खासियत ही नहीं है। कोई श्रेष्ठता नहीं है। ईश्वर की जगह अल्लाह से भी काम चलाया जा सकता है। दोनों बराबर जो ठहरे, बल्कि दोनों एक ही ठहरे, जिन्हें लोग अलग-अलग नामों से पुकारते हैं! पर यह सच कत्तई नहीं है। यह तो सिर्फ सेकुलर वालों का छलावा है। वास्तव में इसके सेकुलर होने की पोल तो उसी बंद में जरा सा आगे चलकर खुल जाती है, जब सन्मति देने का जिम्मा फिर हमारे भगवान के सिर पर डाल दिया जाता है। किसी गॉड, किसी अल्लाह के सिर पर नहीं, सिर्फ हमारे भगवान जी के सिर पर यह गुरुतर बोझ रखा जाता है — सब को सन्मति दे भगवान! बेशक, इसमें भी सेकुलर वालों के दबाव में सबको घुसा दिया गया है यानी सिर्फ सन्मति देने से काम नहीं चलने वाला; सन्मति सब को देनी पड़ेगी ; लेकिन इसकी जिम्मेदारी भगवान पर है। फिर बराबरी कहां रही?
बहरहाल, ये सब गहरी फलसफे की बातें हैं और सच पूछिए, तो पटना में तो इस सब तक जाने की नौबत ही नहीं आयी। हिंदू धर्म-रक्षक पहले ही अड़ गए, एक ही जुबान से ईश्वर और अल्लाह का नाम नहीं लेने देंगे! वह तो गनीमत समझिए कि भाई लोग ऐसी गुस्ताखी करने वाली जुबान को ही काटने पर ही नहीं अड़ गए और सिर्फ गायिका का मुंह बंद कराने के गांधीवादी अहिंसक रास्ते पर ही चलते हुए नारेबाजी और हंगामा ही करते रहे। वर्ना मंच पर खूनो-खून हो जाता और हिंदुस्तान थोड़ा-सा और अफगानिस्तान तथा हिंदू धर्मरक्षक दल थोड़ा-सा और तालिबान बन जाता।
अब प्लीज इसकी घिस-घिस मत करने लगिएगा कि देवी जी तो गांधी बापू का सबसे प्रिय भजन ही गा रही थीं। गांधी जी बेशक महान थे और उनकी महानता को सभी को नमन करना चाहिए। गांधी जी महानता के लिए श्रद्धांजलि में ही तो हिंदू धर्म रक्षकों ने गांधी का अहिंसक मार्ग अपनाया है और गायिका की जीभ पर छुरा नहीं चलाया है। गांधी जी का बेचारे और कितना ख्याल करेंगे? कुछ ख्याल दूसरे भी तो करें, जिनके गांधी जी इतने सगे बनते थे। वे क्यों नहीं अपने अल्लाह को हमारे ईश्वर के बराबर में बैठाने से बाज आते।
सच पूछिए तो गांधी जी की इन्हीं हरकतों ने उन्हें मरवाया था। राष्ट्रपिता थे भारत के और हमेशा भला चाहा पाकिस्तान का। ऊपर से हमीं को अहिंसा का उपदेश। नाथूराम जी को बापू की यही बात अच्छी नहीं लगी। गांधी जी के भक्त थे, देशभक्त और हिंदू-रक्षक वगैरह तो खैर थे ही, विकट संस्कारी भी थे ; गोलियां भी मारीं तो, पहले पांव छूकर आशीर्वाद लेकर। यानी जिसे बाद में बापू की हत्या कहकर प्रचारित किया गया, यहां तक कि जिसके लिए नाथूराम जैसे कट्टर देशभक्त और उसके एक संगी को फांसी तक दे दी गयी, जिसके लिए वीर सावरकर तक पर उनके बरी होने तक मुकद्दमा चलाया गया ; वह हत्या नहीं, बापू की मुक्ति थी। नाथूराम आदि तो महज साधन थे उनकी इस मुक्ति के, जो उन्होंने खुद बापू के आशीर्वाद से उन्हें दिलायी थी। गायिका देवी के नसीब में ऐसी मुक्ति तो छोड़ो, गाने-वाने से भी मुक्ति कहां ; वह तो अभी और मंच-मंच पर गाती फिरेंगी, जब तक कि बिहार पूरी तरह हिंदू धर्म रक्षकों का गढ़ नहीं बन जाता है।
रही ‘‘रघुपति राघव राजाराम…’’ की बात तो यह कोई राष्ट्रगान तो है नहीं, जिसका बीच में रोके जाने से अपमान हो जाता हो। राष्ट्रगान छोड़ो, यह तो राष्ट्रगीत तक नहीं है यानी अपमान होने का तो कोई सवाल ही नहीं है। और राष्ट्रीय या राष्ट्र भजन का पद अगर अब तक खाली है, तो क्या इसका मतलब यह भी नहीं है कि रघुपति राजाराम… को राष्ट्र भजन बनाने लायक कभी समझा ही नहीं गया। वर्ना नेहरू जी भी तो मोदी जी की तरह तीन-तीन बार प्रधानमंत्री चुने गए थे, उन्हें इसे राष्ट्र भजन का पद देने से किसने रोका था? और जिसे नेहरू जी ने राष्ट्र भजन का दर्जा नहीं दिया, उसे मोदी जी के राज में यह दर्जा दिया जाए, यह मोदी जी नहीं करने वाले। मोदी जी, नेहरू जी की गलतियां दुरुस्त करने के मिशन पर हैं, न कि उनकी हिंदू-विरोधी गलतियों को आगे बढ़ाने के मिशन पर। राष्ट्र का दर्जा अगर देना ही होगा, तो जय श्रीराम को देंगे, न कि ईश्वर, अल्ला तेरोई नाम को। ईश्वर और अल्लाह, मोदी जी के रहते कभी बराबर नहीं हो सकते। ईश्वर और अल्लाह, मोदी जी के रहते भजन की एक पंक्ति में कभी नहीं आ सकते। ईश्वर और अल्लाह के नाम, कभी कम-से-कम किसी सरकारी कार्यक्रम में कलाकार की जुबान पर एक साथ नहीं आ सकते। वर्ना पीछे-पीछे ईडी पहुँच जाएगी।