गाजीपुर बॉर्डर बना किसान आंदोलन का बड़ा केंद्र, प्रशासन आसपास क्षेत्रों में बंद कीं इंटरनेट सेवाएं
नई दिल्ली: कृषि कानूनों के विरोध में आज किसान आंदोलन का 66वां दिन है। मगर, पिछले 4 दिन में 2 बार हुई हिंसा के बाद आंदोलन अब नया मोड़ ले रहा है। सिंघु बॉर्डर के साथ ही अब गाजीपुर भी बड़ा केंद्र बनता नजर आ रहा है। वहीं किसानों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि को देखते हुए प्रशासन की बेचैनी एक बार फिर से बढ़ गई है। स्थानीय प्रशासन ने गाजीपुर बॉर्डर के आसपास क्षेत्रों में इंटरनेट सेेवा को बंद कर दिया है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश से भारी संख्या में गाजीपुर कूच करने के किसानों के फैसले के बाद अब एनएच 24 की दोनों सड़को को बंद कर दिया गया है।
गाजीपुर बॉर्डर किसान आंदोलन का बना नया केंद्र
गौरतलब है कि दो महीने पहले जब कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने दिल्ली की सरहदों पर डेरा डाला था तो सिंघु बॉर्डर सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा। मगर पिछले दिनों राकेश टिकैत के भावुक भाषण के बाद अब गाजीपुर बॉर्डर किसान आंदोलन का नया केंद्र बनकर उभर गया है। आज भारी तादाद में पश्चिमी उत्तरप्रदेश से किसान गाजीपुर बॉर्डर की ओर कूच कर रहे हैं।
निर्णायक रहा शुक्रवार का दिन
किसान आंदोलन के लिए शुक्रवार का दिन बेहद निर्णायक साबित हुआ। एक तरफ जहां किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं ने वापस जाते हुए किसानों को पलटने पर मजबूर कर दिया। गाजीपुर धरना स्थल पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आने वाली किसानों की भीड़ में अचानक बढ़ोतरी हो गई। वहीं, आज से किसान आंदोलन में राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप भी साफ़ दिखाई देने लगा है।
पहुंचे तीन बड़े नेता
शुक्रवार को किसान आंदोलन स्थल गाजीपुर पर तीन बड़े नेताओं के आने के बाद यह बात साफ हो गई है। सुबह सबसे पहले राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और देर शाम कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू किसानों के बीच दिखाई दिए।
छोटे चौधरी के पहुँचते ही बढ़ी भीड़
छोटे चौधरी के आने के बाद से ही गाजीपुर धरना स्थल पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आने वाली किसानों की भीड़ में अचानक बढ़ोतरी हो गई। गुरुवार की शाम तक ऐसा लग रहा था कि जैसे मानो धरना एक से दो दिन में स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। लेकिन राकेश टिकैत के आंसुओं ने पूरी बाजी ही पलट कर रख दी। अभी तक किसान आंदोलन में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के वयोवृद्ध किसान ही दिखाई पड़ते थे, लेकिन गुरुवार की रात हुई पुलिस कार्रवाई के बाद युवा पीढ़ी आंदोलन की तरफ आकर्षित हुई है। युवा नेताओं में भारतीय जनता पार्टी और उनके नेताओं के खिलाफ क्रोध साफ झलक रहा है।