एस्टर MIMS हॉस्पिटल में 4-वे किडनी स्वैप ट्रांसप्लांट से चार मरीजों को मिला नया जीवन
• 4 मरीजों और उनके परिवारों को नया जीवन देने वाली यह प्रक्रिया ट्रांसप्लांटेशन के लिए उपयुक्त किडनी की कमी की एक अहम समस्या को भी दूर करती है, जिसका इस्तेमाल भारत में किडनी फेल्योर से पीड़ित मरीजों को ठीक करने के लिए किया जा सकता है
• हाल में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, भारत में हर साल 1 से 2 लाख मरीजों के किडनी ट्रांसप्लांटेशन की जरूरत है, लेकिन वास्तव में केवल 5000 मरीजों का किडनी ट्रांसप्लांट हो पाता है। केरल ऑर्गनाइजेशन फॉर ऑर्गन शेयरिंग (KNOS) के अनुसार, राज्य में 1780 मरीज किडनी ट्रांसप्लांटेशन का इंतजार कर रहे हैं
लखनऊ: कालीकट के एस्टर MIMS हॉस्पिटल ने बिल्कुल अभिनव प्रक्रिया को अपनाते हुए, चार दयालु डोनर्स की मदद से किडनी ट्रांसप्लांटेशन (kidney transplantation) की जरूरत वाले चार मरीजों को नया जीवन दिया। किडनी ट्रांसप्लांटेशन की इस अभिनव प्रक्रिया में क्रॉस-मैचिंग के माध्यम से ट्रांसप्लांटेशन के लिए उपयुक्त किडनी का चयन किया गया और 4 लोगों की जिंदगी बचाई गई। भारत में दूसरी बार किसी एक ही चिकित्सा केंद्र में इतनी जटिल प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। वर्तमान में पूरे देश में फैल चुकी कोविड-19 महामारी के संदर्भ में लागू सभी अतिरिक्त मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन करते हुए, रीनल ट्रांसप्लांट टीम ने 8 सर्जरी को सफलतापूर्वक पूरा किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मरीज और डोनर्स पूरी तरह से ठीक हो जाएं। केरल की स्वास्थ्य मंत्री, के. के. शैलजा ने इस टीम की विशेष रूप से प्रशंसा की है। रीनल फेल्योर ( Renal failure) के अंतिम चरण से जूझ रहे मरीजों की जान बचाने के लिए 4-वे स्वैप ट्रांसप्लांट प्रक्रिया ( Swap transplant process) बेहद कारगर साबित हुई है, क्योंकि इस चरण में ज्यादातर मरीज क्रोनिक किडनी रोग से ग्रस्त हो जाते हैं और इससे भारत में हर साल 1.36 लाख वयस्कों की मौत होती है।
इस प्रक्रिया की शुरुआत तब हुई, जब री-ट्रांसप्लांट की जरूरत वाली दो महिला मरीजों को पूरी तरह से स्वस्थ डोनर्स के साथ गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया। दोनों डोनर्स का ब्लड ग्रुप O+ था, जो यूनिवर्सल डोनर माने जाते हैं। 6 महीनों तक चलने वाले क्रॉस-मैचिंग के कई सत्रों के बाद इन दोनों महिला मरीजों के लिए उपयुक्त डोनर्स की पहचान की गई, और फिर एक मरीज-डोनर की जोड़ी ने इस प्रक्रिया में स्वेच्छा से भाग लिया। इस प्रक्रिया के दौरान एक ABO असंगत जोड़ी को ABO संगत जोड़ी में बदल दिया गया, जिससे ट्रांसप्लांट टीम चौथे ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सके।
नेफ्रोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. सजीथ नारायणन ने इस प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा, “स्वैप ट्रांसप्लांट की कामयाबी पूरी तरह से नेफ्रोलॉजिस्ट और मरीजों के बीच आपसी सम्मान और भरोसे पर निर्भर है। इन मरीजों, डोनर्स और सभी के परिवार के सदस्यों ने हम पर जो भरोसा दिखाया है, उसका हम सम्मान करते हैं क्योंकि उनके भरोसे की वजह से ही हम इस जटिल प्रक्रिया के साथ-साथ सभी 8 सर्जरी को अच्छी तरह पूरा करने में सफल हुए हैं।”
ट्रांसप्लांट इम्यूनोलॉजी लैब ( Transplant Immunology Lab) और नेफ्रोलॉजी टीम द्वारा इम्यूनोलॉजिकल प्रोफाइलिंग के बाद, सभी मरीज-डोनर की जोड़ी को व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर परामर्श दिया जाता है। एस्टर MIMS हॉस्पिटल की एथिकल कमेटी ने मरीजों एवं डोनर्स के सभी विवरणों की अच्छी तरह जांच की तथा ट्रांसप्लांट टीम ने आकलन करने के बाद सर्जरी की योजना तैयार की, जिसके आधार पर राज्य की जोनल ट्रांसप्लांट अथॉराइजेशन कमेटी ने इस सर्जरी को मंजूरी दी। इसके बाद हॉस्पिटल के प्रबंधन ने बाकी का काम पूरा किया और ट्रांसप्लांट के दिन के लिए आवश्यक लॉजिस्टिक्स की व्यवस्था की।
चारों मरीजों और डोनर्स को सर्जरी से एक दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया। फिर उनका कोविड-19 टेस्ट किया गया और उन्हें अगले दिन सुबह ट्रांसप्लांट के लिए ले जाया गया। दो मरीजों का ट्रांसप्लांट उसी दिन किया गया, जबकि अगले दिन बाकी के दो मरीजों का ट्रांसप्लांट पूरा किया गया। सभी मरीजों और डोनर्स की सर्जरी में किसी परेशानी या जटिलता का सामना नहीं करना पड़ा। सभी चार मरीजों का यूरिन आउटपुट जल्द ही शुरू हो गया।
इससे पहले, कालीकट के एस्टर MIMS हॉस्पिटल ने केरल राज्य में किडनी ट्रांसप्लांट के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए, 3-वे स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट को सफलतापूर्वक पूरा किया था। 4-वे स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट सही मायने में ऑर्गन डोनेशन का इंतजार कर रहे मरीजों के लिए बेहद असरदार और व्यावहारिक समाधान है, जो भारत में इस क्षेत्र में एक नया बेंचमार्क सेट करता है।