कोरोना संक्रमण पर विदेशी तब्लीग़ी जमातियों को बलि का बकरा बनाया गया, बॉम्बे हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मुंबई: भारत में कोरोना संक्रमण पर तब्लीग़ी जमात को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने शनिवार को बेहद अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा है कि तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल विदेश से आए लोगों को बलि का बकरा बनाया गया। अदालत ने इसे लेकर मीडिया के द्वारा किए गए प्रोपेगेंडा की भी आलोचना की और विदेश से आए जमातियों पर दर्ज एफ़आईआर को भी रद्द कर दिया। फैसले का इस्लामिक संगठन जमीअत उल्माए हिन्द ने स्वागत किया है|
जस्टिस टीवी नलवडे और जस्टिस एमजी सेवलिकर की बेंच ने घाना, तंजानिया, इंडोनेशिया, बेनिन और कुछ और देशों के तब्लीग़ी जमात से जुड़े लोगों की याचिकाओं को सुना। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे भारत वैध वीजा पर आए थे। जब वे एयरपोर्ट पर पहुंचे तो उनकी स्क्रीनिंग की गई, कोरोना टेस्ट किया गया और नेगेटिव आने पर ही उन्हें एयरपोर्ट से जाने दिया गया।
वेबसाइट सत्य डॉट कॉम की खबर के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा कि उन्होंने अहमदनगर पहुंचने पर जिले के डीएसपी को बता दिया था और 23 मार्च से लॉकडाउन लगने के कारण होटल, लॉज बंद थे और उन्हें मसजिद में रुकने की जगह मिल सकी। उन्होंने कहा कि वे किसी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं थे और उन्होंने जिलाधिकारी के किसी आदेश का उल्लंघन नहीं किया।
अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, ‘एक राजनीतिक सरकार किसी महामारी या आपदा के दौरान बलि का बकरा खोजती है और हालात इस बात को दिखाते हैं कि ऐसी संभावना है कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाया गया है। पहले के हालात और भारत के ताज़ा आंकड़े यह दिखाते हैं कि इन लोगों के ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।’ अदालत का मतलब इन विदेशियों पर दर्ज एफ़आईआर को लेकर था।
अदालत ने कहा कि हमें इसे लेकर पछतावा होना चाहिए और उन्हें हुए नुक़सान की भरपाई के लिए कुछ सकारात्मक क़दम उठाने चाहिए। अदालत ने 29 विदेशियों के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करने का आदेश दिया। ये एफ़आईआर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा टूरिस्ट वीज़ा नियमों के उल्लंघन को लेकर दर्ज की गई थी।
मार्च के महीने में दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित तब्लीग़ी जमात के मरकज़ में एक कार्यक्रम हुआ था। इसमें क़रीब 9000 लोगों ने शिरकत की थी और देश-विदेश से आए लोग शामिल हुए थे। बड़ी संख्या में आए भारतीय वापस अपने राज्यों में भी चले गए थे लेकिन लॉकडाउन के कारण विदेशों से आने वाले लोग मरकज़ में ही फंसे रह गए थे।
यहां से निकले लोग जब देश के अलग-अलग राज्यों में पहुंचे तो वहां कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेज़ी से बढ़े। लेकिन महामारी के वक्त में भी कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर हिंदू-मुसलमान के नाम पर नफरत फैलाने में कसर नहीं छोड़ी और कुछ टीवी चैनलों ने भी खुलकर उनका साथ दिया। हाई कोर्ट ने इसे लेकर मीडिया की भी आलोचना की है।
दिल्ली के मरकज़ में आए इन विदेशियों के ख़िलाफ़ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रोपेगेंडा चलाया गया और ऐसी तसवीर बनाने की कोशिश की गई कि भारत में कोरोना का संक्रमण फैलाने के लिए ये ही लोग जिम्मेदार हैं।
जस्टिस नलवडे ने कहा कि ऐसा करना इन विदेशियों का धार्मिक उत्पीड़न था। यहां याद दिलाना ज़रूरी होगा कि जस्टिस टीवी नलवडे और जस्टिस एमजी सेवलिकर की ही बेंच ने फ़रवरी 2020 में कहा था कि नागरिकता क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों को राष्ट्रविरोधी या देशद्रोही नहीं कहा जा सकता है।
जून में मद्रास हाई कोर्ट ने भी तब्लीग़ी जमात से जुड़े विदेशियों के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द कर दिया था और कहा था कि उन्हें बहुत कुछ सहना पड़ा है और केंद्र से अपील की थी कि वह विदेशियों द्वारा उनके देशों में भेजे जाने के अनुरोध पर विचार करे।