हिन्दुस्तान के पाचवें अमीरूलहिन्द: मौलाना अरशद मदनी
मो. आरिफ नगरामी
जांनशीन हजरत शैखुल इस्लाम, सदरूल मुदर्रिसीन, व उस्तादे हदीस, दारूलउलूम देवबंद, रूक्ने राब्तये आलमे इस्लामी, मक्का मुकर्रमा, और सदर, जहमीअत उलमाये हिन्द, मौलाना सैयद अरशद मदनी को अमारते शरीआए हिन्द के एक बावेकार नुमाइन्दा, इजतेमा में हिन्दुस्तान के पांचवे अमीरूल हिन्द के बावेकार मन्सब के लिए मुनतखब कर लिया गया है। हालांकि मौलाना अरशद मदनी ने अपनी जईफुलउमरी की वजह से माजरत जाहिर की। मगर तमाम मजमा की ताईद के बाद वह अमीरूल हिन्द मुन्तखब हुये।
मौलाना अरशद मदनी साहब मिल्लते इस्लामियाये हिन्द के अजीम दानिश्वर, उलूमे दीनिया, वफुनूने मुदावेला के मुहक्किक, दावते हक, व खिदमते खल्क के अजीम पैकर, हक व सदाकत, इस्लामी अकूव्वत व मोहोब्बत, बीसवीं सदी के अजमी अबकरी, व आफाकी, शख्सियत है। हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी साहब उन तारीखसाज हस्तियों मे नुमाायां मकाम रखते है और एखलास व ईसार के बाज मैदानों में सितमरसीदा इन्सानियत के लिए मसीहा की शान से मुतअर्रिफ है। मौलाना अरशद मदनी के अजीम ताबनाक खिदमात उनका मुसबत जौक, तामीरी फिक्र, मिल्लत की केयादत व मसीहाईये उम्मत के नागुफतादेह पेचीदा मसाएल, इन्तेशार की मसमूम फिजा में मौलाना अरशद मदनी अल्लाह ताआला के तवक्को और ईमान के बाद अस्बाब व अवामिल के तौर पर एक रोशन किरन और दर्दमन्दों का सहारा हैं।
हिन्दुस्तान में मुगलिया सलतनत के जवाल के बाद मुसलमानों की शरई मसाएल का हल मुमकिन नहीं रह गया था। इसलिये कि अदालतों में मुसलमान जज नहीं रह गये थे। और जो थे भी वह शरई नेजाम को पेशे नजर नहीं रखते थे। इसलिये मुल्क में शरई दारूल कजा का केयाम एक नागुजीर जरूरत थी। जमीअत उलमाये हिन्द ने अपने केयाम केे रोज से ही वतने अजीज मेें उम्मते मुसलमां की शीराजाबंदी और ऐहकामाते शरियत के नेफाज और इजरा के लिए अमारते शरैया के नेजाम को नागुजीर करार दिया था। चुनांचे जमीअतउलमा के केयाम के महज एक साल बाद 1920 में जब हजरत शैखुलहिन्द मौलाना महमूद हसन साहब देवबंदी, मालदा की जेल से वापस तशरीफ लाये तो जमीअत उलमाये हिन्द का मुस्तकिल सदर मुन्तखब किया गया। आप की सदारत में जमीअतुल उलमा का इजलास मुन्अकिद हुआ। जिसमेें हजरत शेखुल हिन्द ने कौमी सतेह पर अमारते शरीयाए हिन्द के नेजाम को कायम करने और अमीरूल हिन्द के इन्तेखाब की तजवीज पेश की। लेकिन उस वक्त चंद वजूहात की बिना पर यह काम नहीं हो सका । बाद मेें महज 12 दिनों के बाद मौलाना महमूद हसन का इन्तेकाल हो गया। तो उनके जांनशीन हजरत शेखुल इस्लाम मौलाना सैयद हुसैन अहमद मदनी ने इस मिशन को आगे बढाया। दोनों अमीर 1967 को मरकजी दफतर जमीअत उलमाये हिन्द देहली में एक नुमाईन्दा इजतेमा बुलाया गया और अमारते शरैयाये हिन्द का केयाम अमल मेें आया। इस जलसे में अमीरूल हिन्दं के इन्तेखाब की तजवीज पेश की गयी। इस मंसब के लिये सिर्फ एक नाम सामने आया और वह मुहद्दिसे कबीर हजरत मौलाना हबीबुर्रहमान आजमी साहब का था। पूरे इजतेमा के इत्तेफाक राय से हजरत को अमीरूल हिन्द मुन्तखब कर लिया गया। इनकी रेहलत के बाद 9 मई, 1992 में मौलाना असद मदनी साहब बाद अज़ीम मौलाना मरगूबुुर्रहमान साहब बिजनौरी और फिर मौलाना कारी सैयद मोहम्मद उसमान साहब मन्सूरपुरी को बिलतर्तीब अमीरूल हिन्द मुन्तखब किया गया।
मौलाना कारी सैयद मोहम्मद उसमान मन्सूरपूरी के इन्तेकाल के बाद अमारत शरीयाए हिन्द की सरगर्मियों को जारी रखने के लिये इस बात की सख्त जरूरत थी कि जल्द अज़ जल्द नये अमीर का इन्तेखाब किया जाये और इसी के पेशे नजर 3 जुलाई 2021 को जमीअत उलमाये हिन्द के सदर दफतर, नई देहली मेें वाके मदनी हाल में इमारत शरीयाए हिन्द का एक रोजा नमाइन्दा इजतेमाये दारूलउलूम, देवबंद के मुहतमिम व शैखुलहदीस मौलाना मुफती अबुलकासिम नोमानी साहब की जेरे सदारत मुनआकिद हुआ जिस में मुल्क भर से अमारते शरीया के अरकान शूरा शरीक हुये और इत्तेफाक राये से आलमे इस्लाम की मायानाज शख्सियत आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रूक्न तासीस और जमीअत उलमाये हिन्द के सदर हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी को हिन्दुस्तान का अमीरूल हिन्द मुन्तखब कर लिया गया।
अमीरूल हिन्द मौलाना अरशद मदनी साहब की पैदाइश 1941 में शैखुल इस्लाम मौलाना हुसैन अहमद मदनी के घर होई। इब्तेदाई तालीम देवबंद में हासिल की। 1959 में बाजाब्ता तौर पर दारूलउलूम देवबंद में दाखला लिया। दारूलउलूम देवबंद से फरागत के बाद मौलाना अरशद मदनी साहब 1965 में बिहार के मरकजी अदारा जामियाए कासिमिया जिला गया में मदर्रिस मुकर्रर हुये और तकरीबन डेढ सालों तक यहां तदरीसी खिदमात अन्जाम दीं । फिर 1967 की इब्तेदा में आप मदीना मुनव्वरा तशरीफ ले गये और तकरीबन चौदह माह वहां मुकीम रहे और फिर दोबारा हिन्दुस्तान तशरीफ ले आये और 1969 में जामिया कासिमिया शाही मुरादाबाद में मनसबे तदरीसी पर फायेज हुये। फिर 1982 में दारूलउलूम देवबंद में मदर्रिस मुकर्रर हुये। मौलाना अरशद मदनी साहब ने दारूलउलूम देवबंद उस्तादे हदीस के साथ साथ नेजामते तालीमात के ओहदे पर भी काम किया और फिर 14 अक्तूबर 2020 को दारूलउलूम की मजलिसे शूरा में मुतफक्का तौर पर आपको दारूलउलूम देवबंद का सदरूलमुदर्रिसीन मुन्तखब किया गया।
अमीरूल हिन्द मौलाना असद मदनी साहब को तालीम और तअल्लुम दर्स व तदरीस के साथ साथ अपने वालिद गेरामी हजरत शैखुल इस्लाम और बिरादरे अकबर मौलाना असद मदनी साहब की तरह मिल्ली और कौमी सरगर्मियों में भी खास दिलचस्पी थी। और आप इस मैदान में नुमाया खिदमात अन्जाम दी। बिल्खुसूस उलमाये हिन्द के प्लेटफार्म से आपने अब तक मुल्क व मिल्लत और इस्लामी तशख्खुस को बरकरार रखने के लिये अहेम काम किया। मौलाना असद मदनी साहब ने जमीअत उलमाये हिन्द के प्लेटफार्म से हिन्दुस्तानी मुसलमानों की जो शान्दार और मिसाली केयादत की है वह तारीख में सुनहरे अल्फाज में लिखे जाने के काबिल हैं। आपकी दीनी, मिल्ली, कौमी, समाजी और मआशरती खिदमात नाकाबिले फरामोश हैं। अब आपको अमीरूल हिन्द मन्तखब कर लिया गया है। इसे हुस्ने इन्तेखाब से मिल्लते इस्लामियाए हिन्द में बेहद खुशी का माहौल है।मिल्लते इस्लामिया इन्हें कद्र व मन्ज़िलत और वेकार व एहतेराम की नजरों से देखती है। मौलाना असद मदनी शैखुल इस्लाम हजरत मौलाना हुसैन अहमद मदनी के जांनशीन ओर उनके उलूम के अमीन हैं । उम्मीद है कि इन्शाअल्लाह आपकी अमारत मेें भी मुसलमानाने हिन्द हालात का मुकाबला करते हुुये एक रौशन मुस्तकबिल की तरफ बढेगी और अपनी पूरी हिम्मत और हौसले और अपने मजहबी और मिल्ली इम्तेयाज, शान व शौकत और अपनी इन्फ्रेरादी शख्सियत के साथ इस मुल्क में ज़िन्दगी गुजारेगी।