सड़क पर किसान और सियासत में घमासान
- योगी मॉडल को मिली दिल्ली की केजरीवाल सरकार की चुनौती
- संघ समर्थक कांग्रेसियों के द्वारा मचाया जा रहा पार्टी में घमासान
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।सर्दी अपने पूरे शबाब पर है पारा लगातार माइनस की ओर है इसी बीच मोदी की भाजपा पश्चिम बंगाल में सियासी संग्राम कर वहाँ की सत्ता हथियाने की जुगत में है तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं तो विपक्ष यूपी के सियासी दंगल में मोदी मॉडल और योगी मॉडल को चुनौती दें रहा है अब देखना यह है कि क्या मोदी की भाजपा पश्चिम बंगाल के सियासी संग्राम में बाज़ी मार पाएँगी ? या ममता बनर्जी मोदी की भाजपा को हरा कर बंगाल में अपना जलवा क़ायम रख पाएगी। वहीं देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में मोदी और योगी मॉडल को चुनौती दी जा रही हैं। यूपी में मोदी-योगी मॉडल की अग्निपरीक्षा होगी क्या योगी मॉडल मोदी की पीठ पर बैठकर एक बार फिर जीत जाएगा या यहाँ भी हार हो होंगी ? योगी सरकार पर विपक्ष हमलावर है उससे लगता है कि योगी मॉडल जनता के पैमाने पर खरा नहीं उतर रहा है।जब देश की सियासत की बात हो और सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का ज़िक्र न हो यह हो ही नहीं सकता|
कांग्रेस और असंतुष्ट
कांग्रेस में जिस तरीक़े से कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर घमासान मचा हुआ है न असंतुष्ट नेता अध्यक्ष बनने या बनाने की पहल कर पा रहे हैं और न पार्टी सही तरीक़े से खड़ी होने दें रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है| संघ समर्थक कांग्रेसी संकट के समय में पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े कर रहे हैं जिसकी वजह से झूठ और धार्मिक ध्रुवीकरण की बुनियाद पर बनी मोदी सरकार को बेनक़ाब नहीं कर पा रही हैं। वहीँ देश की सियासत का पारा मोदी सरकार के ख़िलाफ़ चालीस से पैंतालीस के आसपास घूम रहा है, इसके पचास के पार जाने पर मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार का प्रयास है कि यह पारा न बढ़े और किसानों के आंदोलन को जैसे तैसे करके निपटा दिया जाए|
फुट डालने का प्रयास
अभी तक मोदी सरकार किसानों को समझाने में नाकाम रही हैं अब मोदी सरकार का प्रयास है कि किसानों में फूट डाली जाए उसमें भी सरकार को कोई सफलता हाथ नहीं लग रही हैं कोई भी किसान संगठन जनमानस के ख़िलाफ़ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। मोदी सरकार के मुताबिक़ किसानों के हक़ में बनाए गए तीनों क़ानून जिन्हें किसान सहित समूचा विपक्ष अंबानी अड़ानी समूहों के हक़ में मान रहा परन्तु मोदी सरकार इन्हें वापिस लेने की किसानों और समूचे विपक्ष की माँग को ख़ारिज कर अपने द्वारा बनाए गए तीनों क़ानूनों के साथ खड़ी है और अपनी बात पर अड़ी हुई हैं और किसान भी मोदी सरकार के इस हठयोग का विरोध कर रहा है जिसका समूचा विपक्ष समर्थन कर रहा है जिसका सरकार पर कोई असर होता नज़र नहीं आ रहा है जबकि किसान अपने संघर्ष के चलते माइनस में जा रहे पारे के बीच सड़क पर पड़ा है।
बातचीत या दिखावा
किसानों के नेताओं से बातचीत करने की कोशिश की जा रही हैं या दिखावा किया जा रहा है ताकि जनता में यह संदेश जाए कि सरकार तो आंदोलनात्मक किसानों से वार्ता करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन किसान सरकार की बात सुनने को तैयार नहीं हैं जबकि यह सच नहीं है मोदी सरकार का यह ड्रामा इस लिए हो रहा है ताकि देश की जनता में किसानों के प्रति सहानुभूति पैदा न हो लेकिन जैसे-जैसे किसानों का आंदोलन आगे बढ़ रहा है जनता में किसानों के प्रति सहानुभूति पैदा हो रही हैं। अब देखना यह है कि मोदी सरकार का ड्रामा सफल होता है या किसानों का माइनस में जा रहे पारे के बीच सड़क पर खुले आसमान में संघर्ष करना यह तो आने वाले दिनों में साफ़ हो पाएगा।अब बात करते हैं पश्चिम बंगाल के सियासी संग्राम की ममता बनर्जी ने बड़ी ही चालाकी से पश्चिम बंगाल की सियासत से लाल सलाम को हटा कर मोदी की भाजपा को विपक्ष की भूमिका में फ़िट कर दिया था ताक़ि राज्य का मुसलमान मोदी की भाजपा को हराने के लिए पूरी तरह से ममता बनर्जी के साथ खड़ा रहे वह लाल सलाम की तरफ़ न भागें उनकी योजना के अनुसार ऐसा हुआ भी मोदी की भाजपा राज्य में विपक्ष की भूमिका में पूरी तरीक़े से फ़िट हो चुकी हैं हिन्दू मुसलमान की रणनीति के चलते मोदी की भाजपा की वजह से अब ममता बनर्जी को लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं सियासत भी क्या चीज़ है पहले दुश्मन को पालने का काम किया जाता है फिर जब दुश्मन शक्तिशाली हो जाता है तो उसे निपटाने का प्रयत्न किया जाता है यह बात अलग है कि वह हर बार सफल ही हो कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिसको पाला पोसा जाता है उसी से हार का स्वाद भी चखना पड़ता है पश्चिम बंगाल में इस बार शायद कमल खिल जाए अगर ऐसा हुआ तो उसमें ममता बनर्जी की पार्टी की बड़ी भूमिका होगी।
यूपी की बात
अब बात करते हैं यूपी के सियासी दंगल में बड़े-बड़े सियासी पहलवान अपने सियासी दांव खेल देश के सबसे बड़े राज्य पर अपना क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रहे हैं ऐसा नहीं है कि यहाँ बड़े दल ज़ोर आज़माइश नहीं कर रहे हैं करते ही है इस बार ख़ास बात यह है कि यूपी के सियासी दंगल में 2022 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के अध्यक्ष एवं सांसद सदस्य असदउद्दीन ओवैसी बड़े दम ख़म के साथ कूद रहे बिहार चुनाव में सफलता मिलने के बाद ओवैसी का कॉन्फ़िडेंस बढ़ा हुआ है जिसके बाद वह पश्चिम बंगाल और यूपी लड़ने की घोषणा कर चुके हैं इसी के मद्देनज़र वह यूपी आकर कुछ नेताओं से मिलकर भी गए है पिछले चुनाव में मोदी की भाजपा का हिस्सा रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से मुलाक़ात की और उनके द्वारा बनाए गए भागीदारी संकल्प मोर्चा के साझीदार बनने की घोषणा भी कर गए।पत्रकारों से बातचीत करते हुए असदउद्दीन ओवैसी ने कहा कि हम अब राजभर द्वारा बनाए गए मोर्चे का हिस्सा है। ओवैसी से यह पूछे जाने पर कि क्या वह पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ भी गठबंधन करेंगे इस पर उन्होंने कहा कि भविष्य में क्या होगा यह मैं नहीं बता सकता हूँ भविष्य में क्या होगा यह भविष्य में ही पता चलेगा। यूपी के सियासी दंगल में ओवैसी ही नहीं आम आदमी पार्टी भी कूद गईं हैं दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यूपी आकर सरकारी स्कूल देखने की इच्छा जताई लेकिन योगी मॉडल ने दिल्ली मॉडल से घबराकर उन्हें स्कूल नहीं देखने दिया उनके रास्ते में पुलिस लगा दी जैसा वह पहले किसी भी मामले में रोकती रही हैं इस पर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने योगी मॉडल की खिल्ली उड़ाई और कहा कि दिल्ली मॉडल का सामना करने से डर रही हैं योगी सरकार, उनके इस आरोप में दम भी है उनको स्कूल देखने से क्यों रोका गया इसका मतलब यह है कि यूपी सरकार की सरकारी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा दिल्ली में दी जा रही शिक्षा का सामना नहीं कर सकती हैं। अब बात करते हैं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की जो अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं इस कठिन समय के लिए कोई और नहीं उसके नेता ही ज़िम्मेदार हैं। सिद्धान्तवादी बेबाक़ निडर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी जिस मज़बूती के साथ मोदी सरकार की नाकामियों को पकड़ जनता के सामने रख रहे हैं देश में कोई दूसरा नेता नहीं हैं जो मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध कर रहा हो यह बात सच है लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को राहुल गाँधी का मोदी सरकार पर हमलावर होना सहीं नहीं लगता है क्योंकि राहुल गाँधी सच बोलते हैं जो संघ समर्थक कांग्रेसियों को रास नहीं आ रहा है इसी लिए सीधे तौर पर वार न कर अंदर ही अंदर कांग्रेस को कमजोर करने में लगे हैं।
इंदिरागांधी का फार्मूला अपनाएं राहुल
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी को चाहिए अपनी माँ त्याग मूर्ति कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी और बहन श्रीमती प्रियंका गाँधी आदि सरीखे नेताओं को साथ लेकर नई कांग्रेस का गठन कर इस कांग्रेस को इन्हीं संघ समर्थक कांग्रेसियों को दे देनी चाहिए जैसे आयरन लेडी श्रीमती इंदिरा गाँधी ने किया था तब जाकर यह सही हो जाएँगे देश के अधिकांश कांग्रेसी राहुल गाँधी के छाते के नीचे खड़े दिखाई देंगे लेकिन सरल स्वभाव की मालकिन श्रीमती सोनिया गाँधी से यह कल्पना करना मुश्किल है बाक़ी कोई कुछ भी कहें सच यही है।ख़ैर किसानों से लेकर सियासी संग्राम और सियासी दंगल सहित कांग्रेस में मचे घमासान पर जो ख़ाका खिंचा गया है वह पूरी हक़ीक़त को ध्यान में रखते हुए खींचा गया है यही सब हो रहा है देश की सियासत में और मोदी सरकार अंबानी अड़ानी समूहों के लिए जो कुछ पिछले छह सालों में कर चुकी है या कर रही हैं वह किसी से छिपा नहीं है वही सब इतना हो गया कोई भी विश्वास करने को तैयार नहीं हैं।मोदी सरकार की विश्वसनीयता को लेकर आमजन में वो बात नहीं रही जैसी आज से पहले थी इस पर विचार ज़रूर करना चाहिए मोदी सरकार को नहीं तो यह ग्राफ हर रोज़ गिर ही रहा है कही 303 से फिर 3 पर न पहुँचा दें देश की जनता जिसने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया और भाजपा को 2 से 303 तक पहुँचा दिया इसे ही जनता कहते हैं यही लोकतंत्र है अबकी बार किसकी सरकार जब जब लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी ने हिटलर बनने की कोशिश की है उसका हश्र क्या हुआ है यह इतिहास के पन्ने पलट कर देखने से शायद अक्ल आ जाए बाक़ी सब ठीक है नहीं है तो समय आने पर हो ही जाएगा।