यूपी के एलेक्शन में किसानों की रणभेरी
मो. आरिफ नगरामी
उत्तर प्रदेश का एलेक्शन जैसे जैसे करीब आ रहा है वैसे वैसे वहां की सियासत नये नये रूप एख्तियार कर रही है। सियासी पार्टियों की जबर्दस्त तैयारियों के दरमियान अब किसान संगठनों ने एलान किया है कि वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के एलेक्शन में बीजेपी के खिलाफ एक भरपूर और संगठित अभियान चलायेगी। किसान संगठनों ने बीते दिन लखनऊ मेें एक प्रेस कान्फ्रेंस के जरिये केंद्र और राज्य सरकार को वार्निंग दी है कि अगर उनकी मांगें मन्जूर नहीं की गयी तो वह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को भी दिल्ली बना देंगेें। मतलब कि लखनऊ की सीमाओं को सील कर दिया जायेगा।
किसान लीडर राकेश सिंह टिकैत ने कहा है कि पांच सितम्बर से मुजफफरनगर से किसान पंचायतों की शुरुआत होगी। साथ ही मिशन यूपी की शुरूआत भी होगी। राकेश टिकैत के अलावा मुल्क के लाखों किसान दिल्ली की सीमाओं पर केंद्र की तरफ से लागू किये जाने वाले तीन विवादित कृषि कानूनों की वापसी की मांग कर रहे है। किसानों का कहना है कि जो विवादित कानून मोदी सरकार ने लागू किये हैं जब वह किसानों को ही मन्जूर नहीं है तो फिर सरकार इन बिलों को वापस क्यों नही ले रही है?
यह बात भी काबिले जिक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने तीनों विवादित कृषि बिलों पर क्रियान्यवन के लिये डेढ साल की पाबन्दी लगा दी है, किसानों के लीडर राकेश टिकैत और लाखों किसान मोदी हुकूमत पर इल्जाम लगा रहे है कि 2014 और 2019 के आम चुनाव के वक्त वोट लेने की खातिर बीजेपी ने बडे बडे वादे किये थे और सुनहरे ख्वाब दिखाये थे मगर इन वादों में से आज तक कोई भी वादा बीजेपी ने पूरा नहीं किया है। उनका कहना है कि बीजेपी की वादाखिलाफियों का बदला हम उत्तर प्रदेश ओैर उत्तराखण्ड के एलेक्शन में बीजेपी को करारी शिकस्त दिला कर लेंगे।
किसानों ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड जहां इस समय बीजेपी सत्ता में है, के लिये एक रणनीति तैयार की है जिसके मुताबिक दोनों राज्यों में किसान पंचायतों का आयोजन होगा। किसान संगठनों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पहली किसान पंचायत 5 सितम्बर को होगी और उसके बाद राज्य के तमाम 18 मंडलों और 75 ज़िलों मेें किसान पंचायत का आयोजन होगा। इन किसान पंचायतों का उत्तर प्रदेश के पश्चिमी ज़िलों पर काफी असर पडेगा क्योंकि किसानों का मैदान यूपी के पश्चिमी ज़िले भी हैं और खुद राकेश टिकैत का तअल्लुक मुजफरनगर से है। पश्चिमी ज़िलों में बहुत बडी तादाद में किसान रहते हैैं जो मुल्क में रहने वालों के लिये दिन रात मेहनत करके अनाज पैदा करते है। आज जब किसान आंदोलन के आठ महीने पूरे हो गये हैं तो हुंकूमत को चाहिये कि वह अपने लागो किये गए तीन विवादित कानूनों मेें नरमी बरतें। उनको आतंकवादी, मवाली, पाकिस्तानी एजेंट न बुलाये । किसान भी हमारे मुल्क हिन्दुस्तान के ही बाशिन्दे है और उन्होंने मुल्क की तरक्की और खुशहाली मेें बहुत अहेम और खुसूसी किरदार अदा किया है साथ ही हुकूमते हिन्द या बीजेपी के किसी भी लीडर या रहनुमा को यह हक हासिल नहीं है कि वह किसी को देशप्रेमी शहरी का सर्टिफिकेट जारी करे या किसी हिन्दुस्तानी को आतंकवादी या पाकिस्तानी एजेंट या मवाली के कहकर पुूकारे या सम्बोधित करे।
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन आरएसएस मिशन 2022 पर मन्सूबाबंद तरीके से काम कर रही है जिसमें यह तय किया गया है कि अगले एलेक्शन में एक तिहाई मौजूदा मेंबरअसेम्बली के टिकट काटे जायेंगेे जिनमें कई मंत्री भी होंगे हालांकि टिकट काटने के इस फैसले पर अंतिम मुहर पार्टी और आर एस एस के सर्वे के बाद लगेगी मगर माना यह जा रहा है कि इसी बहाने इन लीडरों को चुनावी दंगल से किनारे कर दिया जायेगा जो लगातार सरकार और पार्टी के लिये परेशानी का कारण बनते रहे हैं । अपने नारा एक बार फिर तीन सौ के पार को पूरा करने के लिये बीजेपी और आर एस एस का थिंक टैंक लगातार मीटिंगें कर रहा है। दिल्ली और नागपुर के दरमियान उनके लीडर हाट लाईन पर सरगर्म है।
इस बार बीजेपी आला कमान और आर एस एस ने यह भी तय किया है कि जो लोग एम एल सी बन कर मंत्री बनने का आनंद उठा रहे है इन सबको एलेक्शन में उतरना होगा। इसमें सबसे पहले योगी आदित्य नाथ का नाम है जिन्होंने 17 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और फिर वह 18 सितम्बर 2017 को विधान परिषद के लिये चुने गये थे। इस बार आला कमान के हुक्म के बाद योगी जी को भी जनता की अदालत में जाना है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि योगी भी अयोध्या से भी यूपी असेम्बली का एलेक्शन लडेेंगे।
यूपी असेम्बली एलेक्शन से पहले योगी सरकार बेरोजगार नवजवानों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में जुट गयी है। इसी कडी में सरकार गाम पंचायतों मेें 58 हजार से ज्यादा पंचायत सहायकों को भर्ती करने का एलान किया वहीं एलेक्शन से पहले योगी सरकार शिक्षा मित्रों के मानदेय में भी वृद्धि कर सकती है. उत्तर प्रदेश की तमाम सियासी पार्टियां ब्राह्मणों के लिए आखें बिछाये तैयार बैठी है लेकिन योगी जी के रवैये से ब्राह्मण लाबी बहुत नाराज हैं और बीजेपी को भी इसका एहसास है कि ब्राह्मण जात के लोग उससे अलग हो रहे है। जात पात के खेल में मुस्लिम वोटरों का कुछ भी लेना देना नहीं है मगर इस बात का खतरा जरूर है कि कहीं अपने हाथ से ब्राह्मण वोटों को खिसकता देख कर बीजेपी सूबे मेें साम्प्रदायिकता का खेल न खेले । इस बात से तो हर शख्स वाकिफ है कि संघ परिवार के लोग हिन्दुओं को जोड़ने के लिये हिन्दू मुस्लिम फसाद का सहारा लेते है इसलिये जब इनको लगेगा कि बीजेपी और ब्राह्मणों की हिमायत नहीं मिलने वाली है तो वह हवा का रूख बदलने के लिए साम्प्रदायिकता का गेम खेल सकते है।
यह बात भी काबिले जिक्र है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी 20 फीसद है मगर कोई भी सियासी पार्टी इनको ज्यादा अहमियत देने के मूड मेें नहीं है। शायद इसकी एक वजह यह भी है कि सियासी पार्टियों को लगता है कि अगर उन्होंने मुसलमानों की बात की तो उससे बीजेपी को फायदा होगा क्योंकि बीेजेपी विकास के नाम पर एलेक्शन लडने के बजाये साम्प्रदायिकता की बुनियाद पर एलेक्शन लडने को प्राथमिकता देती है। बहरहाल अभी यूपी के एलेक्शन मेें सात महीने का वक्त बाकी है और इस दरमियान यहां की सियासत कई करवटें लेगी, फिलहाल तो यही लग रहा है कि तमाम पार्टियां अलग अलग एलेक्शन लडेंगी मगर बीजेपी दांव पेचों के दरमियान क्या सब पार्टियों के अलग अलग एलेक्शन लडने से कोई भी पार्टी बीजेपी को चैलेंज देने की पोजीशनमें होगी? गठबंधन के के पुराने तजुर्बे भले ही अपोजीशन की पार्टियों को एक होने से रोकने की कोशिश करें मगर हकीकत तो यह है कि एक होने होने के सिवा कोई रास्ता नहीं है अगर एसपी, बीएसपी, और कांग्रेस पार्टी अलग अलग एलेक्शन लडेंगी तो बीजेपी की जीत की सम्भावना स्वाभाविक रूप से बढ़ जाएगी, अगर तीनों सेक्यूलर पार्टियां गठबंधन बनायें और उसमें छोटी छोटी पार्टियों को शामिल करें ताकि सेक्यूलर वोटों के बिखराव को रोका जा सके।