• दो मासूम बच्चों को गोद में देकर पति का हो गया था स्वर्गवास
  • बेटे को पढ़ा-लिखाकर आईएएस बनाया, बेटी भी पढ़ाई में आगे

हमीरपुर
देर रात दरवाजे पर आवाज आई, बहन जी बहू का पेट पिरा रहा है, लागत है आज ही घर मा खुशियां आंय वाली हैं। इतना सुनकर दो बच्चों को फर्श पर सुलाते हुए एएनएम कांती पाल निकल पड़ी प्रसव पीड़ा से कराहती महिला की मदद को। यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है। अपने इसे काम की वजह से स्वास्थ्य विभाग में अलग पहचान रखने वाली कांती पाल ने संघर्ष करते हुए अपने दो बच्चों की परवरिश की और तीन साल पूर्व पुत्र आईएएस बना तो मानों कांती की तपस्या पूरी हो गई। अभी डेढ़ साल की नौकरी बची है और आज भी कांती पाल पूरी जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रही हैं, जैसे पहले दिया करती थी।

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और आज हम आपको कांती पाल के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनाते हैं। कांतीपाल बताती हैं कि 1988 में उन्होंने स्वास्थ्य विभाग में एएनएम के पद पर नौकरी शुरू की। मूलरूप से औरैया जनपद निवासी कांती पाल के पति लाल सिंह की 1994 में आकस्मिक मौत हो गई। पति की मौत के बाद कांती पाल के सामने दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दो बच्चों का साथ था। बड़ी पुत्री अंजली 5 साल की थी और पुत्र रोहित उर्फ नीलू एक माह का था। यही से कांतीपाल के संघर्ष की कहानी शुरू हुई। कांतीपाल दोनों बच्चों को लेकर अपने तैनाती स्थल ललपुरा आ गई।

कांती पाल बताती हैं कि उस वक्त ललपुरा में स्वास्थ्य उपकेंद्र नहीं बना था। एक किराए का कमरा ले लिया, जिसमें दरवाजा नहीं था। कपड़े का पर्दा हर वक्त लटका रहता था। उपकेंद्र न होने की वजह से गर्भवतियों का प्रसव घरों में कराया जाता था। सर्दी, गर्मी, बारिश कोई भी मौसम और कोई भी समय हो, कोई न कोई व्यक्ति दरवाजे पर आता रहता था। बिना समय गंवाए उन्हें जाना होता था।

बच्चे बड़े हुए तो उनका नाम स्कूल में लिखवा दिया। अंजली और रोहित दोनों की शुरुआती पढ़ाई गांव के स्कूल में हुई। प्राइमरी के बाद रोहित को आठवीं तक पढ़ने के लिए घर से तीन किमी दूर कुम्हऊपुर के जूनियर स्कूल जाना होता है। कांती बताती हैं कि रोहित शुरू से पढ़ने में तेज था। वह अपने काम के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और दूसरी जरूरतों का ध्यान तो रखती थी, लेकिन उन्हें समय नहीं दे पाती थी। 8वीं के बाद रोहित ने 12वीं की पढ़ाई कानपुर देहात के उमरी गांव के इंटर कॉलेज से की। इसके बाद आईआईटी की तैयारी करनी शुरू कर दी। वहां भी वह पास होता चला गया। अप्रैल 2019 में रोहित ने यूपीएससी में 469वीं रैंक हासिल की तो लगा कि उनकी तपस्या पूरी हो गई। रोहित आज राजकोट (गुजरात) में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

कांती पाल ने अपनी मेहनत न सिर्फ अपने परिवार को संवारा बल्कि अपने काम से आसपास के गांवों की प्रसूताओं की उम्मीद बन गई। कांती बताती हैं कि उनके सब सेंटर में प्रतिमाह 15 से लेकर 20 गर्भवतियों के सामान्य प्रसव हो जाते हैं। वह स्वयं टीकाकरण के लिए गांव-गांव भ्रमण करती है। कोविड टीकाकरण भी पूरी जिम्मेदारी के साथ किया। महिलाओं को नियमित तौर पर स्वास्थ्य की जांच कराने को भी प्रेरित करती हैं। बेटे के आईएएस बनने के बाद कांती ने गांव में मंदिर बनाने की मन्नत मानी थी, जिसे वो निभा चुकी हैं। आज गांव के लोग कांती पाल के संघर्षों को याद कर उन पर गर्व महसूस करते हैं।

सीएमओ डॉ.एके रावत ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में अपने घर परिवार को संभालने और ड्यूटी के प्रति कर्त्तव्यनिष्ठा कांतीपाल किसी भी महिला के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। विभाग उनके संघर्ष और काम के प्रति ईमानदारी की सराहना करता है। सुमेरपुर के एमओआईसी डॉ.महेशचंद्रा और जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी अनिल कुमार यादव ने भी कांतीपाल के अपने कार्य के प्रति गंभीरता और परिवार के प्रति निभाई गई जिम्मेदारी की सराहना की।