आठ महीने पहले वैज्ञानिकों ने जताई थी ग्लेशियर फटने की आशंका
नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से तबाही मचने के बाद पता चला है कि देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल जून-जुलाई के महीने में एक अध्ययन के जरिए जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वाली झील के खतरों को लेकर चेतावनी जारी की थी।
2019 में जारी हुई थी एक रिपोर्ट
क्षेत्र में ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने संबंधी शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की मदद से वैज्ञानिकों ने 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी। इस दौरान इस इलाके में कुल 146 लेक आउटबस्ट की घटनाओं का पता लगाकर उसकी विवेचना की गई थी। शोध में पाया गया था कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने जताई थी आशंका
वैज्ञानिकों ने बताया था कि उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के कई इलाकों में ऐसे ग्लेशियर हैं, जो कभी भी फट सकते हैं। उन्होंने इस बारे में जम्मू-कश्मीर के काराकोरम रेंज में स्थित श्योक नदीं का उदाहरण दिया था। श्योक नदी के प्रवाह को एक ग्लेशियर ने रोक दिया है। इसकी वजह से अब वहां एक बड़ी झील बन गई है। झील में ज्यादा पानी जमा हुआ तो उसके फटने की आशंका है।
नदियों के मार्ग रोक बनी है झील
भारत की श्योक नदी के ऊपरी हिस्से में मौजूद कुमदन समूह के ग्लेशियरों में विशेषकर चोंग कुमदन ने 1920 के दौरान नदी का रास्ता कई बार रोका। इससे उस दौरान झील के टूटने की कई घटनाएं हुई। 2020 में क्यागर, खुरदोपीन व सिसपर ग्लेशियर ने काराकोरम की नदियों के मार्ग रोक झील बनाई है। इन झीलों के एकाएक फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले हिस्से में जानमाल की काफी क्षति हो चुकी है।
2013 की आपदा के बाद से जारी है रिसर्च
2013 की आपदा के बाद से वैज्ञानिक लगातार हिमालय पर रिसर्च कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने एक बड़ी चेतावनी जारी की है। उनके मुताबिक ग्लेशियरों के कारण बनने वाली झीलें बड़े खतरे का कारण बन सकती हैं। 2013 की भीषण आपदा इसका जीता जागता उदाहरण है कि किस तरह से एक झील के फट जाने से. उत्तराखंड में तबाही का तांडव हुआ था।