ओवैसी और मुस्लिम नेताओं के बीच सियासी गुटरगूँ! क्या बदलेगी यूपी की राजनीति?
पश्चिम उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं के संपर्क में ओवैसी, तथाकथित सेकुलर दलों में खलबली
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
देश की सियासत भी आजकल कितनी बेरंग हो गईं है जिस तरफ़ देखिए साम्प्रदायिक जंग ही जंग है खाँ को खूं की शबों रोज़ यलगार तक अक़्ल हैरान है इंसानियत दंग है।यूपी के सियासी संग्राम में बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री की संभावनाओं से ही तथाकथित सेकुलर दलों में बौखलाहट साफ देखी जा रही है।बिहार विधानसभा चुनाव में पाँच सीटों पर सफलता मिलने के बाद असदुद्दीन ओवैसी का लक्ष्य अब पश्चिम बंगाल और उसके बाद यूपी है वैसे असदुद्दीन ओवैसी की यूपी में अभी से सक्रियता देखी और समझी जा सकती है हमारे भरोसे के सूत्रों से मिल रही जानकारियों के मुताबिक़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में असदुद्दीन ओवैसी अपने लोगों के द्वारा बड़े नेताओं से सम्पर्क कर जो पश्चिम में जनाधार वाले नेता माने जाते है उनको अपनी पार्टी में जोड़ने की कोशिश में लग गए है सहारनपुर, मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, मेरठ, बागपत, मुरादाबाद, बिजनौर, सँभल, अमरोहा, रामपुर, शहाजहांपुर, अलीगढ़, आगरा, ग़ाज़ियाबाद, बुलंदशहर,नोएडा सहित आदि जनपदों के बड़े राजनीतिक घरानों के नेताओं से बातचीत कर रहे है अगर बड़े जनाधार वाले नेताओं ने ओवैसी की ओर रूख किया तो तथाकथित सेकुलर दलों को बहुत बड़ा सियासी नुक़सान होने जा रहा है।अब सवाल उठता है कि क्या वजह है जो मुसलमान असदुद्दीन ओवैसी के पाले में जाने पर विचार-विमर्श कर रहा है ? क्या मुसलमानों के वोटबैंक पर अपना हक़ जताने वाले दल उनको मुर्ख बनाते आ रहे थे और वह इस बात को समझ रहा था लेकिन उसको कोई रास्ता नही मिल पा रहा था ओवैसी के रूप में उसे एक उम्मीद जगी है जिस पर वह चल कर अपना सियासी भविष्य सुरक्षित करना चाहता है।हालाँकि यहाँ यह भी देखने में आ रहा है कि मुस्लिम बुद्धिजीवी इस रास्ते को सही नही मानता है उनका तर्क है कि साम्प्रदायिकता का जवाब साम्प्रदायिकता नही होना चाहिए जो किसी हद तक सही भी है लेकिन जब उनसे कहा जाता है कि मुसलमान ने आज़ादी के बाद से आज तक इस रास्ते को नही चुना और सेक्लुरिज्म को ही सही माना और उस पर चलता रहा लेकिन जब साम्प्रदायिकता ने अपना ज़हर इतना फैला दिया है कि आज जो सेकुलर होने का लबाधा ओढ़े सियासत कर रहे थे उन्होंने मुसलमान को ऐसे निकाल दिया जैसे दूध में से मक्खी तो वह बेचारा क्या करे।मुसलमान मजबूरी में ओवैसी की बात कर रहा है जो मुसलमान ओवैसी की बात करता है उनका तर्क है कि जब मुसलमान सेकुलर दलों का सिर्फ़ वोटबैंक बनकर रह गया। उसके भविष्य की और वर्तमान में उसकी कोई बात ही नहीं करना चाहता तो मुसलमान क्या करे ? सिर्फ़ वोटबैंक बनकर कब तक रहेगा।? इन सब विषयों पर गौर करने के बाद पता चलता है कि वास्तव में आज़ादी के बाद से अब तक सेकुलर दलों का लबाधा ओढ़ने वाले सियासी दलों ने मुसलमान को सिर्फ़ वोटबैंक के रूप में ही इस्तेमाल किया है चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस हो या क्षेत्रीय दल सपा आदि उसके मुस्तकबिल और मौजूदा वक़्त के लिए कोई ठोस काम नही किया सिर्फ़ दिखावा किया गया है।कांग्रेस ने आज़ादी के बाद से अब तक के मुसलमानों के हालात को चेक कराने के लिए जस्टिस राजेन्द्र सच्चर के रूप में एक कमेटी का गठन किया जिसने इमानदारी से उनकी दिशा और दशा का अध्ययन कर एक रिपोर्ट तैयार की जिसके बाद यह साफ़ हो सका कि हिन्दुस्तान का मुसलमान किस तरह अपना जीवन जीने को मजबूर हो रहा है।ख़ैर जस्टिस राजेन्द्र सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी वह सरकार की किसी टेबल या अलमारी में बंद पड़ी हुईं है उस रिपोर्ट पर अमल नही किया गया या जानबूझकर कराया नहीं गया मुस्लिम बुद्धिजीवियों का आरोप है कि इस कमेटी का गठन सिर्फ़ बहुसंख्यकों को यह बताने या समझाने के लिए कराया गया था कि देखो हमने मुसलमानों का क्या हाल कर दिया है अब इसे क्या कहा जाए ? जो लोग कांग्रेस को पहले से सवालों के घेरे में खड़ा रखते थे उनका कहना है कि असल में हक़ीक़त में कांग्रेस हो या अन्य दल वह सिर्फ़ दिखावा करते है करना कुछ नही चाहतें है उसी का परिणाम है जस्टिस राजेन्द्र सच्चर कमेटी पर अमल नही होना।पिछले तीस पैंतीस साल से यूपी का मुसलमान सपा के साथ खड़ा रहा लेकिन उसने भी मुसलमान के लिए कोई काम नहीं किया अपनी जाति यादव को मज़बूत करने में पूरी ताक़त लगा दी सपा पहले परिवार फिर यादव बाद सब जाति और धर्म के लोग जिसके परिणाम सबके सामने है यादव जाति यूपी में आज कितनी ताक़तवर बनकर उबरी है जिसकी संख्या मात्र सात से आठ फ़ीसदी है और मुसलमानों की तादाद बाइस फ़ीसदी वह कहाँ खड़ा है और यादव कहाँ खड़ा है और उनका परिवार कहाँ खड़ा है ? इसकी तुलना ही की जा सकती है बाक़ी यह बात समझ सब रहे है।सपा के अखिलेश यादव मुसलमानों के बड़े नेताओं को निपटाने में लगे है सात बार के सांसद रहे सलीम शेरवानी ने सपा में शामिल होने की घोषणा की एक भीड़ का हिस्सा बना दिया गया जैसे बहुत ही मामूली नेता हो वही एक बार की उन्नाव से सांसद रही अन्नू टंडन भी सपा एण्ड कंपनी में शामिल हुई जिसको सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यादव ने तीन बार ट्विटर पर डाला कि अन्नू टंडन सपा में शामिल हुई यह हाल है सपा एण्ड कंपनी का तो क्या करे मुसलमान सिर्फ़ वोटबैंक बनकर रहे हिस्सेदारी नही माँगे।इन सब हालातों को ध्यान में रखते हुए अगर मुसलमान असदुद्दीन ओवैसी की बात कर रहा है तो उसकी ग़लती नही है इसके लिए सेकुलर दल ज़िम्मेदार है क्यों उन्होंने मुसलमान के साथ सौतेला व्यवहार किया जो उन्हें ओवैसी वाले रास्ते पर विचार करने के लिए मजबूर कर रहा है।ख़ैर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम नेताओं और असदुद्दीन ओवैसी के बीच हो रही सियासी गुटरगूँ से प्रदेश का सियासी मौसम बदलने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है।सियासी मौसम बदलने की आहट से ही सेकुलर दलों के शीर्ष नेतृत्व में देखी जा सकती है खलबली।असल में सियासी आग दोनों तरफ़ है लगी हुई अब इस आग की चपेट में वही दल आएँगे जिनकी वजह से यह आग लगी है।हालाँकि सेकुलर दल इस आग को बुझाने के लिए अपने सियासी मुस्लिम बँधवा मज़दूरों को लगा रहे है ताकि यह आग इतनी न फैले जिससे उनका सियासी आसियाना जल जाए वह अपने आसियाने को बचाने का भरपूर्व प्रयास कर रहे है करने भी चाहिए यह बात अलग है सफल हो या न हो।अब यह तो वक़्त ही बताएगा कि सियासी ऊँट किस करवट बैठता है क्या असदुद्दीन ओवैसी की सियासी पतंग बुलंद हवाओं उड़ती है या तथाकथित सेकुलर दल अपनी सियासी कलाओं से असदुद्दीन ओवैसी की पतंग काटने में कामयाब होते हैं या ओवैसी तथाकथित सेकुलर दलों को ज़मीन सूंघने को मजबूर करते है यह बात आनेवाले वक़्त के गर्भ में छिपी है।