विस्थापन का दंश झेल रहे कनहर के विस्थापित
दिनकर कपूर , प्रदेश महासचिव, ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
80 बीघा के काश्तकार जमालुद्दीन कनहर बांध में जमीन डूबने से पूरी तौर पर तबाह हो गए हैं। 1976 में जब परियोजना शुरू हुई तो उनके पूर्वजों को बेहद कम मुआवजा दिया गया। बाद में सरकारों ने बांध का निर्माण नहीं कराया और वह अपने परिवार के साथ वहीं बसे रह गए। 2015 में जब बांध का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो सभी लोगों ने सरकार से 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजा की मांग की लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। उलटा आंदोलन करने पर मुकदमे कायम हुए और कई लोगों को जेल जाना पड़ा। सरकार द्वारा दिया गया 7 लाख 11 हजार रुपए का विस्थापन पैकेज ऊंट के मुंह में जीरा के समान है जिससे परिवार का भरण पोषण करना बेहद कठिन है। रमेश खरवार पुत्र सहदेव खरवार निवासी कोरची को सरकार के विस्थापन पैकेज का लाभ नहीं मिला। उसका खेत और मकान डूब गया, कनहर विस्थापित कॉलोनी में जो जमीन मिली है बांस बल्ली लगाकर उससे बनी झोपड़ी में अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ रह रहा है। इस भीषण बरसात में कभी भी झोपड़ी गिर सकती है। रोजगार न मिलने और झोपड़ी के गिरने के भय से रात भर उसका परिवार सो नहीं पाता है। सुंदरी के निवासी मुख्तार आलम के तीन बेटे हैं जाबिर हुसैन, साबिर हुसैन और कादिर हुसैन का नाम तो विस्थापन पैकेज में था लेकिन सरकारी शासनादेश के बावजूद उनके बेटों का नाम विस्थापन सूची में नहीं है और आज वह जमीन से बेदखल हो कर इस भीषण महंगाई में किसी तरह अपने परिवार की जीविका चला रहे हैं। कोरची गांव की 50 बीघे के किसान बिंदेश्वरी की एकमात्र पुत्री राजमनिया और 20 बीघे के काश्तकार सुंदरी निवासी जसीमुद्दीन की पुत्री बेबी का नाम विस्थापन सूची में नहीं है जबकि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के अनुसार बेटी भी पुत्र के न रहने पर पिता की संपत्ति में हकदार है।
यह हालत कनहर विस्थापित कॉलोनी में लोगों का दर्द सुनने गई आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की टीम को लोगों ने बताई। टीम ने देखा कि विस्थापन का दंश कितना भयावह होता है इसे विस्थापित लोग ही महसूस कर सकते हैं। कितने लोगों का खिलखिलाता परिवार बिखर गया, कितनी बेटियों का मायका खत्म हो गया और कितने का जीवन वीरान हो गया। लेकिन सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह है कि विस्थापित कालोनी में लोगों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा पूर्ण जीवन जीने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है और उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराई जा रही हैं। विस्थापित बस्ती की हालत यह है कि वहां जो अस्पताल बना है वह चालू नहीं है, उसमें ताला लटका हुआ है, ना वहां डॉक्टर है और ना दवाओं का कोई इंतजाम है। विस्थापितों ने बताया कि विद्यालय में 1000 बच्चे पढ़ते हैं लेकिन मात्र दो अध्यापक हैं। अध्यापकों की नियुक्ति न होने से बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। विस्थापित कालोनी में ना तो सड़क बनाई गई है और ना ही शौचालय। परिणामतः कभी भी वहां बड़ी महामारी फैलने का खतरा है। नाली में जाम है और सफाई का कोई इंतजाम नहीं है। यह हालत तब है जब कनहर बांध को लेकर बड़ी-बड़ी बातें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कही जाती हैं।
गौरतलब है कि 1976 में सोनभद्र की दुद्धी तहसील के ग्राम अमवार में कनहर और पांगन नदी पर कनहर सिंचाई परियोजना का शिलान्यास किया गया था। उस समय किसानों को जमीन का मुआवजा दिया गया। लेकिन मकान और भूमिहीन लोगों को कोई मुआवजे का वितरण नहीं किया गया। बाद में सरकार ने इस परियोजना का काम रोक दिया और लंबे समय तक परियोजना लंबित पड़ी रही। 2015 में परियोजना का निर्माण कार्य फिर शुरू कराया गया लेकिन सरकार ने मुआवजा देने से साफ मना कर दिया। जबकि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 24 के अनुसार यदि 5 वर्ष तक अधिग्रहित भूमि पर निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जाता है तो वह अधिग्रहण शून्य माना जाएगा और विस्थापित लोगों को पुन: मुआवजा देना चाहिए। इस मांग पर चले आंदोलन पर अखिलेश सरकार ने भीषण दमन ढाया। बड़े बुजुर्गों, महिला समेत सैकड़ों लोगों पर मुकदमें कायम किए गए, कईयों को जेल जाना पड़ा, दर्जनों लोगों पर जिला बदर की कार्यवाही हुई और पूरे विस्थापित क्षेत्र में आतंक का राज कायम कर दिया गया। बहरहाल 2016 से शुरू हुआ निर्माण कार्य अब जाकर पूरा हुआ है। सरकार ने 1044 मूल विस्थापित परिवार चिन्हित किए थे जिनकी तीन पीढ़ी को ₹711000 का विस्थापन पैकेज दिया जाना था। सरकारी सूची के 4143 परिवारों में से लगभग 200 ऐसे परिवार हैं जिन्हें विस्थापन पैकेज अभी तक नहीं दिया गया। इसी तरह बाद में जोड़े गए प्रपत्र छह के 424 परिवारों में से लगभग 390 परिवारों को अभी तक विस्थापन पैकेज का लाभ नहीं मिल पाया है। यह भी गौर करने लायक है कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के अनुसार पुत्रियां भी पिता की पुश्तैनी जमीन में अधिकार प्राप्त करती हैं। बावजूद इसके सरकार द्वारा जो सूची बनाई गई उसमें विस्थापितों की लड़कियों को शामिल नहीं किया गया और उन्हें विस्थापन पैकेज से वंचित कर दिया गया। इसी तरह जिन लोगों के पास प्रपत्र 3 या 11 है अर्थात जिनका मकान बना था लेकिन सूची में उनका नाम नहीं था वह भी विस्थापन पैकेज के लाभ से वंचित कर दिए गए हैं। अगर विस्थापितों की मानें तो बधाडू में 66, गोहडा में 60, अमवार में 158, कुदरी में 122, बरखोहरा में 346, सुगवामान 331, कोरची में 733, भीसुर में 425, सुंदरी में 776, लाम्बी में 88, रन्दह में 18 लगभग 3100 परिवार विस्थापन पैकेज के लाभ से वंचित हो गए हैं।
केंद्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और डबल इंजन सरकार की ताकत का बार-बार बड़ा प्रचार किया जाता है। लेकिन कनहर में हालत यह है कि 1050 करोड़ रूपए केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना में पिछले एक वर्ष से लंबित है। लेकिन ना तो इसके बारे में उत्तर प्रदेश की सरकार और ना ही केंद्र सरकार चिंतित है। परिणाम स्वरूप कनहर बांध का काम अधूरा है, नहरें बन नहीं पा रही हैं और विस्थापितों को भी मुआवजा प्राप्त नहीं हो पा रहा है। हालत इतनी बुरी है कि भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय विधायक ने आज तक इन विस्थापितों के दर्द पर कुछ नहीं बोला और ना ही इस दिशा में कोई प्रशासनिक कार्यवाही ही की गई है। ऐसी स्थिति में विस्थापितों ने एक बड़े आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है। जनपद के नागरिक समाज से आंदोलन का समर्थन करने की अपील जारी की गई है और दुद्धी बार एसोसिएशन के हाल में 16 अगस्त को एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। इस सम्मेलन में आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी।