आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ:

भारतीय जनता पार्टी की सरकार भारत की धरोहर, बहुलता और मैत्री भाव को लगातार नष्ट कर रही है। इसने देशी विदेशी कॉर्पोरेट घरानों के मुनाफे के लिए स्वतंत्र भारत के स्वाधीनता व आंतरिक लोकतंत्र के लक्ष्य को दरकिनार कर दिया है और लोकतांत्रिक अधिकारों पर बड़े पैमाने पर हमला करने का काम किया है। इसलिए लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराना राष्ट्र हित में जरूरी है। देश के हर नागरिक का यह राजनीतिक दायित्व है कि भाजपा और उसके सहयोगियों को चुनाव में हराएं। साथ ही जनता के जीवन से जुड़े हुए रोजगार, जमीन, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, लोकतांत्रिक व नागरिक अधिकार, कृषि विकास, एमएसपी कानून, मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा, पुरानी पेंशन की बहाली, जनहितैषी क्षेत्रों में निजीकरण पर रोक, उच्च अमीरों पर संपत्ति और उत्तराधिकार टैक्स और एमएसएमई सेक्टर को मदद जैसे जन मुद्दों को मजबूती से उठाना होगा। इन जन मुद्दों के हल होने से ही आम आदमी के जीवन की बेहतरी हो सकती है। भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024 में मोदी सरकार ने अपनी पीठ खुद थपथपाई है और भविष्य की योजनाओं पर बड़ी-बड़ी बातें भी की गई हैं लेकिन जनता के बुनियादी जरूरी सवालों पर वह पूरे तौर पर मौन है। यह बातें ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) की राष्ट्रीय कार्यसमिति की तरफ से जारी एजेंडा लोकसभा चुनाव 2024 शीर्षक वाले घोषणा पत्र में कहीं गई है। इसे प्रेस को आइपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी ने जारी किया।

घोषणा पत्र में कहा गया कि आइपीएफ समझता है कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा व उसके सहयोगियों को हराना जनता का पहला राजनीतिक एजेंडा होना चाहिए। वजह बहुत स्पष्ट है। भारतीय जनता पार्टी कोई सामान्य दल नहीं है। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो समाज के ढेर सारे समूहों, समुदायों को सांस्कृतिक गुलाम बनाना चाहता है, का एक राजनीतिक संगठन है। भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक लक्ष्य देश में तानाशाही के फासिस्ट राज को कायम करना है। यह सच है कि जनता की बुनियादी राजनीतिक जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा, मकान सर्वोपरि रोजगार के सवाल को भाजपा इतर राजनीतिक दलों की सरकारों ने भी हल नहीं किया है, उनके राज में भी लोगों के ऊपर दमन हुआ है लेकिन खुलेआम ठोक देने, बुलडोज कर देने वाली सरकार की वकालत विपक्षी दलों ने नहीं की है। निरंकुश राज के लिए संविधान बदलने की बात करना, शांतिपूर्वक आंदोलनों पर हमला करना, आम सभा व बैठक की इजाजत न देना, बोलने के अधिकार से भी वंचित कर देना, यूएपीए व पीएमएलए जैसे काले कानूनों से नागरिकों को दहशत में डाल देना, पूरे देश को जेलखाने में तबदील करने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किया है। अगर देश का नागरिक बोल भी न पाये और अन्याय का प्रतिकार भी न कर सके तो किस बात का लोकतंत्र देश में रहेगा। चुनाव तो महज एक रस्म अदायगी बन कर रह जायेगा जैसाकि रूस, तुर्की जैसे देशों में हो रहा है। लोकतंत्र वंचित समुदायों के विकास और अधिकार तथा शोषण व अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए अनिवार्य है।

भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व का हिंदू धर्म से भी कोई संबंध नहीं है। हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है जो निरंकुश राज के लिए काम करती है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर, बहुलता और मैत्री भाव के विरूद्ध है। इसके राष्ट्रवाद की अवधारणा विदेशी है। उपनिवेशवाद विरोधी भारतीय राष्ट्रवाद के यह विरूद्ध रही है। आज भी विदेशी पूंजी के सामने इसका रुख घुटना टेकने का ही है। कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए धड़ल्ले से निजीकरण और सार्वजनिक संपत्ति व संपदा की लूट हो रही है। किसानों की जमीन पर भी कारपोरेट की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। रोजगारविहीन अर्थव्यवस्था की वजह से खेती व असंगठित क्षेत्र के उद्योग बर्बाद हो गये हैं। स्वतंत्र भारत के स्वाधीनता व आर्थिक लोकतंत्र के लक्ष्य को दरकिनार कर दिया गया है।

मोदी सरकार की छवि बनाने में कारपोरेट और गोदी मीडिया पूरी ताकत से लगी हुई है। 10 साल के कार्यकाल में मोदी सरकार की कोई खास उपलब्धि जनता की नजर में नहीं है। बेरोजगारी, महंगाई, बेबसी बढ़ी है। खाद्यान्न खपत में भी कमी आयी है। यह दूसरी बात है कि अरबपतियों व उच्च मध्य वर्ग की संख्या भारत में तेजी से बढ़ी है और देश की 40 फीसद संपत्ति एक फीसद अमीरों के हाथ में आ गई है। देश के कर ढांचे को लगातार प्रतिगामी बनाकर नरेंद्र मोदी सरकार ने आम जन की जेब से कारपोरेट सेक्टर के हाथ में धन ट्रांसफर करने में भूमिका निभायी है। वनाधिकार कानून और पर्यावरण संरक्षण कानूनों में छूट देकर उसने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए अनुकूल स्थितियां बनाई हैं। पूंजीगत निवेश के नाम पर लाखों करोड़ रुपये कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए उपलब्ध कराये गये हैं। इनके लगभग 17 लाख करोड रुपये़ के बैंक कर्ज मोदी सरकार द्वारा माफ कर दिये गये हैं। अतः स्पष्ट है कि जनता के श्रम और संसाधनों की लूट पर ही यह अमीरी का साम्राज्य खड़ा हुआ है।

जहां तक भ्रष्टाचार की बात है, मोदी राज में ही इलेक्ट्रोरल बांड घोटाला हुआ है। आजाद भारत का यह सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है, जिसमें 4 लाख करोड रुपये़ के घपले की बात हो रही है। इस पर हर वक्त मोदी सरकार ने पर्दा डालने की कोशिश की है। इलेक्ट्रोरल बांड के खुलासे से यह साबित हुआ है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), इनकम टैक्स और सीबीआई जैसी संस्थाओं का उपयोग कम्पनियों से धन उगाही के लिए किया गया है। यह भी एक भ्रम पैदा किया जाता है कि मोदी की वजह से दुनिया में भारत का नाम बढ़ा है। यह सब कोरी गप्पबाजी के सिवाय कुछ नहीं है। भारत अपने श्रम, कौशल, संसाधन और बाजार के लिए पहले से ही दुनिया में जाना जाता रहा है। यहां वैज्ञानिकों व विद्वानों की कभी कोई कमी नहीं रही है। आज सच्चाई यह है कि हमारे देश के नागरिक दुनिया के गरीब देशों के नागरिकों की श्रेणी में आते हैं और उनकी आमदनी विकसित देशों के नागरिकों की तुलना में बेहद कम है। जहां तक धारा 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण करने की बात है, यहां हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत देश व राष्ट्र निर्माण की बुनियाद में परस्पर सहयोग, सम्मान और मैत्री भाव रहा है। यहां के लोगों ने चाहे वह किसी भी आस्था और विश्वास के रहे हों, अपने बीच हिंसा व नफरत के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी। देश तभी कमजोर हुआ है जब लोगों में आपसी विश्वास में कमी आयी, लोगों में दूरी बढ़ी और मैत्री भाव कम हुआ। वर्तमान में दुःखद दौर से गुजर रहे मणिपुर की घटना से यह सीख ली जा सकती है कि जातीय, सामुदायिक हिंसा देश हित में नहीं है।

आइपीएफ ने घोषणा पत्र में कहा है कि हम चुनाव के प्रमुख मुद्दों पर आयें उसके पहले विपक्ष के राजनीतिक दलों के बारे में भी दो शब्द रखना जरूरी है। विपक्ष के ढेर सारे क्षेत्रीय दल भाजपा और कांग्रेस से मोलतोल करते रहते हैं और समय-समय पर अपना पाला बदलते रहते हैं। फासीवाद के इस राजनीतिक दौर में भी इनके इस व्यवहार में कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है। सामाजिक न्याय व अस्मिता की राजनीति से रोजी-रोटी, कपड़ा जैसे जन मुद्दे गायब होते गए और पूरी बहस सत्ता में हिस्सेदारी के प्रश्न पर केंद्रित होती गई। सत्ता की राजनीति भी कुछ परिवारों तक ही सीमित हो गई और ढेर सारे सामाजिक समूह अलगाव में पड़ गए। इनके भ्रष्टाचार और अन्य सामाजिक समूह से अलगाव का फायदा आज भाजपा उठा रही है। दूसरी तरफ विपक्ष की राजनीति में एक ऐसा राजनीतिक दल उभरा है जो अमूमन सभी राजनीतिक दलों व उनके नेताओं को भ्रष्ट कहता रहा है। वह शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सुविधाओं के लिए सुशासन को ही पर्याप्त मानता है। विचारधारा आधारित राजनीति से अमूमन दूरी बनाए रखता है। विडंबना देखिए कि इस दल के बड़े नेता आबकारी नीति में हुए कथित भ्रष्टाचार में जेल में बंद हैं। इसमें दो राय नहीं कि भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक कारणों से विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल रही है। लेकिन इसमें यह जरूर गौर करना है कि विपक्षी दलों की सरकारें अपने प्रशासनिक आचरण को जवाबदेह, पारदर्शी और ईमानदार बनाएं। चुनावी सफलता ही राजनीति का पर्याय नहीं है। परिणामवादी राजनीति आज फासीवादी राजनीति के युग में चल नहीं सकती।

जहां तक कांग्रेस की बात है वह एक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। उसकी नीतियों में अभी भी संतुलन आना बाकी है, वह कितना बदलेगी यह समय ही बतायेगा। आरएसएस और अडानी के खिलाफ लिये गये राहुल गांधी के रुख को लोगों ने जरूर सराहा है। लेकिन यह बात नोट की जानी चाहिए कि जब नव उदारवादी अर्थव्यवस्था दुनिया भर में असफल साबित हो रही है, तब उसी का भारत में मांग आधारित माडल कितना कारगर होगा? कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में केंद्र में 30 लाख रिक्त पदों को भरने, रोजगार सृजन और सामाजिक सुरक्षा, संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता जैसी अच्छी बातें की हैं। लेकिन बड़ा सवाल वैश्विक वित्तीय पूंजी के हमले से भारतीय गणराज्य की संप्रभुता की रक्षा करना है, इस पर कांग्रेस चुप है। यदि कोई गणराज्य बड़ी पूंजी को रेगुलेट व नियंत्रित नहीं कर सकता तब वह रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण व खेती-किसानी जैसे सवालों को हल नहीं कर सकता और काला धन व भ्रष्टाचार पर रोक भी नहीं लगा सकता। लोकतंत्र की रक्षा के लिए इस बड़ी पूंजी को भारतीय गणराज्य के अधीन लाना होगा। यही भारत में इस दौर का सबसे बड़ा राजनीतिक सच है। आइपीएफ इस सिद्धांत को नहीं मानता कि इस दौर में विदेशी पूंजी के दबाव से भारतीय गणराज्य को नहीं बचाया जा सकता और कारपोरेट केन्द्रित विकास ही सम्भव है। सन 1947 में जब देश आजाद हुआ यदि उस समय इतने विदेशी पूंजी के दबाव के बावजूद भारत आर्थिक स्वाधीनता के साथ आगे बढ़ सका और अपनी सम्प्रभुता की रक्षा कर सका तो आज भी हम वैसा कर सकते हैं बशर्ते यह करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति हो। दुनिया में अभी भी ऐसे देश हैं जो अपना विकास और आधुनिकीकरण आर्थिक स्वतंत्रता के साथ कर रहे हैं।

घोषणा पत्र में बारह सूत्रीय जन मुद्दे रखे गए हैं। जिनमें रोजगार को मौलिक अधिकार बनाना, हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी व देशभर में 1 करोड़ सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र में रिक्त पदों पर शीघ्र व पारदर्शी भर्ती, नौजवानों को कारोबार के लिए ब्याज मुक्त ऋण, दलित, आदिवासी, अति पिछड़े भूमिहीन गरीब परिवार को आवासीय भूमि और आजीविका के लिए 1 एकड़ जमीन, सहकारी खेती का प्रोत्साहन, शिक्षा व स्वास्थ्य मद में पर्याप्त बजट का आवंटन, नागरिक अधिकारों की रक्षा और यूएपीए व पीएमएलए जैसे काले कानूनों को खत्म करना, निर्दोष नागरिकों को जेल भेजने वाले अधिकारियों को दण्डित करना, नफरत और सामाजिक हिंसा की ताकतों को दंडित करना राज्य की जिम्मेदारी, कृषि उत्पादन, अनुसंधान व सिंचाई में बजट बढ़ाना व किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग की संस्तुति के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून और सहकारी खेती को प्रोत्साहन, किसानों की पूर्ण कर्ज माफी, कृषि लागत व मूल्य आयोग को वैधानिक दर्जा, कृषि समेत उद्योग व सेवा क्षेत्र के जन उपयोग के सभी उत्पादन का न्यूनतम समर्थन मूल्य व सरकारी खरीद की गारंटी, लेबर कोड की समाप्ति और पुरानी पेंशन योजना की बहाली व नौकरियों में संविदा प्रथा का खात्मा, वृद्ध, विकलांग व विधवा को 6000 रुपए पेंशन की गारंटी, असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और संविदा व स्कीम वर्कर्स की पक्की नौकरी, मनरेगा में 200 दिन काम व शहरी क्षेत्र के लिए रोजगार कानून, शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, बिजली, बैंक, बीमा, कोयला जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी क्षेत्रों के निजीकरण पर रोक, प्राकृतिक सम्पदा की लूट पर रोक और पर्यावरण की हर हाल में रक्षा, महिला आरक्षण को तत्काल लोकसभा व विधानसभाओं में देना, सरकारी सेवाओं में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण, महिला स्वयं सहायता समूहों को ब्याज मुक्त पर्याप्त ऋण, जातिगत जनगणना कराना, दलित, आदिवासियों, अति पिछड़ों व विकलांगों को निजी क्षेत्र में आरक्षण, उत्तर प्रदेश के कोल व धांगर को एसटी की सूची में शामिल करना, ओबीसी आरक्षण में अति पिछड़ों का अलग कोटा, उच्च अमीरों पर सम्पत्ति और उत्तराधिकार टैक्स, राज्य और लोगों पर विदेशी वित्तीय पूंजी के प्रभुत्व को रोकने के लिए एक सम्प्रभु वित्तीय विनियमन नीति बनाना, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के बुनियादी ढांचे को समर्थन और बैंक से सस्ते दर पर ऋण, ईवीएम से पड़े हर मत की वीवीपैट पर्ची से मिलान करना शामिल हैं।