मोदी राज के 6 साल की बात करें तो पेट्रोल की कीमतों में करीब 10 रुपये प्रति लीटर का इजाफा हो चुका है. यहां देखने वाली यह है कि इंटरनेशनल मार्केट में इस दौरान ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 60 फीसदी की कमी आई है. इसके बाद भी सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में कंज्यूमर्स को कोई राहत नहीं दी है. 60 फीसदी सस्ता क्रूड खरीदने के बाद भी पेट्रोल और डीजल के दाम उंचे बने हुए हैं. असल में इस साल में जहां सरकार को सस्ते क्रूड का फायदा मिला, वहीं इस पर लगातार टैक्स बढ़ाकर सरकार ने अपना खजाना बढ़ा है. समझिये तेल का खेल.

साल 2014
क्रूड की इंटरनेशनल कीमतें: 106 डॉलर/बैरल
पेट्रोल की कीमतें: (मई, 2014): 71.41 रु/लीटर
पेट्रोल पर टैक्स: 9.48 रुपये/लीटर
डीजल पर टैक्स: 3.56 रुपये/लीटर

साल 2020 में
क्रूड की इंटरनेशनल कीमतें: 41 डॉलर/बैरल
पेट्रोल की कीमतें: (अक्टूबर,2020): 81.06 रु/लीटर
पेट्रोल पर टैक्स: 32.98 रुपये/लीटर
डीजल पर टैक्स: 31.83 रुपये/लीटर


इसे ऐसे समझ सकते हैं कि दिल्ली में पेट्रोल का बेस प्राइस 26 रुपये प्रति लीटर के आस पास है. इस पर ढुलाई का खर्च 0.36 रुपये है. इस पर एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये प्रति लीटर है. वहीं, VAT (डीलर के कमीशन के साथ) 18.94 रुपये है. डीलर का कमीशन 3.70 रुपये के आस पास है. इस तरह से 26 रुपये का पेट्रोल ग्राहकों को 81 से 82 रुपये के बीच में पड़ता है. इसमें हर 1 लीटर पर केंद्र और राज्य सरकारों को करीब 51 रुपये मिलते हैं.

बता दें कि जब मोदी सरकार बनी थी तो 2014 मई के आस पास पेट्रोल पर कुल टैक्स 9.48 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 3.56 रुपये प्रहत लीटर था. तबसे आजतक पेट्रोल पर टैक्स बढ़कर 32.98 प्रति लीटर और डीजल पर टैक्स 31.83 रुपये प्रति लीटर है. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगातार टैक्स बए़ाए जाने से क्रूड के सस्ते होने का फायदा ग्रहकों को नहीं मिल पा रहा है, बल्कि उन्हें पेट्रोल और डीजल के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है.

पेट्रोल और डीजल की एक्साइज ड्यूटी में हर एक रुपये की बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के खजाने में 13,000-14,000 करोड़ रुपये सालाना की बढ़ोतरी होती है. वहीं क्रूड की कीमतें घटने से सरकार को व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलती है. असल में भारत अपनी जरूरतों का करीब 82 फीसदी क्रूड खरीदता है. ऐसे में क्रूड की कीमतें घटने से देश का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) भी घट सकता है.

इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, क्रूड की कीमतें अब 10 डॉलर बढ़ती हैं तो करंट अकाउंट डेफिसिट 1000 करोड़ डॉलर बढ़ सकता है. वहीं, इससे इकोनॉमिक ग्रोथ में 0.2 से 0.3 फीसदी तक कमी आती है. जबकि सस्ता होने पर इसका उल्टा असर होता है.