डॉक्टर मुहम्मद नजीब क़ासमी

11 अगस्त 2020 को बंगलोर के डीजे हल्ली, पलीकेशी नगर के कांग्रेसी एम एल ए “अखंडा श्रीनिवास मूर्ति” के निकट सम्बन्धी “पी नवीन” ने फेसबुक पर आखरी नबी सललललाहु अलैहि व सललम के खिलाफ इंतहाई गलाजत पर आधारित पोस्ट की थी। इससे पहले भी उसने कई बार एक विशेष तबके के लोगों के जज़्बात भड़काने के लिए गलत मैसेज पोस्ट किये थे, मगर समय पर उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके परिणामस्वरूप पी नवीन की पोस्ट के विरुद्ध क्षेत्र के मुसलमानों में सख्त गम व गुस्सा का फैलना स्वभाविक बात है क्योंकि सारी दुनिया जानती है कि मुसलमान अपने नबी हुजूरे अकरम स० की शान में अदना सी गुस्ताखी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। मुसलमान ही नहीं बल्कि किसी भी धर्म के लोग अपने पेशवाओं के विरुद्ध इस प्रकार के पोस्ट बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। इसके पुर्व भी सैयदुल बशर व नबीयों के सरदार हुजूरे अकरम स० के विरुद्ध गुस्तखाना बातें कही गई थीं। ऐसे लोगों को जुर्म के कटहरे में खड़ा कर के उनके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिये क्योंकि इस प्रकार के वाकेयात से देश में अमन व आमान के बजाय अफरा तफरी, अदम रवादारी और अदम तहम्मुल में बढ़ोतरी ही होगी, जिस से देश में तरक्की के बजाय अदम इस्तहकाम पैदा होगा, लोगों में नफरत और अदावत पैदा होगी।

25 अक्टूबर 2018 को यूरोपीय संघ की मानवाधिकार अदालत ने भी ऐतिहासिक न्यायादेश में पूरी दुनिया को बताया कि हजरत मोहम्मद मुस्तफा स० या किसी दूसरे नबी की शान में तौहीन आमेज बात कहना या लिखना राय की स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि इससे लोगों में नफरत व अदावत पैदा होती है और इस तरह के वाकेयात से दुनिया में अमन व आमान के बजाय अदम रवादारी और अदम तहम्मुल में बढ़ोतरी ही होगी। इतिहास भी साक्षी है कि इस महाद्वीप में लाखों इंसानों का इस्लाम धर्म कबूल करना एकमात्र उनका इस्लाम धर्म को पसंद करने के कारण था, कोई जोर जबरदस्ती उनके साथ नहीं थी। इस्लाम धर्म ने गैर मुस्लिमों के साथ भी सदव्यवहार के उज्जवल परिपाटी स्थापित की हैं। एक बार नबी स० के सामने एक यहूदी का जनाज़ा गुजरा तो आप स० उसके सम्मान में खड़े हो गए। सहाबाए कराम ने जिज्ञासा की कि गैर मुस्लिम के लिए ऐसा सम्मान क्यों? तो आप स० ने इर्शाद फरमाया: क्या वह इंसान नहीं है? (बुखारी)। परंतु जिस तरह इस्लाम धर्म में अन्य धार्मिक पेशवाओं की तौहीन करने की अनुमति नहीं है, उसी प्रकार पूरी इंसानियत के नबी हजरत मोहम्मद स० की शान में गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं है, चाहे उसका करने वाला/वाली मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम। मुसलमान अपने नबी के सम्मान के साथ दूसरे नबीयों का भी मुकम्मल सम्मान करता है बल्कि कुरआन और हदीस की रौशनी में किसी भी व्यक्ति के कामिल मो’मिन होने के लिए आवश्यक है कि वह आखरी नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा स० पर ईमान लाने के साथ साथ दूसरे नबीयों पर भी ईमान लाये, जबकि दूसरी आसमानी किताबों को मानने का दावा करने वालों की धार्मिक शिक्षा में आज भी हजरत मोहम्मद स० को नबी मानने पर उनके धर्म से ही निकाल दिया जाता है।

इससे पूर्व में हालैंड हजरत मोहम्मद मुस्तफा स० के व्यक्तित्व से संबंधित कार्टून बनाने का मुकाबला आयोजित करना चाहता था लेकिन मुसलमानों के शांतिपूर्ण एहतजाज के बाद उसे अपने फैसले को वापस लेना पड़ा। इस्लाम धर्म में हजरत ईसा अलैहिस्सलाम या हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध में इस प्रकार का कोई कृत्य करना तो दूर की बात, इसका इरादा करना भी गलत है, चुनांचे एक मुसलमान यह सोच भी नहीं सकता कि वह हजरत ईसा अलैहिस्सलाम जिनको ईसाई हजरात अपना पेशवा मानते हैं या हजरत मूसा अलैहिस्सलाम जिन्हें यहूदी अपना पेशवा स्वीकार करते हैं, कि उनके सम्बन्ध में कोई गलत बात भी उनकी तरफ इंगित की जाय, चुनांचे व्यवहारिक तौर पर पूरी दुनिया में एक वाकेया भी ऐसा नहीं मिलता कि जिस में किसी मुसलमान ने मसीही या यहूदियों के पेशवा की शान में गुस्ताखी की हो। जो वाकेयात भी कभी-कभी पेश आते हैं वह एकमात्र आखरी नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफ़ा स० के सम्बन्ध में आते हैं, अतएव वैश्विक बिरादरी को चाहिए कि तौहीने रिसालत के दोषियों की सजा के लिए सख्त कानून बनाये ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हजरत मोहम्मद स० की शान में गुस्ताखी का सिलसिला बंद हो।

पूरी दुनिया के अरबाब इल्म व दानिश का मौकिफ है कि किसी शख्स की तौहीन व तहकीर का राय की आजादी से कोई तअल्लुक नहीं है, क्योंकि तकरीबन हर मुल्क में शहरियों को यह हक हासिल है कि वह अपनी हितक इज्जत की सूरत में अदालत से रुजू करें और हितक इज्जत करने वालों को कानून के मुताबिक सजा दिलवायें। सवाल यह है कि किसी शख्स की हितक इज्जत करने वाले को कानूनन मुजरिम तसलीम किया जाता है, तो मजाहिब के पेशवाओं और खास तौर पर अंबिया-ए-कराम के लिए यह हक क्यों तसलीम नहीं किया जा रहा है और मजहबी रहनुमाओं की तौहीन व तहकीर को राय की आजादी कह कर जराएम की फेहरिस्त से निकाल कर हूकूक की फेहरिस्त में कैसे शामिल किया जा रहा है? यह आजादी राय नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ इस्लाम मुखालिफ तंजीमों और हुकूमतों की इंतिहा पसंदी और फिक्री दहशतग्रदी है। इस्लाम ने हमेशा दुनिया में अमन व सलामती कायम करने की ही दावत दी है।
पूरी उम्मते मुस्लिमा मुत्तफिक है और दूसरे मजाहिब भी इसकी तायीद करते हैं कि हजरात अम्बिया-ए-कराम की तौहीन व तहकीर संगीन तरीन जुर्म है। इसलिए कि इसमें मजहबी पेशवाओं की तौहीन के साथ साथ उनके करोड़ों पैरूकारों के मजहबी जज़्बात को मजरूह करने और अमन व अमान को खतरे में डालने के जराएम भी शामिल हो जाते हैं जिससे इस जुर्म की संगीनी में बेपनाह इजाफा हो जाता है। कुरान व सुन्नत और दूसरे मजाहिब में इसकी सजा मौत ही बयान की गई है क्योंकि इससे कम सजा में न हजरात अम्बिया-ए-कराम के इहतिराम के तकाजे पूरे होते हैं और न ही उनके करोड़ों पैरूकारों के मजहबी जज्बात की जायज हद तक तसकीन हो पाती है। हाँ! यह बात मुसल्लम है कि मौत की सजा देने की आथोरिटी सिर्फ हूकूमत वक्त को ही हासिल है क्योंकि आम आदमी के कानून को हाथ में लेने से मुआशरा में लाकानूनियत और अफरातफरी को ही फरोग मिलेगा। लिहाजा हूकूमत वक्त की जिम्मेदारी है कि तौहीन व तहकीर के अमल को संगीन जुर्म करार देकर मुजरिमों के खिलाफ जरूरी कार्यवाई करे।

पूरी इंसानियत को यह भी अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि हर मुसलमान के दिल में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत दुनिया की हर चीज से ज्यादा है क्योंकि शरीअते इस्लामिया की तालिमात के मुताबिक हर मुसलमान का हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपकी सुन्नतों से मोहब्बत करना लाजिम और जरूरी है। नीज हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिन्दगी में ऐसी औसाफे हमीदा बयक वक्त मौजूद थे जो आज तक न किसी इंसान की जिन्दगी में मौजूद रही हैं और न ही उन औसाफे हमीदा से मुत्तसिफ कोई शख्स इस दुनिया में आयेगा। आपकी चंद सिफात यह हैं। इज्ज़ व इंकिसारी (सब के साथ आजज़ी के साथ पेश आना), लोगों को माफ़ करना, हमसायों का ख्याल, लोगों की खिदमत, बच्चों पर शफकत, औरतों का इहतिराम, जानवरों पर रहम, अदल व इंसाफ, गुलाम और यतीम का ख्याल, शुजाअत व बहादुरी, इस्तिकामत, जुहद व किनाअत (जो मिल जाये उस पर खुश रहना), सफाई मामलात, सलाम में पहल, सखावत व फैयाजी, मेहमान नवाजी। हजरत अनस रजी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया तुममें से कोई उस वक्त तक कामिल मोमिन नहीं हो सकता जब तक मैं उसको अपने बच्चों, अपने मां बाप और सब लोगों से ज्यादा महबूब न हो जाऊं। (सही मुस्लिम व बुखारी) एक मरतबा हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हजरत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु का हाथ पकड़े हुए थे। हजरत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह! आप मुझे हर चीज से ज्यादा अज़ीज़ हैं सिवाए मेरी अपनी जान के। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया नहीं, उस ज़ात की कसम जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है (ईमान उस वक्त तक पूरा नहीं हो सकता) जब तक मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा अज़ीज़ न हो जाऊं। हजरत उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया वल्लाह! अब आप मुझे मेरी अपनी जान से भी ज्यादा अज़ीज़ हैं। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया उमर! अब बात हुई। (सही बुखारी)

दुनिया की मौजूदा सूरते हाल को सामने रख कर मैं तमाम मुस्लमानों से यही दरखास्त करता हूं कि अपने जज़्बात को काबू में रख कर हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालिमात को अपनी अम्ली जिन्दगी में लायें और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पैगाम को दूसरों तक पहुंचाने में अपनी सलाहियतें लगायें। नबी बनाये जाने से लेकर वफात तक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बेशुमार तकलिफें दी गईं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऊपर ऊंटनी की ओझड़ी डाली गई। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऊपर घर का कूडा डाला गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को काहिन, जादुगर और मजनु कह कर मज़ाक़ उड़ाया गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटियों को तलाक दी गई। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तीन साल तक बायेकाट किया गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पत्थर बरसाये गये। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपना शहर छोड़ना पड़ा। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे उहद के मौका पर जख्मी किए गए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़हर दे कर मारने की कोशिश की गई। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी एक दिन में दोनों वक्त पेट भर कर खाना नहीं खाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भूक की शिद्दत की वजह से अपने पेट पर दो पत्थर बांधे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर में दो दो महीने तक चुल्हा नहीं जला। आप सल्लल्लाहु अलैहि के ऊपर पत्थर की चट्टान गिरा कर मारने की कोशिश की गई। हजरत फातिमा रजी अल्लाहु अन्हा के सिवा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सारी औलाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने वफात हुई। गर्जकि सैयदुल अम्बिया व सैयदुल बशर को मुख्तलिफ तरीकों से सताया गया मगर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कभी सबर का दामन नहीं -छोड़ा। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रिसालत की अहम जिम्मेदारी को इस्तिकामत के साथ बहुसन खुबी अंजाम देते रहे, हमें इन वाक्यात से यह सबक लेना चाहिए कि घरैलू या मूल्की या आलमी सतह पर जैसे भी हालात हमारे ऊपर आयें हम उनपर सबर करें और अपने नबी के नकशे कदम पर चलते हुए अल्लाह से अपना तअल्लुक मजबूत करें।

हिन्दी रूपांतरण :-जैनुल आबेदीन, कटिहार

0091-7017905326
00966-508237446