वेन्टीलेटर पर कांग्रेस
मो. आरिफ़ नगरामी
आईन्दा आठ महीनों के बाद मुल्क की पांच रियासतों में एलेक्शन है। इन पांच रियासतों मेें से चार में गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी बरसरे एतेदार है जब कि पांचवीं रियासत जिस में एलेक्शन होने है वहां मुल्क की सब से कदीम और एक जमाने में पूरे हिन्दुस्तान में हुक्मरानी करने वाली पार्टी कांग्रेस हुकूमत में हे वह पंचाब की रियासत है। पंजाब को छोडकर चारों रियासतों मेें बीजेपी ने इन्तेखाबी तैयारियों बहुत ही जोर व शोर के साथ शुरू कर दी है । पंजाब में अगरचे एलेक्शन होने वाले है मगर वहां पार्टी के अन्दर का खलफिशार एलेक्शन की तैयारियों मेें रोडा अटका रहा है। बीजेपी से कांग्रेस में वारिद होने वाले और माजी के स्टार क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब के 79 साला वजीरे आला अमरिन्दर सिंह को परेशान कर रखा है। पंजाब में कांग्रेस की हुकूमत बनने के बाद कैप्टन अमरिन्दर सिंह की वेजारत मेें सिद्धू को काबीनी वजीरे बनाया गया था। मगर कुछ अरसे बाद वजीरेआला से एख्तेलाफ के बाद सिद्धू ने वेजारत से इस्तीफा दे दिया था। अब जब कि एलेक्शन सर पर है दोनों लीडरों के दरमियान जूतम पैजार अपने पूरे शबाब पर है। हालांकिन कांग्रेस हाई कमान ने सिद्धू को नायब वजीरे आला के ओहदे की पेशकश की है मगर सिद्धू साहब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सरबराह के ओहदा पर फाएज होना चाहते है। जो कि वजीरे आला कैप्टन अमरिन्दर सिंह को मन्जूर नहीं है। अब देखना है कि दोनों के दरमियान का यह सियासी तनाजा कब हल होता है और पंजाब में कांग्रेस कब इन्तेखाब के लिये तैयारियां शुरू करती है।
गुजिश्ता महीनों में भी मुल्क के पांच सूबों में एलेक्शन हुये थे उस में मगरिबी बंगाल को खास अहमियत दी गयी थी। खासकर बीजेपी ने मगरिबी बंगाल में जीत को अपनी इज्जत और अना का मसला बना लिया था। खैर वहां बीजेपी को शिकस्त हुयी। कांग्रेस की बद आमालियों, फैसला लेने में ताखीर, अवाम से राबता की कमी की वजह से हालत अब यह हो गयी है कि खुद कांग्रेसी पार्टी छोड रहे हैं। रीता बहुगुणा जोशी से जो सिलसिला शुरू हुआ वह जितिन प्रसाद तक पहुंचा। अब उत्तर प्रदेश से यह खबरें आ रही हैं कि कांग्रेस के कई और बड़े चेहरे समाजवादी पार्टी मेें शामिल होने की मन्सूबा बंदी कर रहे है। इन्तेहाई बावसूक जराये के मुताबिक उत्तर प्रदेश कांग्रेस के सदर अजय कुमार लल्लू और उत्तर प्रदेश कांग्रेस मीडिया शोबा के चेयरमैन नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अखिलेश यादव से खुसूसी मुलाकात की है। बताया जाता है कि कांग्रेस के दोनों लीडरों की अखिलेश यादव से मुलाकात उनके घर पर पांच दिनों कब्ल हुई है। हालांकि मुलाकात के दौरान क्या बात हुयी इसके सिलसिले में कुछ वाज़ेह नहीं हैं। लेकिन यह यकीन है कि यह मुलाकात समाजवादी पार्टी में शमूलियत का मंसूबा है। क्योंकि यह मुलाकात कांग्रेस आला कमान की इजाजत के बेगैर की गयी है। वाज़ेह रहे कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी बीएसपी में एक कद्दावर मुस्लिम लीडर थे लेकिन मायावती से एख्तेलाफ के बाद उनको पार्टी से बाहर कर दिया गया। कांग्रेस में शमूलियत से पहले नसीमुद्दीन सिद्दीकी समाजवादी पार्टी में शामिल होना चाहते थे लेकिन उस वक्त आजम खां की वजह से ऐसा नहीं हो सका। अब जब कि आजम खां जेल में है और समाजवादी पार्टी ने अपने दरवाजे सबके लिये खोल दिये है तो नसीमुद्दीन सिद्दीकी के लिये यह अच्छा मौका नजर आ रहा है। और जहां तक अजय कुमार लल्लू का सवाल है तो इस वक्त उतर प्रदेश के लिये कांग्रेस में नये सदर की तलाश है। तो अजय कुमार लल्लू को लगता है कि इनके लिये समाजवादी पार्टी बेहतर और महफूज जगह है। सियासी गलियारों की खबर है कि जितिन प्रसाद ने भी बीजेपी में शामिल होने से पहले अखिलेश यादव से पूरी फैमिली के साथ मुलाकात की थी। लेकिन बात न बन पाने के बाद वह बीजेपी में शामिल हो गये। इसी तरह देहली कांग्रेस के इन्चार्ज और जनरल सेक्रेट्री इमरान मसूद और शामली से कांग्रेस के रूक्ने असेम्बली पंकज कुमार मलिक के बारे मेें भी खबरें आ रही है कि वह दोनों बहुत जल्द समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते है।
गुजिश्ता साल सालों में दर्जनों नामवर कांग्रेस लीडर पार्टी छोड चुके है। एस0एम कृष्णा ज्योतिरादित्य सिधिया, हेमन्त विश्वा सरमा, नारायन राणे, रीता बहुगुणा जोशी, एन0डी0तिवारी, जगदम्बिका पाल, सत्यपाल महाराज, धर्मेन्द्र सिंह, कृष्णा तीरथ ने कांग्रेस छोड कर बीजेपी का दामन थाम लिया। जब कि कर्नाटक, गोवा ओर मध्य प्रदेश में एलेक्शन हारने के बाद भी बीजेपी ने गद्दार कांग्रेसी मेम्बराने असेम्बली के सहारे ही एक्तेदार पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस आला कमान की नाअहली अवाम से रिश्ता कायम न होने की वजह और फैसला लेने में ताखीर की पुरानी आदत की वजह से कांग्रेस मुसलसल जबूंहाली का शिकार है। इस वक्त कांग्रेस वेन्टीलेटर पर है। क्योंकि कांग्रेस के मौजूदा उबूरी सदर सोनिया गाँधी ज्यादातर अलील रहती है और पार्टी के लिये ज्यादा वक्त देना उनके लिये मुमकिन नहीं है तब कि कांगेस को इस वक्त जुज़ वक्ती नहीं बल्कि फुलटाइम सदर की जरूरत है। 2019 में मोदी के एक्तेदार में वापसी से दिलशिकस्ता राहुल गांधी ने पार्टी की सदारत छोड दी थी। और इस वक्त वह टिवीटर पर मोदी सरकार के खिलाफ आम हिन्दुस्तानियों के जज्बात की तरजुमानी करते है। लेकिन यह बात भी रोजे रोशन की तरह बिल्कुल अयां और वाज़ेह है कि महज ट्विटर के जरिये बीजेपी को एलेक्शन में शिकस्त नहीं दी जा सकती है। इसके लिये जमीन पर उतर कर मेहनत करने की सख्त जरूरत है। आम इन्तेखाबात में मोदी ने कांग्रेस को न सिर्फ दोबारा शिकस्त दी है बल्कि उन्होंने तो कांग्रेस पार्टी के वजूद को खत्म करने का अहेद कर रखा है।