उत्तराखंड में 4,000 से अधिक परिवारों को बेघर होने से बचने केलिए कांग्रेस पहुंची सुप्रीम कोर्ट
हल्द्वानी:
उत्तराखंड में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे की जमीन पर बरसों से रहने वाले 4,000 से अधिक परिवारों को घर खाली करने के लिए एक हफ्ते का नोटिस जारी किया गया है. उत्तराखंड हाई कोर्ट में चल रहा मुकदमा रेलवे ने जीत लिया है। जिस 78 एकड़ जमीन पर रेलवे दावा कर रहा है वहां करीब 100 साल से लोग रह रहे हैं और यहां लगभग 4300 मकान, दो मंदिर, 8 मस्जिद, 2 गेस्ट हाउस, 3 सरकारी स्कूल और 5 प्राइवेट स्कूल के अलावा कई धर्मशालाएं और पानी की टंकी, एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र भी मौजूद है।
दशकों से यहाँ रहने वाले अदालत के आदेश का विरोध कर रहे हैं। अब उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ हल्द्वानी के कांग्रेस के विधायक सुमित हृदयेश की कोशिशों से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है, जिसपर 5 जनवरी को सुनवाई होगी। याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने दायर की है। 78 एकड़ में फैला यह इलाका हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। हाईकोर्ट ने इसे रेलवे की संपत्ति बताते हुए वहां की बस्ती को अतिक्रमण बताया है। लेकिन जिस 78 एकड़ ज़मीन पर रेलवे दावा कर रहा है वहां लगभग 100 सालों से लोग रह रहे हैं।
20 दिसंबर 2022 को आए फैसले के मुताबिक उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा इलाके में जिन मोहल्लों को रेलवे की ज़मीन पर माना हैं, उनमें गफूर बस्ती, इन्दिरा नगर, किदवई नगर, नई बस्ती शामिल हैं। इन चार मोहल्लों में लगभग 4,365 मकान हैं, जिनमें करीब 50 हजार लोग सैकड़ो सालों से रहते आए हैं। कुल आबादी में 80 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की हैं। यहां के लगभग 70 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करते हैं।
हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक अगर समय सीमा के अंदर लोगों ने इलाके को नहीं खाली किया तो बुलडोजर के दम पर 50 हज़ार लोगों के आशियाने को जमींदोज कर दिया जाएगा। वहीं बनभूलपुरा के लोग अपने घरों को बचाने को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इलाके में रहने वाले कैंडल मार्च निकालकर विरोध जता रहे हैं।
2016 में रेलवे ने कहा था कि सिर्फ 22 एकड़ रेलवे की जमीन पर कब्जा हैं लेकिन उस समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कोर्ट में हलफनामा देकर बताया था कि यह पूरी ज़मीन सरकार के अधीन है। 2016 में सरकार ने इस भूमि को नजूल की माना था। जो ज़मीन 6 साल पहले तक सरकार की थी वो अब रेलवे की कैसी हो गई! मौजूदा सरकार ने जानबूझ कर इस मामले में हाईकोर्ट में कोई जवाब नहीं दाखिल किया ताकि यह ज़मीन रेलवे को अधिकृत हो जाए!”