लखनऊ:
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बताया है जिसमें उन्होंने इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर और समाजवादी शब्द जोड़े जाने को संविधान के साथ छेड़छाड़ बताया था। शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से मुख्यमंत्री के इस बयान पर स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाई की मांग की है।

शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा कि 25 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने भाजपा नेताओं द्वारा संविधान की प्रस्तावना से सेकुलर और समाजवादी शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को ख़ारिज कर इन दोनों शब्दों को संविधान के मूलभूत ढांचे का हिस्सा होना दोहराया। इसलिए संविधान की शपथ लेने वाला कोई मुख्यमंत्री संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना करने का साहस कैसे कर सकता है ? इस पर मुख्य न्यायाधीश को न्यायपालिका का इक़बाल बुलंद रखने के लिए मुख्यमंत्री के खिलाफ़ विधिक कार्यवाई करनी चाहिए। ताकि यह संदेश जाए कि कोई उन्हें पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ जैसा आरएसएस के आगे रेंगने वाला मुख्य न्यायाधीश न समझे।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि योगी आदित्यनाथ जैसे संविधान विरोधी लोगों का मनोबल संघी और डरपोक न्यायाधीशों के कारण बढ़ा है। अगर क़ानून अपना काम ठीक से करने लगे तो यही लोग संसद में रोते हुए भी दिखते हैं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आरएसएस समानता और बराबरी के सिद्धांत का विरोधी है इसीलिए उसे समाजवाद शब्द से नफ़रत है। यही कारण है कि आरएसएस स्वतंत्रता आंदोलन के खिलाफ अंग्रेज़ों के साथ था क्योंकि कांग्रेस समाजवादी विचारों वाला देश बनाना चाहती थी तो वहीं भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी का भी नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन था। उन्होंने कहा कि आरएसएस और भाजपा चाहते थे कि संविधान की प्रस्तावना से सेकुलर और समाजवादी शब्दों को हटाकर भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाए और दलितों और अतिपिछड़ों में जमींदारों की जो जमीनें कांग्रेस सरकारों द्वारा बांटी गयी थीं उन्हें वापस लेकर जमींदारों को दे दिया जाए।