लखनऊ
ज्ञानवापी – काशी विश्वनाथ मन्दिर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान न्यायपालिका की अवमानना है. हाईकोर्ट को चाहिए कि वो अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए मुख्यमंत्री को एक विचाराधीन मुकदमे पर टिप्पणी करने पर अवमानना का नोटिस जारी करे. ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 161 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह सिर्फ़ संयोग नहीं है कि विश्व हिंदू परिषद पहले सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों की बैठक करता है, फिर प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के घर व्यक्तिगत कार्यक्रम में जाते हैं और उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री ज्ञानवापी मस्जिद को विश्वनाथ मन्दिर बताते हैं. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ऐसा बोलकर विचाराधीन मामले में अदालत पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं कि उसे इस मुकदमे में क्या फैसला देना होगा. उन्होंने कहा कि यह पूरी कवायद पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को बदलने की कोशिश का हिस्सा है और ऐसा लगता है कि नवंबर में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले चंद्रचूड़ जी इस क़ानून को खत्म करने के आरएसएस के एजेंडे को पूरा करना चाहते हैं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जो भी रिटायर्ड जज विश्व हिंदू परिषद की बैठक में शामिल हुए हैं उनके फैसले स्वतः ही संदेह के दायरे में आ गए हैं. उन्होंने कहा कि जो काम भाजपा सरकारें ख़ुद नहीं कर पा रही हैं उसे न्यायपालिका के माध्यम से करवाना चाहती हैं. इसलिए ऐसे जजों के फैसलों की समीक्षा की जानी चाहिए.

शाहनवाज़ आलम ने शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत के उस बयान से सहमति जतायी जिसमें उन्होंने शिवसेना में हुई टूट पर सुनवाई से मुख्य न्यायाधीश से स्वतः ही हट जाने की माँग की थी. उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश और प्रधामन्त्री की अनौपचारिक मुलाक़ात की तस्वीर सार्वजनिक हो जाने के बाद मुख्य न्यायाधीश अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं इसलिए भाजपा और आरएसएस के एजेंडे से जुड़े मुकदमों से चंद्रचूड़ जी को या तो खुद अलग हो जाना चाहिए या फिर याचिकाकर्ताओं को उनके बेंच से याचीकाएं हटवा लेनी चाहियें.