यूपी के सियासी संग्राम में शह और मात का खेल शुरू
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।सियासी खेल भी अजब ग़ज़ब होते है जनता इनके सियासी खेल का हिस्सा होती है इसमें जनता यह नहीं समझ पाती कि हमारी बात कर कौन रहा है ? या हमारी भलाई के लिए कौन काम करना चाहता है ? यह ऐसे सवाल है जिसका जवाब जनता चाहती तो है लेकिन उसे कोई देने को तैयार नही है या यूँ भी कह सकते है कि जनता उनके सियासी मकड़जाल में इस तरह फँस जाती है कि यह भूल जाती है कि हम इनसे कोई सवाल करे कि यह सब हो क्या रहा है।हम बात कर रहे यूपी की सियासत की जहाँ अपना-अपना वर्चस्व क़ायम करने के लिए सियासी संग्राम हो रहा है अब इस सियासी संग्राम में कौन सियासी दल बाज़ी मारेगा यह तो अभी साफ़ नहीं हो पा रहा है और ना अभी होगा मुद्दा है योगी सरकार की नाकामियों को जनता के सामने रखना नाकामियाँ होना अपनी जगह है वो है।उसमें जो होड़ मची है कि मैं आगे निकल जाऊँ कि मैं आगे निकल जाऊँ इसमें कुछ दल ऐसे दिखने लगे है जिन्हें कहा जा रहा है बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना।हाँ लेकिन ये कहा जा सकता है सभी सियासी खिलाड़ी अपने लक्ष्य को साधने के लिए दिल खोलकर मेहनत कर रहे है।यूपी के सियासी संग्राम में शह और मात के खेल की हुईं शुरूआत हो चुकी है योगी सरकार ने भी चुनावी पत्ते फेंटना शुरू कर दिया है आम आदमी पार्टी का यूपी और उत्तराखंड की सियासत में भागीदारी करना मोदी की भाजपा की शतरंज की चाल का हिस्सा माना जा रहा है,गोदी मीडिया और उसके सारती “आप” की बीन बजाते घूम रहे है।आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए सभी सियासी दलों ने अपने सियासी तरकश से तीर छोड़ने शुरू कर दिए है अब देखना है कि कौन सियासी दल बाज़ी अपने नाम कर यूपी सत्ता को क़ब्ज़ाने में कामयाब होगा या मोदी की भाजपा विपक्ष को आपस में लड़ा अपनी सत्ता बचाने में कामयाब हो जाएगी। ख़ैर यह तो 2022 के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद पता चलेगा।यूपी की सियासत में पिछले तीन दसको से जातिवादी राजनीति हावी रही है।2014 के आम चुनावों के बाद धार्मिक आधारित सियासत हावी होने के बाद यूपी की सियासत भी इसी रंग में रंग गईं है अब देखना है क्या धार्मिक आधारित सियासत का अंत होने जा रहा है क्योंकि जिस तरह से यूपी सहित देश के हालात ख़राब है ना रोज़गार है ना कारोबार है ना क़ानून-व्यवस्था की हालात ठीक है हर तरफ़ तराही-तराही है यह बात अपनी जगह है।इन सब हालातों को ध्यान में रखते हुए सियासी दल जनता को धार्मिक आधारित दौर की कमियों को जनता के सामने रख उनको यह अहसास दिलाने की कोशिश कर रहे है कि धार्मिक आधारित सियासत ने देश और देश के सबसे बड़े राज्य यूपी को गढ्ढे में धकेलने का काम किया है जिसको हमें जनता के सहयोग से मिलकर रोकना है।अब यह तो वक़्त बताएगा कि हालात सुधरेंगे या जनता यह सब अनदेखा कर उसी ढर्रे पर चलेंगी जिस ढर्रे पर वह 2014 से चल रही हैं।ख़ैर हम बात कर रहे थे सियासी दलों की जो मोदी की भाजपा को चुनौती देने का काम कर रहे है या दिखावा कर मोदी की भाजपा की पिछले दरवाज़े से मदद कर रहे है।क्या दिल्ली की दस साल पुरानी पार्टी आम आदमी पार्टी वास्तव में यूपी में चुनाव लड़ने के लिए आयी है या इसके पीछे कोई राजनीतिक नूरा कुश्ती है ? यह ऐसा सवाल है जिस पर सियासी जानकार गहन मंथन कर रहे है।एक साल छह महा बाद या उससे पहले यूपी और उत्तराखंड में चुनावी बिगुल बज जाएगा उसी के मध्य नज़र सियासी दलों ने अपने-अपने पहलवान सियासी अखाड़े में उतार दिए है।दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने यूपी और उत्तराखंड में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है दोनों राज्यों में 2022 के शुरूआत में ही चुनाव संभावित है।आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद ठाकुर संजय सिंह यूपी में सक्रिय हो गए है और अलग-अलग मुद्दों पर यूपी की योगी सरकार को घेरते दिखाई दे रहे है मुद्दा चाहे जो हो उसमें आप सांसद सामने नज़र आ रहे है।ऐसा लग रहा जैसे योगी सरकार भी यह प्रयास कर रही है कि आप पार्टी यूपी सियासत के संग्राम में फ़िट हो जाए।योगी सरकार ने अनावश्यक तरीक़े से आप सांसद ठाकुर संजय सिंह के ख़िलाफ़ एक के बाद एक दस FIR दर्ज करा आप पार्टी को विपक्ष के तौर पर फ़िट करने की कोशिश की है यह बात अलग है कि वह जनता में अपनी पैंठ बना पाती है या नही यह सियासी गर्भ में छिपा है।सियासी पंडित ऐसे क़यास क्यों लगा रहे है इसकी वजह है जो साफ़तौर पर नज़र आती है आप सांसद के विरूद्ध वैसा सत्ता का नशा नही दिखता जैसा यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को लेकर दिखता है सरकार की दमनात्मक कार्रवाई एवं जन विरोधी नीतियों के विरूद्ध कांग्रेस के नेता अजय कुमार लल्लू को आए दिन सरकार और उनकी पुलिस गिरफ़्तार करती रहती है कभी नज़र बंद कर लेती है कभी पार्कों में ले जाकर शाम को छोड़ देती है।लॉकडाउन के दौरान भूखे प्यासें सड़क के द्वारा पैदल अपने घरों को जा रहे ग़रीब मज़दूरों को बसों से भेजने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव यूपी की प्रभारी श्रीमती प्रियंका गाँधी के प्रयासों से राजस्थान सरकार से एक हज़ार बसे मंगा कर यूपी सरकार को देनी चाही थी जिससे मज़दूर पैदल ना जाकर बसों से चले जाए लेकिन योगी सरकार ने उनको फ़िटनेस की कमी बताकर लेने से इंकार कर दिया था जबकि कांग्रेस और राजस्थान सरकार का कहना था कि सभी बसों की फ़िटनेस चेक कर ही यूपी सरकार को भेजी गईं थी लेकिन योगी सरकार ने उन सब दलीलों को ख़ारिज कर कांग्रेस के द्वारा मज़दूरों के लिए दी गईं बसों को नही लिया गया था और ना ही ख़ुद योगी सरकार ने मज़दूरों के लिए कोई प्रबंध किया था मज़दूर पैदल ही अपने-अपने घरों तक गए थे उनके पैरों में छाले पड़ गए थे लेकिन योगी सरकार ने उनके ज़ख़्मों को नज़रअंदाज़ कर उनको अपने हाल पर छोड़ दिया था और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को ग़ैर फ़िटनेस बसे देने के आरोप में FIR दर्ज कर जेल भेज दिया था जिसकी वजह से अजय कुमार लल्लू को एक महीने से अधिक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था।इन सब मुद्दों पर फ़ोकस रखते हुए सियासी जानकार क़हते है कि प्रदेश सरकार और आप में सियासी साँठगाँठ है या हो गईं है ? अन्ना को आगे कर 2013 में RSS और मोदी की भाजपा ने कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाया उसमें से ही आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ यह भी हम सब जानते है दोनों की रणनीति एक जैसी है इस कड़ी में एक नाम और भी है जो अन्ना आन्दोलन की मज़बूत सिपाही रही रिटायर IPS किरण बेदी मोदी की भाजपा की सरकार बनते ही किरण बेदी मोदी की भाजपा में शामिल हो गईं जो आज पुडुचेरी की राज्यपाल है।अन्ना आन्दोलन सीएजी की रिपोर्ट को आधार बनाकर खड़ा किया गया था जिसमें सीएजी रहे विनोद राय ने टूजी स्पेक्ट्रम के आवंटन में भ्रष्टाचार होना बताया था।मोदी सरकार बनते ही सीएजी रहे विनोद राय को बैंकिंग बोर्ड ऑफ़ इंडिया का चेयरमैन बनाकर इनाम दे दिया गया था यह बात अलग है इस षड्यंत्रकारी रिपोर्ट में जिस घोटाले के कथित आरोप लगाए गए थे उसमें हुई जाँच में किसी आरोपी के ख़िलाफ़ कोई सबूत नही मिलने की वजह से सीबीआई की अदालत से सभी आरोपियों को बरी कर दिए है जबकि यहाँ इसका उल्लेख करना भी ज़रूरी है कि यह सभी आरोपी मोदी सरकार में बरी हुए है सीबीआई (सरकारी तोता) भी कुछ नही कर पाया।इस आन्दोलन को खड़ा करने में विवेकानंद फ़ाउंडेशन की बड़ी भूमिका रही थी जिसकी स्थापना 2009 में की गईं थी अन्ना हज़ारे, अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी,रामदेव को एक मंच पर लाने में और टीम अन्ना बनाने में विवेकानंद फ़ाउंडेशन ने बड़ा किरदार निभाया इसके कर्ताधर्ता अजित डोभाल है जो आज प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है।ऐसे और भी कई सवाल है जो सीधे आम आदमी पार्टी और मोदी की भाजपा से साँठगाँठ होने की ओर इसारा करते है कई ऐसे मुद्दों पर आप की कयादत अरविन्द केजरीवाल मोदी की भाजपा से विपक्ष की भूमिका में बात करते नज़र नही आए चाहे वह इस आरोप की बोछारों से घिरी कि मोदी की भाजपा कि दिल्ली दंगे भाजपा द्वारा प्रायोजित थे ? या अनुच्छेद 370 हटाने का मामला रहा हो नही तो जो केजरीवाल नगर निगम में जमादार को हटाने के ख़िलाफ़ धरने पर बैठ जाते हो या बैठने की धमकी देते हो वह दिल्ली दंगों की आग में जलती-बुझती रही और धरना मास्टर ख़ामोशी की चादर ओढ़े सोते रहे यह बात गले से नीचे नही उतरती कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ FIR ना होना क्या दर्शाता है कोर्ट का दिल्ली पुलिस की जाँच पर सवाल उठाना और केजरीवाल की ख़ामोशी क्या कहती है ? कोविड-19 को लेकर भी केन्द्र सरकार की स्ट्रेटेजी पर अरविन्द केजरीवाल का केन्द्र से कोई नाराज़गी ना दिखाना।यही सब सवाल है जो यूपी और उत्तराखंड के सियासी संग्राम में कूदने पर आम आदमी पार्टी की नीयत पर शक की गुंजाईश पैदा कर रहे है दोनों ही राज्यों में मोदी की भाजपा की सरकारें है यूपी और उत्तराखंड में एंटी इनकंबेंसी के ख़तरे को कम करने के लिए ऐसा प्रयोग किया जा रहा है या एक संयोग है ?।मौजूदा हालात में यूपी की योगी सरकार की छवि ख़राब हो रही है सरकार से ब्राह्मणों व अन्य की नाराज़गी का फ़ायदा कांग्रेस या बसपा और सपा को ना मिले इस लिए आम आदमी पार्टी को लाया गया है ?।यूपी में ब्राह्मण का मुद्दा बहुत ही ज़ोर पकड़ रहा है इस लिए आप सांसद ठाकुर संजय सिंह को लगा दिया है आप की मोदी की भाजपा से साँठगाँठ है यह बात अब आम होती जा रही है धीरे-धीरे सब समझ रहे है।इससे इस बात के संकेत मिलते है जनता की नाराज़गी को योगी सरकार भी समझ रही है उसी को मैनेज किया जा रहा है योगी सरकार को सबसे ज़्यादा ख़तरा ब्राह्मणों से हो सकता है क्योंकि उनकी संख्या 14% बतायी जाती है अगर उसने अपनी सियासी समझ का इस्तेमाल कर वोटिंग की तो योगी सरकार का जाना सुनिश्चित माना जा सकता है लेकिन वास्तव में ब्राह्मणों को सियासी फ़ैसला करना होगा।अब यह तो चुनावी बिगुल बजने पर ही साफ़ हो पाएगा कि नाराज़ ब्राह्मण किस दल के साथ जा रहा है या वही खड़ा जहाँ वह 2014 से है जिसकी संभावना कम लगती है परन्तु यह कहना जल्द बाज़ी होगी कि वह जा कहाँ रहा है राजनीतिक विश्लेषण करने वालों से चर्चा करने पर ज्ञात होता है कि उसकी पहले पसंद कांग्रेस हो सकती है दूसरी बसपा व तीसरी सपा हो सकती है कांग्रेस में जाने पर मुसलमान भी उसके साथ सपा कंपनी से मूव कर जाएगा जहाँ वह अपने आपको अकेला महसूस कर रहा है जिसकी वजह कांग्रेस यूपी में मज़बूत हो जाएगी हो सकता है गठबंधन की सरकार भी बना ले।दूसरी उसकी पसंद बसपा हो सकती है क्योंकि उसका वोटबैंक बड़ा है जिसके साथ जाने के बाद आसानी से योगी सरकार को ब्राह्मणों की उपेक्षा करने का सबक़ सिखाया जा सकता है तीसरे वह सपा को बहुत मुश्किल से स्वीकार करेगा क्योंकि यादव वोटबैंक इतना बड़ा नही है कि वह उसके साथ जाकर योगी सरकार को हरा देगा इसकी सबसे बड़ी वजह मुसलमान कांग्रेस में भी जाएगा वह कितना जाएगा यह चुनाव के वक़्त साफ़ हो पाएगा इस लिए सपा कमज़ोर ही रहेंगी यही वजह है ब्राह्मण सपा की तरफ़ रूख शायद ही करेगे।