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भैंस की पूंछ पकड़ वैतरणी पार करने के मुंगेरीलाली ख्वाब

(आलेख : बादल सरोज) सिर्फ श्याम रंगीला ही परेशान नहीं है — नामी स्टैंडअप कॉमेडियन्स की टी आर पी गिरने की आशंकाएं वास्तविक संभावनाएं बनती दिख रही हैं, क्योंकि लोग मिमिक्री से
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मोदी-शाह के कहने पर मायावती ने बसपा को भाजपा की बी-टीम में बदल दिया

अरुण श्रीवास्तव द्वारा(मूल अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट) यदि दलितों की महारानी मायावती ने अपने दलित साथियों को धोखा दिया है, तो स्वघोषित विश्व
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अब एक चुनाव, एक उम्मीदवार!

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा) मोदी जी ने क्या कुछ गलत कहा था? राहुल गांधी अमेठी से भागे हैं कि नहीं। अमेठी से भागकर बगल में रायबरेली में गए हैं, पर भागे तो
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पिक्चर तो अभी बाक़ी है, दोस्त!

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा) हम तो पहले ही कह रहे थे, ये इंडिया वाले क्या खाकर मोदी जी का मुकाबला करेंगे। कहां मोदी जी की छप्पन इंच की छाती और कहां इनका
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आज के दौर में ट्रेड यूनियन आंदोलन और चुनौतियां

(अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर विशेष आलेख : संजय पराते) आजादी के आंदोलन में ट्रेड यूनियनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है| वैसे तो वर्ष 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक)
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भारतीय संविधान और हिंदुत्व के पैरोकारों की अंतहीन बेचैनी

(आलेख : सुभाष गाताडे) लोकसभा चुनाव के प्रचार में कई भाजपा नेता संविधान बदलने के लिए बहुमत हासिल करने की बात दोहरा चुके हैं। उनके ये बयान नए नहीं हैं, बल्कि संघ
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मोहसिना की कोठी क्या तनुज की राह करेगी आसान, क्या टोटका करेगा काम?

ब्यूरो चीफ फहीम सिद्दीकी बाराबंकी। मोहसिना क़िदवई, राजनीतिक गलियारे का एक बहुत कद्दावर नाम। नब्बे साल से ऊपर की मिसाली ज़िन्दगी, जिसमें कोई दाग नही,किसी से कोई तल्खी नही, कोई धोखेबाज़ी नही,
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सीएए : एक क़ानून धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक संविधान के ख़िलाफ़

(आलेख : शमसुल इस्लाम) भारत में राष्ट्रविरोधी, अमानवीय एवं धार्मिक रूप से कट्टर नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 लागू हो गया है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए), जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से
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निवेशकों के लिए स्ट्रेस टेस्ट का क्या मतलब है?

अश्विन पाटनी, हेड प्रोडक्ट्स एंड ऑल्टरनेटिव्स, एक्सिस एएमसी एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) ने मार्च 2024 से एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) के लिए अपनी छोटी और मिड-कैप फंड योजनाओं पर
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लोकतंत्र का गहराता संकट और संघ-भाजपा की ख़तरनाक पदचापें

(आलेख : जवरीमल्ल पारख) इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह दौर आज़ादी के बाद का सबसे संकटपूर्ण और चुनौती भरा दौर है। न केवल आर्थिक क्षेत्र गहरे संकट