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लाउडस्पीकर के पीछे पगलाता देश

तौक़ीर सिद्दीक़ी पूजा-आरती, अज़ान-नमाज़, तीज-त्यौहार यह सब तो प्रेम, मोहब्बत, शांति और सुकून के पर्यायवाची माने जाते थे पर ऐसा क्या हो गया कि यह शब्द अब विलोमार्थी हो गए. पिछले कुछ
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रमज़ान में शुगर के मरीज़ों के एहतियात

मोहम्मद आरिफ़ नगरामी रमजानुल मुबारक की आमद मुसलमानाने आलम के लिए किसी खुशी की नावेद से कम नहीं है। क्योंकि इस माहे खैर में रहमतों, नेमतों, बरकतों और इनायतों का नुजूल हर
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शिवपाल पर अखिलेश की बढ़ती तल्ख़ी

तौक़ीर सिद्दीक़ी चाचा शिवपाल को लेकर अखिलेश से अब पत्रकारों के सवाल बढ़ते जा रहे हैं, विधानसभा चुनावों के बाद यादव कुनबे में कलह बढ़ती जा रही है. शिवपाल का रवैय्या भी
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गुड फ्राइडे: दुनिया के पापों के लिए अंतिम बलिदान का दिन

ईसाई समुदाय के लिए अहम त्योहार गुड फ्राइडे इस साल 15 अप्रैल को है. इसे ‘होली फ्राइडे’ या ‘ग्रेट फ्राइडे’ के नाम से भी जाना जाता है. अलग-अलग देशों में इसके अलग-अलग
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आज भी पहले जितने प्रासंगिक हैं आम्बेडकर जी के विचार

-डॉ. सौरभ मालवीय सामाजिक समता एवं सामाजिक न्याय के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले डॉ. भीमराव आम्बेडकर के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन
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आरएसएस द्वारा अंबेडकर को हिन्दुत्व का पक्षधर पेश करने का प्रयास

–एस आर दारा पुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट एक समाचार-पत्र के अनुसार इस बार आरएसएस दलितों को जोड़ने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रहा है। इसके अनुसार पहली
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रोज़ा, नमाज़, तरावीह

मोहम्मद आरिफ नगरामी माहे रमजान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है। जिस तरह मौसमे बहार में हर तरफ सब्जा ही सब्जा नजर आता है। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल नजर आते
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नमाजे़ तरावीह रमज़ानुल मुबारक का एक मसनून अमल

मोहम्मद आरिफ नगरामी रमजानुल मुबारक का माहे मुकद्दस रहमतो बरकतो, साअदतों और फुयूज व इनामाते रब्बानी का गिरा बहां मजमुवा है, अहले ईमान इसकी आमद का पूरे साल दीदा व दिल फर्शे
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हमारा रमज़ान कैसे गुजरे?

मोहम्मद आरिफ नगरामी इबादत का महीना रमजान आ गया है। रमजान माह में नेक बंदों पर अल्लाह की रहमतें नाजिल होती हैं। रमजान के पाक महीने में अल्लाह बंदों के लिए जन्नत
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दलित राजनीति को चाहिए एक नया रेडिकल विकल्प

एस. आर. दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट हाल के पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव ने दर्शाया है कि दलित राजनीति एक बार फिर बुरी तरह से विफल हुई है.