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‘भारत जोड़ो यात्रा’: बोहनी तो अच्छी हुई

-योगेन्द्र यादव यात्रा कैसी चल रही है? कुछ असर दिखाई दिया? चुनाव में फायदा होगा? कुछ हासिल होगा भी या नहीं? जब से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कन्याकुमारी से रवाना हुई है तब
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जनांदोलनों और राजनीतिक दलों की ऊर्जा जोड़ने की जरूरत

योगेंद्र यादव जैसे ही संयुक्त किसान मोर्चा की समन्वय समिति से मेरे इस्तीफे की खबर चलनी शुरू हुई, कई शुभचिंतकों के फोन आने शुरू हो गए: ‘क्या हुआ? कोई मनमुटाव हो गया
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भारत जोड़ो का दर्शन : वो तोड़ेंगे, हम जोड़ेंगे

योगेंद्र यादव नए भारत जोड़ो का क्या चक्कर चलाया है, आंदोलनजीवी जी? किस भारत को जोड़ोगे आप? देख नहीं रहे, राष्ट्र तो अपने आप एकजुट हो रहा है। आपको देश जोडऩे की
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प्रतिपक्ष खड़ा करने की शुरुआत है भारत जोड़ो यात्रा

योगेंद्र यादव देश को एक पुल की ज़रूरत है, एक ऐसे राजनीतिक पुल की जो विपक्षी राजनीतिक दलों को जमीनी आंदोलनों से जोड़े. पिछले हफ्ते एक झलक मिली कि ऐसा पुल अपने
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इस्लामी तक़वीम का दूसरा महीना सफरूल मुज़फ़्फ़र

मोहम्मद आरिफ नगरामी इस्लामी तकवीम का आगाज मोहर्रमुल हराम से होता है जिसका दूसरा महीना सफरूल मुजफ्फर है। मुसलमानों की कुछ तादाद इस महीने को मनहूस समझती है और बहुत सारी तकरीबात
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बिलकीस बानो अगर बिमला देवी होती?

-योगेन्द्र यादव 15 अगस्त से बार-बार मेरे जेहन में ही हिंदी के महान कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रसिद्ध कविता ‘देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता’ गूंज रही है। इधर देश
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बड़ी बात रखने और फेंकने का फ़र्क

-योगेन्द्र यादव प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से एक बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि आज़ादी की अमृत जयंती के अवसर पर हम सिर्फ अतीत का गुणगान न करें, बल्कि आने
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देश की आजादी में उलमाओं के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता

डॉक्टर मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली भारत में विभिन्न रंगों के, विभिन्न भाषा बोलने वाले और विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग लम्बे समय से रहते चले आ रहे हैं। मक्का मुकर्रमा में
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देश की आजादी के लिए जाम-ए-शहादत पीने वाले ओलेमा

हर साल की तरह इस साल भी जश्न-ए-आजादी के मौके पर पूरे भारत में सभी रियासती सरकारें चाहे वह दांए बाजू की पार्टी हों या बाऐं बाजू की हों, या नाम निहाद
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ज़मीन हिलती थी और आसमान रोता था

ज़मीन हिलती थी और आसमान रोता था,ज़मीने गर्म पे सिब्ते नबी का लाशा था। आज की तारीख़ इसलाम की सरबुलंदी और यज़ीदी मुसलमानों की पस्ती की है। इमाम हुसैन तीन दिन के