अकेले दम पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी बसपा : मायावती
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने शुक्रवार को ऐलान किया कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को अकेले दम पर लड़ेगी।
एकला चलो
सुश्री मायावती ने अपने 65वें जन्मदिन के अवसर पर पत्रकारों से कहा कि कुछ ही समय के बाद उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में एक साथ विधानसभा के आम चुनाव होने वाले है, लेकिन बसपा दोनों राज्यों में बिहार की तरह और लोकसभा चुनाव की तरह भी किसी भी पार्टी के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी चुनावी समझौता नहीं करेगी, यानी इन दोनों राज्यों में पार्टी अकेले अपने बलबूते पर ही विधानसभा की सीटों पर पूरी तैयारी और दमदारी के साथ चुनाव लड़ेगी तथा अपनी सरकार भी बनायेगी।
विपक्षी पार्टियों पर हमला
उन्होने कहा कि गरीब, कमजोर और उपेक्षित वर्गों के हित व कल्याण के लिए बसपा गम्भीर, संवेदनशील, ईमानदार और संघर्षरत रहती है जिसके मुताबिक चलकर ही बसपा ने उत्तर प्रदेश में चार बार अपने नेतृत्व में सरकार भी चलाई है लेकिन यह सब जातिवादी, पूँजीवादी व संकीर्ण मानसिकता रखने वाली विपक्षी पार्टियों को अच्छा नहीं लगा और फिर इन्होने यहाँ बसपा के विरूद्ध अन्दर अन्दर एक होकर एवं किस्म-किस्म के साम, दाम, दण्ड, भेद अनेको हथकण्डे इस्तेमाल करके बसपा को आगे सत्ता में आने से रोका है।
नयी पार्टियों से झलकी परेशानी
बसपा प्रमुख ने कहा कि अब तो ये विरोधी पार्टियाँ षड्यंत्र के तहत् खासकर कमजोर वर्गों में से स्वार्थी किस्म के लोगों की खरीद-फरोख्त करके और पर्दे के पीछे से उनके जरिए अनेको संगठन एवं पार्टियाँ आदि बनवाके तथा अपने फायदे के हिसाब से चुनाव में उनके उम्मीदवार उतार कर कमजोर वर्गों के लोगों का वोट बाँटने मे लगी हुई है ताकि बसपा के उम्मीदवार सफल ना हो सके।
फूट डालो व राज करो की नीति
उन्होने कहा कि ये पार्टियाँ अंग्रेजों की ’’फूट डालो व राज करो’’ की नीति की तरह ही हमेशा यहाँ कमजोर व उपेक्षित वर्गों के ऊपर राज करके इनका शोषण व उत्पीड़न आदि करती रहे लेकिन इनके इस हथकण्डे कोे भी बसपा के लोगों को कामयाब नही होने देना है बल्कि अपनी फिर से यहाँ खुद की सरकार बनाने के लिए इन्हें पूर्णरूप से आशावादी बनकर व इसके जवाब में इनको अपने कमजोर एवं उपेक्षित वर्गों के वोटो को किसी भी कीमत बँटने व बिकने नहीं देना है और इनके इन सभी हथकण्डों का मुकाबला करके इन वर्गों को पुनः यहाँ सत्ता हासिल करना है तभी खासकर गरीब, दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में व साथ ही किसान, मजदूर, व्यापारी एवं अन्य मेहनतकश लोगों की भी दयनीय स्थिति में काफी कुछ सुधार व बदलाव आ सकता है।