कल्याण सिंह के निधन को भुनाने की कोशिश में भाजपा
टीम इंस्टेंटखबर
बीजेपी को यूँ ही प्रोपेगंडा पार्टी नहीं कहा जाता है, इस बात का ताज़ा सबूत यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का निधन है. जो पार्टी वोट बैंक की खातिर अपने बाबूजी को बेचने से बाज़ नहीं आयी उस पार्टी और उसके नेताओं से इंसानियत की उम्मीद आप कैसे कर सकते हैं, बस इसके लिए ट्विटर टाइमलाइन खंगालना होगा।
कल्याण सिंह के निधन की खबर 21 अगस्त की रात में आयी, 21 अगस्त की को अखिलेश यादव ने 10 बजकर 6 मिनट पर ट्वीट करके सबसे पहले कलयाण सिंह को श्रद्धांजलि दी, जबकि अखिलेश पर हमला करने वाले साक्षी महाराज का ट्वीट कल्याण सिंह के निधन के लगभग 12 घंटे बाद आया, यानी 22 अगस्त को सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर, उसके बाद हमारे योगी जी की नींद खुली, नींद खुलते ही महाराज पार्टी के हर बड़े नेता ट्वीट को री-ट्वीट करने लगे. भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने 10 बजकर 9 मिनट पर ट्वीट किया यानी अखिलेश के ट्वीट के तीन मिनट बाद यानि माना जाय कि अखिलेश का ट्वीट देखकर उन्हें याद आया कि सवेंदना प्रकट करने वाला ट्वीट करना है.
और तो छोड़िये, रामभक्त खड़ाऊँ लगाकर संवेदना जताने वाले सीएम योगी की आँखों से आंसू आये 21 अगस्त को रात दस बजकर 30 मिनट के बाद, अमित शाह ने शोक जताया 10 बजकर 26 मिनट पर, उसके बाद योगी जी की नींद खुली। भाजपा के बड़े बड़े नेताओं से अखिलेश ने कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि दी लेकिन भगवा ब्रिगेड को तो होने वाले विधानसभा चुनाव में वोट का माहौल बनाना है और इस बार कल्याण सिंह के नाम पर सहानुभूति लेनी है क्योंकि राम मंदिर का मुद्दा तो पहले ही ख़त्म हो चूका है.
अभी कल्याण सिंह की चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई थी कि भाजपा ने नया शिगूफा छेड़ दिया, भाजपा के OBC नेताओं ने अखिलेश यादव को यह कहकर टारगेट करना शुरू कर दिया कि वह कल्याण सिंह के अंतिम दर्शन करने पहुंचे नहीं। बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या लिखते हैं कि बाबूजी के अंतिम दर्शन में न आ कर अखिलेश यादव ने पिछड़े वर्ग की बात करने का नैतिक अधिकार खो दिया है, उनके द्वारा पिछड़ा वर्ग की बात करना केवल दिखावा है. वहीँ भाजपा प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने इस मामले में मुसलमानों को भी घुसेड़ दिया, स्वतंत्र देव सिंह ने लिखा कि बाबू जी के अंतिम दर्शन करने न आने की वजह मुस्लिम वोट बैंक तो नहीं। इस मामले में एक और नेता साक्षी महाराज ने भी अपनी टांग घुसेड़ दी, उन्होंने भी अखिलेश यादव पर निशाना साधा जबकि उन्हें कल्याण सिंह की याद उनके मरने के दस घंटे बाद आयी थी.
सोशल मीडिया पर कुछ यूज़र लिखते हैं कि योगी जी अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं गए क्योंकि वह ठहरे योगी, उन्होंने मोह माया सब त्याग दिया, लेकिन अचानक चुनावी साल में कल्याण सिंह के प्रति उनका मोह जाग गया.
अब कड़वी सच्चाई सुनिए, भाजपा ने अपने बाबू जी के साथ क्या क्या सलूक किया। भाजपा के संस्थापक सदस्य थे कल्याण सिंह, 1980 में जब पार्टी का गठन हुआ तो कल्याण सिंह को प्रदेश महामंत्री बनाया गया। कल्याण सिंह की बदौलत ही 1991 में भाजपा यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन उनके भाजपा ने कैसे धोखा और छल किया इसका सबूत देखिये। 1999 में भाजपा ने कल्याण सिंह की कुर्सी छीन ली, कल्याण सिंह ने भाजपा छोकर अलग पार्टी बना ली. उस वक्त भाजपा ने अपने प्रिय कल्याण सिंह के बारे में नारा दिया था “भुलक्कड़, भुजक्कड़, पियक्कड़”. सोचिये कि आज उनका सम्मान करने वाले ढोंगी तब कहाँ थे? उस वक्त क्या उनके मुंह में दही जम गया था? 2007 में भाजपा में कल्याण सिंह की वापसी हुई और बीजेपी ने उनके नाम पर चुनाव लड़ने की कोशिश की, लेकिन निराशा हाथ लगी.
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उस समय बहुत कम लोग अपने बाबू जी का साथ दे रहे थे. कल्याण सिंह हेलीकाप्टर से चुनाव प्रचार करने जाना चाहते थे लेकिन पार्टी ने अपने प्रिय नेता को यह सेवा नहीं उपलब्ध कराई। पार्टी के अंदर उनके विरुद्ध हो रही साज़िशों से तंग आकर कल्याण सिंह ने 2009 में तीसरी बार पार्टी छोड़ दी और उस समय मुलायम सिंह ने उन्हें एटा लोकसभा से उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ने में मदद की. मुलायम ने न सिर्फ चुनाव लडवाया बल्कि कह सकते हैं कि उन्हें जितवाया भी, हालाँकि समाजवादी पार्टी को इसका भारी नुक्सान उठाना पड़ा मगर मुलायम सिंह ने इसकी परवाह नहीं की.
अब बताइये कि कल्याण सिंह के साथ कौन सच्चा है और कौन झूठा। 2013 में कल्याण सिंह एकबार फिर भाजपा से पींगे बढ़ाने लगे, बीजेपी ने 2014 में चुनाव प्रचार में उनकी खूब सेवाएं लीं और बदले में चुनाव जीतते ही उन्हें राज्यपाल पद से नवाज़ दिया। जब राज्यपाल का कार्यकाल ख़त्म हुआ तो राजनीतिक चाह में वह एकबार सदस्य बन गए मगर भाजपा उनका पूरा उपयोग कर चुकी थी शायद इसीलिए कोई पद नहीं मिला।
वैसे यह बात तो सौ फ़ीसदी सच है कि अवसरवादी राजनीति करने में भाजपा का कोई मुकाबला नहीं। मरने के बाद ही सही, एक बार फिर भाजपा अपने बाबूजी जी को भुनाना चाहती है.