अपनों को बेगाना बनाती भाजपा
आखिर भाजपा के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे ने पार्टी छोड़ ही दिया. यह किसी को राजनीतिक घटना लग सकती है लेकिन यह दर्दनाक घटना है. खडसे जैसे नेता जो भाजपा की नीव के पत्थर थे पार्टी को अलविदा इतनी आसानी से नहीं किया होगा. . उन्होंने 4 वर्ष इंतजार किया. इस कलावधि में भाजपा में बाहर से नेताओं को संगठन में इतना बड़ा बना दिया गया है कि पार्टी के कार्यकर्ता सोच में पड़े हैं कि कहीं वे पार्टी के जोकर तो नहीं बन गए. आज कल कुछ पता नहीं चलता क्या हो रहा है. आज भारतीय जनता पार्टी अपने को ठगा हुआ जरूर महसूस करेगी क्योंकि लाडों, दरेकरों,पाटिलों जैसे नेताओं ने पार्टी में घुसपैंठ कर अपनों को बेगाना बनने पर मजबूर कर दिया है. खड़से का जाना इतना आसान नहीं है. यह अपनी धमक दिखायेगा, क्योंकि जिस चतुराई से शरद पवार ने महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण गढ़ लिया है उसके चक्रव्यूह से निकलना फिलहाल भाजपा और फडणवीस के लिए आसान नहीं है. पार्टी के मंचों पर कितनी भी शेखी बघार लें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और होती है. जो पार्टियाँ राज्य में हासिये पर चली गईं थीं वही राष्ट्रवादी कांग्रेस अब भाजपा के घर में सेंध लगा रही है. और अपना हिसाब किताब पूरा कर रही है. एकनाथ खडसे कोई मामूली नेता नहीं है. दिवंगत गोपीनाथ मुंडे के बाद भाजपा में आक्रामक ओबीसी नेता की छवि रखने वाले एकनाथ खडसे ने भाजपा के राजनीतिक अभियांत्रिकी को गच्चा दे दिया है. उनका जाना मराठों को गले लगाने का परिणाम है.यह भाजपा का ओबीसी से दूर जाने का इशारा करता है. यह सही है भाजपा विचारों की पार्टी है उसमें जाति समीकरण का कोई स्थान नहीं है. पार्टी छोड़कर जानेवालों के बाद भी क्षणिक नुकसान के अलावा कुछ नहीं होता है. जब से महाराष्ट्र की राजनीति में एक ब्राह्मण को मुख्य मंत्री बनाया गया है तब से राज्य का जाति समीकरण हिलकोरे लेने लगा था.. मराठों और ओबीसी को लगा कि बहुजनों के होते हुए भी ब्राह्मण मुख्य मंत्री कैसे. यह पीठ चिंतन पार्टी में भी अंदरखाने चलने लगा था.
लेकिंन मराठों को ओबीसी के करीब लाने की रणनीति ने खडसे को भाजपा से दूर कर दिया. कहते हैं श्री फडणवीस की यह सोची समझी रणनीति है. लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी के अंदर के ही लोग फडणवीस की टांग खींचने लगे. परिणाम आज सामने है कि राज्य की सबसे बड़ी पार्टी सत्ता से बाहर है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राकांपा से नेताओं और विधायकों का आयात किया, गया. एकनाथ खडसे, विनोद तावड़े और चंद्रशेखर बावनकुले,प्रकाश मेहता, राज पुरोहित जैसे नेताओं को घर बैठा दिया गया..इसका परिणाम यह हुआ कि विधानसभा चुनावों में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखनेवाली भाजपा , मुख्य रूप से विदर्भ में कई सीटें हार गईं। 2014 में 122 सीटें पाने वाली भाजपा को 2019 में 105 सीटों पर ही रुकना पड़ा. कहा तो यह भी जा रहा है कि चंद्रशेखर बावनकुले को उम्मीदवारी की अस्वीकृति से तेली समुदाय में नाराजगी फैल गई और इस से बहुजन समाज-ओबीसी समुदाय में नाराजगी के कारण सीटें कम हो गईं।
1980 के दशक में भाजपा के गठन के बाद, माली, धनगर और वंजारी यानी माधव के समीकरण से ओबीसी समुदाय के आधार पर भाजपा महाराष्ट्र में राजनीति में अपना आधार बढ़ा रही थी. लेकिन भाजपा ने हाल के दिनों में लगता है यह समीकरण बदल दिया.यही कारण है कि एकनाथ खडसे को मनाने का केंद्रीय प्रयास नहीं किया गया. और दुखित होकर खड़से पार्टी छोड़ गए. चर्चा यह है कि उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस के कोटे से जल्द ही मंत्री पद दिया जायेगा.
कुछ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि एकनाथ खडसे का भाजपा से बाहर होना कोई दुर्घटना नहीं है।बल्कि यह भाजपा की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है।1985 के बाद, भाजपा जानबूझकर ओबीसी पर ध्यान केंद्रित कर रही थी। इसीलिए गोपीनाथ मुंडे को पार्टी से ताकत मिली। 2014 के चुनावों से पहले, देवेंद्र फडणवीस ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला और मुख्यमंत्री के रूप में विधानसभा चुनावों के बाद, उन्होंने जानबूझकर अपनी राजनीति के समीकरणों को बदलना शुरू कर दिया। उन्होंने ओबीसी नेताओं को मराठा परिवार के करीब लाने की कोशिश शुरू कर दी। कोल्हापुर के छत्रपति संभाजी राजे को राज्यसभा सीट दी गई। 2019 के चुनावों में, सतारा के छत्रपति उदयन राजे, राधाकृष्ण विखे-पाटिल, अकलुज के मोहित-पाटिल, इंदापुर के हर्षवर्धन पाटिल जैसे कुछ प्रमुख नामों का उल्लेख किया जा सकता है। फडणवीस ने यह राजनीति इस विचार के साथ की कि जब तक पार्टी पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में हावी नहीं होगी ,, तब तक राज्य में सत्ता हासिल कर पाना मुश्किल है.उधर खडसे को पाकर शरद पवार खेमा इसलिए प्रसन्न है कि मोदी लहर और बिहार चुनाव के शंखनाद के बीच 40 साल पुराना कार्यकर्त्ता पार्टी छोड़ गया है. राकांपा इसलिए भी खुश है कि उसके पास एक दबंग ओबीसी नेता आ गया है. इसका लाभ राष्ट्रवादी कांग्रेस को अपने विस्तार में होगा. मोदी लहर के बीच भाजपा की साख से खडसे का टूटना कोई अच्छा संकेत नहीं हो सकता
अश्विनीकुमार मिश्र
संपादक निर्भय पथिक सांध्य दैनिक