महामारी को भूल बिहार -बंगाल में भाजपा खिलाना चाहती है फूल
अमित बिश्नोई
देश इस वक्त कोरोनावायरस का सबसे प्रलंयकारी दौर देख रहा है. बीते दस दिनों से हर दिन 10 हजार से अधिक केस सामने आ रहे हैं, जबकि मरने वालों का आंकड़ा 8 हजार को पार कर चुका है. कई रिसर्च फर्म चेतावनी दे रही हैं कि भारत में कोरोना वेव लौट सकती है और हालात फिर से लॉकडाउन जैसे बन सकते हैं. हालांकि इन सबके बीच, सरकार अब इकॉनमी को पूरी तरह खोलने का मन बना चुकी है. इकॉनमी ही नहीं, बल्कि अब तो भाजपा की ओर से आगामी चुनाव की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. हाल ही में गृह मंत्री और भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार व चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने बिहार और बंगाल में वर्चुअल रैली करके इसका आगाज कर दिया गया. भले ही यह रैली वर्चुअल थी, लेकिन इसकी फीलिंग ओरिजिनल रैली से कम नहीं थी. ऐसे में विपक्ष और तमाम जानकार सवाल उठा रहे हैं कि महामारी के बीच चुनाव की तैयारी का क्या औचित्य है.
भाजपा में अमित शाह को चुनाव जीतने की गारंटी माना जाता है. वजह है उनकी रणनीतियां. वो जिस तरह तैयारियां करते हैं, बूथ लेवल तक कार्यकर्ताओं को जोड़ते हैं और विरोधियों को परास्त करने के लिए जरूरी हर तीर उनकी कमान में होता है. यही वजह है कि जब सरकार कोरोना के खिलाफ लड़ाई के सबसे अहम मोड़ पर है, तब अमित शाह ने अगले साल बिहार में होने वाले चुनावों की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. साथ ही वो बंगाल में भी सक्रिय हो गए हैं, जहां दो साल बाद चुनाव होने हैं. इसके लिए उन्होंने पूरे संगठन को कोरोना से हटकर फिर से चुनावी मोड में लाने की कवायद शुरू की है, जो बिहार की रैली के बाद सफल होती नजर आ रही है.
बिहार में शाह की वर्चुअल रैली का तरीका देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि शाह ने पूरे प्रोफेशनल तरीके से न सिर्फ खुद को बल्कि संगठन को तैयार कर दिया है. इस रैली को सफल बनाने के लिए पार्टी के सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों, प्रदेश पदाधिकारियों, जिला प्रभारियों, विधानसभा प्रभारियों और पूर्व प्रत्याशियों को जिम्मेदारी दी गई थी. वाट्सएप, फेसबुक, एसएमएस, ट्विटर, टेलीग्राम के जरिए वरिष्ठ नेता, पदाधिकारियों, जिलाध्यक्षों, मंडल अध्यक्षों के साथ ही बूथ अध्यक्षों को रैली की लिंक भेजने का काम जारी रहा. बीजेपी फॉर बिहार लाइव के माध्यम से 72 हजार बूथों के अलावा 45 जिलों के 9547 शक्ति केंद्र, 1099 मंडलों के कार्यकर्ताओं का लिंक भेजा गया.
वर्चुअल रैली के जरिए अमित शाह बिहार के 14 लाख लोगों से सीधे जुड़े. रैली को बिहार-जनसंवाद का नाम दिया गया था. इसमें हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम चार से पांच हजार लोगों को जोडऩे का लक्ष्य था. राज्य के 72 हजार बूथों पर बड़ी स्क्रीन पर अमित शाह का भाषण सुनने की तैयारी की गई थी.
कोरोना के संकट काल में अमित शाह की रैली तो वर्चुअल थी, लेकिन इसकी फीलिंग रीयल रैली के जैसी ही रही. इसके लिए दिल्ली और पटना में एक साथ दो मंच बनाए गए थे. दोनों मंचों पर प्रोटोकॉल के अनुसार ही नेता बैठे. दिल्ली के मंच पर अमित शाह के साथ बिहार के केंद्रीय स्तर के नेता थे जबकि, पटना के मंच पर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल तथा अन्य नेता थे. रैली के आरंभ में वर्चुअल स्वागत भाषण व स्वागत कार्यक्रम भी हुआ, जो ओरिजिनल रैली जैसा ही था. कुछ ऐसा ही तरीका बंगाल रैली के दौरान भी अपनाया गया और ये दोनों ही रैली काफी सफल रहीं.
रैली के लिए पटना बीजेपी कार्यालय के अटल बिहारी बाजपेयी सभागार में मंच तैयार किया गया था. वहां दो बड़े एलईडी स्क्रीन लगाए गए थे. इस पर दिल्ली से दिए लिंक पर अमित शाह और बिहार के केंद्रीय नेता जुड़े. बीजेपी ने रैली में शामिल होने के लिए सोशल मीडिया पर लिंक भी जारी किए. जिनपर क्लिक कर लोग अपने घरों से ही रैली से जुड़ गए.
कोरोना काल में अमित शाह की चुनावी रैली आलोचकों के निशाने पर है. आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव और विधान परिषद सदस्य कमर आलम ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि अमित शाह की बिहार जनसंवाद वर्चुअल रैली हवा हवाई रही. कमल आलम ने आरोप लगाते हुए कहा, बिहार के क्वारनटीन सेंटरों की हालत बहुत ही खराब है, वहां पर लोगों को खाने-पीने को नहीं मिल रहा है. कोरोना संकट के चलते बिहार के करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं और डंबल इंजन की सरकार चुनाव तैयारी में जुटी है. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन ने कहा कि अमित शाह ने वर्चुअल रैली के जरिए चुनावी अभियान की शुरूआत कर दी है. प्रवासी मजदूरों के मुद्दे से लेकर सवा लाख करोड़ के पैकेज पर वो महज सफाई ही देते रहे हैं. बिहार के असल मुद्दे का अमित शाह ने जानबूझ कर जिक्र नहीं किया है, क्योंकि इस पर बात करेंगे तो उन्हें ही जवाब देना पड़ेगा. इसीलिए वे मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते रहे.
रैली के दौरान ये खबर आई कि राज्य के 72 हजार बूथों तक पहुंचने के लिए भाजपा ने 72 हजार एलईडी स्क्रीन का इस्तेमाल किया है. बस इसे लेकर घमासान शुरू हो गया. राष्ट्रीय जनता दल नेता और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट किया. कहा कि भाजपा ने रैली के लिए 144 करोड़ रुपए केवल एलईडी पर ही खर्च कर डाले. लिखा, प्रचार के लिए एक एलईडी स्क्रीन पर औसत खर्च 20,000 रुपए. भाजपा की की रैली में 72 हजार एलईडी स्क्रीन लगाए गए, मतलब 144 करोड़ सिर्फ एलईडी स्क्रीन पर खर्च किए जा रहे हैं. श्रमिक एक्सप्रेस का किराया 600 रुपए था, वो देने ना सरकार आगे आई और न ही भाजपा. इनकी प्राथमिकता गरीब नहीं बल्कि चुनाव है. वहीं आरजेडी से राज्यसभा सांसद मनोज झा ने भी 72 हजार एलईडी के इस्तेमाल पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, 72 हजार एलईडी टीवी की जगह हजार-दो हजार मजदूरों तक राहत नहीं पहुंचाई जा सकती थी क्या? वहीं ट्विटर पर भी लोग 72 हजार एलईडी के इस्तेमाल का बहुत विरोध कर रहे हैं. दनादन ट्वीट हो रहे हैं. किसी ने लिखा कि अगर भाजपा 72 हजार एलईडी पर पैसे खर्च करने की बजाए 72 हजार बसें प्रवासी मजदूरों के लिए अरेंज कर देती, तो 600 लोगों की जान बच जाती. हालांकि बिहार भाजपा प्रेसिडेंट संजय जायसवाल ने सारी खबरों को निराधार बताया है. उनका कहना है कि कोई एलईडी नहीं खरीदी गई है. पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने घरों की एलईडी स्क्रीन को घर के बाहर लगाया था. वो कहते हैं, पूरे बिहार में एक जगह भी एलईडी किसी की तरफ से खरीद कर नहीं लगाई गई. बाकायदा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए जो भी कार्यकर्ता अपने घर के बाहर अपने घर का टेलीविजन लगा सकता था, लगाया. वहां पर 25 लोगों ने देखा है. बीजेपी का हर कार्यकर्ता इस कार्यक्रम से जुड़ा हुआ था. हमारे तो 99 फीसदी कार्यक्रम यूट्यूब और बीजेपी बिहार के माध्यम से हुए हैं. 22 लाख से ज्यादा लोग सीधे फेसबुक से जुड़े थे.