(स्मृति शेष) -भीखाजी कामा : प्रथम राष्ट्रीय ध्वज निर्मात्री
दीवान सुशील पुरी
मैडम भीखाजी कामा जी का जन्म 24 सितंबर,1861 में नवसारी बम्बई अब मुंबई के पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम श्री भीखाजी रुस्तम था। वह बड़े व्यापारी थे और पारसी समुदाय में काफी प्रसिद्ध थे। मैडम कामा जी की शादी श्री के आर कामा जी के साथ हुई , जो कि धनी व्यापारी थे। लेकिन उनकी अपने पति से कभी नहीं बनी, दोनों शादी से खुश नहीं थे । के आर कामा जी अंग्रेजों के समर्थन में थे , जबकि मैडम कामा जी भारत वर्ष की आजादी के समर्थन में थी।
1902 में मैडम कामा की तबीयत खराब हो गई और इलाज के लिए उन्हें यूरोप जाना पड़ा ,उसी दौरान वह “संस्था ऑफ इंडियन होमरूल”(डिपेंडेंट कंट्री )के नेताओं विनायक दामोदर सावरकर,श्याम जी, कृष्ण वर्मा,एस रावल भाई राणा , वीरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय और बी एस अय्यर जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आई और उनके साथ मिलकर देश की आजादी के लिए काम करने लगी।
लॉर्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल का बंटवारा कर दिया और बंग-बंग के खिलाफ जुझारू आंदोलन शुरू हो गया। ब्रिटिश शासकों ने कई लोगों को गोली से उड़ा दिया। इसका असर मैडम भीखाजी कामा पर पड़ा और विदेश में जो भारतीय क्रांतिकारी थे ,उनके साथ मिलकर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा की।
22 अगस्त,1907 में जर्मनी के स्टटगार्ड नगर में ‘इंटरनेशनल सोशलिस्ट’ कॉन्फ्रेंस हो रहा था,उस में आने का निमंत्रण मैडम कामा जी को भी मिला था। इस सम्मेलन में मैडम भीखाजी कामा ने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया और बड़ा मार्मिक भाषण दिया। अपने भाषण के दौरान मैडम कामा जी ने राष्ट्रीय झंडे को फहराया और कहा कि – “यह भारतीय राष्ट्र का झंडा है, यह भारतीय देशभक्तों के रक्त से पवित्र हो चुका है। “
झंडा हरे,पीले और लाल रंग का था, जिसके बीच में ‘वंदे मातरम’ लिखा हुआ था। ऊपर के पट्टी में 8 कमल बने थे और नीचे की पट्टी में सूर्य और अर्धचंद्र बने थे। यह पहला अवसर था जब भारत के तिरंगे झंडे को फहराया गया था। उस समय मैडम कामा जी ने कहा कि यह भारतीय राष्ट् का झंडा है,आप लोग खड़े होकर इसका अभिवादन करें। इस सम्मेलन के बाद मैडम कामा जी ने नियम बना लिया कि वह जहां भी भाषण करने जाती थी, तिरंगे झंडे को अवश्य फहराया करती थी। यह भारत का पहला झंडा था।
इसके बाद कई झंडे बने, आखिर में आंध्र प्रदेश के ” इंडियन फ्रीडम फाइटर ” श्री पिंगले वेंकैया ने झंडे का नया रूप दिया , जो 22 जुलाई,1947 को अपनाया गया। भारत का प्रथम तिरंगा ध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदार सिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजू भाई राणा जी के घर सुरक्षित रखा गया है। मैडम भीखाजी कामा द्वारा लहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मो की भावनाओं और संस्कृति को समेटा था। उसमें इस्लाम, हिंदू, बौद्ध मत को प्रदर्शित किया था। झंडे में हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था, बीच में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था।
1909 में लंदन में भारतीय क्रांतिकारियों पर उत्पीड़न बहुत बढ़ गया जिससे भीखाजी कामा को पेरिस को केंद्र बनाना पड़ा। मैडम कामा के साथ लाला हरदयाल, श्याम जी, कृष्ण वर्मा, एस रावल भाई राणा, वीरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय और बी एसअय्यर जी से मिलकर काम करना शुरू किया। इन लोगों ने फ्रांस के समाजवादी क्रांतिकारियों से रिश्ते बनाये । विशेष रुप से रूस के सोशल डेमोक्रेट व आयरलैंड के स्वाधीनता सेनानी के साथ मोर्चा कायम किया। पेरिस के इस संगठन ने “बंदे मातरम” शीर्षक से एक पत्र का प्रकाशन किया मैडम भीकाजी कामा और श्री एस रावल भाई राणा शामिल थे।
ब्रिटिश सरकार ने मैडम भीखाजी कामा के पत्रों के भारत आने पर रोक लगा दी, उसकी बड़ी छानबीन की जाती थी। फिर भी कामा जी का पार्सल और चिट्ठियां भारत पहुंचती रही। ब्रिटिश सरकार ने कामा जी को फरार घोषित करके उनकी एक लाख की संपत्ति जब्त कर ली।
प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने पर फ्रांसीसी सरकार भी क्रांतिकारियों के पीछे पड़ गई थी, जिससे क्रांतिकारियों का बिखराव हो गया और मैडम कामा जी और एस आर राणा को पेरिस में नजरबंद कर दिया गया था। पेरिस में नजरबंद रहते हुए भी कामा जी ने क्रांतिकारियों से अपना संबंध स्थापित किया। समाजवाद की प्रेरणा उन्होंने रूसी क्रांति से ली थी।
कठिन परिश्रम और आर्थिक संकटों का परिणाम यह हुआ कि उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। वह बहुत बीमार हो गई ,उनकी बीमारी ने भारत के नेताओं को चिंतित कर दिया। उन्हें भारत आने की अनुमति देने के लिए फ्रांसीसी सरकार पर दबाव डाला गया।
आखिरकार 1936 में उनको भारत लौटने की अनुमति मिल गई, और कुछ दिनों बाद 74 वर्ष की आयु में उसी वर्ष 13 अगस्त,1936 को मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में उनका निधन हो गया।
देश की सेविका और राष्ट्रीय ध्वज की सजग वीरांगना मैडम भीखाजी कामा को कभी भूला नहीं जा सकता। उनके हृदय में भारत को आजाद कराने का जज्बा बचपन से ही था। उनके विचार बड़े क्रन्तिकारी थे। मैडम कामा जी को भारतीय क्रांति की जननी और भारत की वीर पुत्री भी कहा जाता था। जिन्होंने विदेशों में रहकर भारत की आजादी की अलख जगाई। “
-दीवान सुशील पुरी -उपाध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष-‘‘शहीद स्मृति समारोह समिति’’-निवास – बी -13 सेक्टर – सी -एल.डी.ए.कॉलोनी
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