अरफा का अजीम दिन
मोहम्मद आरिफ नगरामी
काबतुल्लाह शरीफ की छोटी सी चौकोर इमारत पहाडों के दामन में थी लेकिन चन्दं मीटर ऊंची यह इमारत अपने जलाल में आसमान की बलंदियों को छूती नजर आती थी। पहाड बहर हाल हमारी नजरों में बेजान पत्थरों की चट्टान थे । अब इन पहाडों को काट कर ऊंचे होटलों, फलकबोस इमारतों, से घेर दिया गया है। इन होटलों में आराम व राहत के सारे वेसाएल मौजूद हैं जिससे इन में रहने वालों को आराम तो मिलता है लेकिन दिल के धडकनों के तार मुख्तसर इमारत से ही जुडे रहते हैं। इन ऊंची इमारतों और आराम व राहत के साजो सामान से इस में कोई फर्क नहंी आता। दुनिया के बडे बडे मुल्क और शहर अदना तरक्की और जेब व जीनत में ख्वाह कितने ही कमाल को पहुंच गये हों लेकिन एक बंदाये मोमिन को हरमैन शरीफैन मक्का और मदीना में जो जलाल नजर आता है वह उसको कहीं भी नजर नहीं आता है। इस लिए अपने मुल्क से दूसरे किसी मुल्क में जाने वाले के दिल में वह शौक वारफतगी, जज्ब व सरमस्ती नहंी पैदा होती जो हरमैन शरीफैन जाने वालों के दिलनों में बेदार होती है। कारेईनकेराम इस्लामी तकवीम का यह महीना जिल्हिज्जा हे जिसकी बहुत फजीलत बयान की गयी है और इस मुबारम जिल्हिज्जा महीने की तो तारीख वह अजीमुश्शन और बरकत तारीख है जिस दिन फरजंदाने तौहीद अरफात के मैदन में जमा होकर हज का रकुन आजम यौम अरफा पूरा करते हैं। यौमे अरफा के दिन अल्लाह तआला इनत माम आजिमीने हज के हज को कुबूल करते हैं जो दुनिया के गोशे गोशे से सिर्फ अल्लाह की खुशनवूदी और रजा के लिये एहराम की हालत में लबबैक लबबैक का नारा बलंद करते हैं। मैदाने अरफात पहुंचते है।
कल भी सऊदी अरब मेें जिल्हिज्जा की 9 तारीख यानी यौमे अरफा है, कल इन्शाअल्लाह एक बार फिर वहीं होगा जो हमेशा होता रहा। आजिमी ने हज कल सुबह से ही मिना से अरफात पहुंचना शुरू हो जायेंगेें और शाम होते होते वह आजिमीने हज से हाजी हो जायेंगेें। इन्शाअल्लाह कल अरफात के मैदान में हाजिरी देने वाले तमाम आजिमीने हज को अल्लाह तआला माफ फरमा देगा। अरफात में आजिमीने हज को ऐसी इबादत का शर्फ हासिल होगा जिसको अदा करने से वह गुनाहों से इस तरह पाक हो जायेंगेें जैसे पेट से बेगुनाह इस दुनिया में आये थे। हज में हज की रूहानियत व नूरानियत के माहौल मेें सख्त से सख्त दिल भी मोम व पत्थर जैसे जिगर भी पानी हो जाते हैं। बागी और नाफरमान भी तौबा व इनाबत की तरफ मायेल होने लगते हैं। वह आंखें जिससे खौफ या मोहोब्बत के दो कतरे भी टपके थे, यहां पहुंचय कर आखें अश्कबार हो जाती हैं। रहमते इलाही का नुजूल होता है शैतान को मुंह छिपाने की जगह भी नहीं मिलती। रसूले करीम सल0 ने फरमाया कि शैतान अरफा के दिन से ज्यादा हकीर व जलील रादये दरगाह और गुस्से से जला भुना हुआ कभी नहीं देखा गया। इसलिए कि वह देखता है कि रहमते इलाही नाजिल हो रही है और अल्लाह तआला बडे बडे गुनाहों को माफ कर रहा है। कितने खुशनसीब हैं वह हजरात जिसको कल हज की सआदत नसीब होगी और वह इन फजाएल व मनाकिब से नवाजे जायेंगेें जिनका उपर हम जिक्र कर चुके हैं । कितने खूशनसीब हैं वह हजरात जिनको उस काबा के तवाफ का शर्फ हासिल होगा जिसकी तरफ रूख करके हम नमाजें अदा करते हैं, उनको सआदत नसीब होगी। सफा व मरवा के दरमियान सई की जो नकल है उस मां की जिसने आका के हुक्म की तामील में इस वीराने में जहां आदम न आदमजाद और शीरख्वार बच्चे के साथ रहना गवारा किया और उसके लिए पानी की तलाश में बेताबाना दोनों पहाडों के दरमियान दौडी दौडी और चढ चढ कर झांका और देखा कि शायद कोई काफिला गंुजरता नजर आये और पानी मिल जाये, कितना सख्त था यह इम्तेहान कि जब हजरत इब्राहीम को अपनी अहेलिया ओैर दूध पीते बच्चे इस्माईल को इस सुनसान ओैर चटियल वादी में तन्हा छोड कर शाम जाने का हुक्म मिला।अल्लहो अकबर! ना दाना ना पानी। ना फल न फ्रूट और न सब्जा और न हरियाली।
हजरत इब्राहीम अलै0 को कुदरती हुसन व जमाल से मालामाल सरसब्ज व शादाब मुल्क छोड कर यहां आने का हुक्म मिला था और नन्हें इस्माईल को इसी वीराने मेें बेसहारा छोड कर चले जाने का हुक्म मिला। तामीले हुक्म फरमाई। हजरत हाजरा अलै0 ने भी मालिक के हुक्म पर उसी के भरोसे यहां रहने को कुबूल कर लिया लेकिन इस आलमे असबाब में पानी की फिक्र मेें सफा व मरवा के बक्कर लगाये और नबी की बीवी और नबी की मां होने के बावजूद जाहिरी असबाब ओैर सई व तदबीर को ईमान व तवक्कुंल के खिलाफ नहीं समझा। वह परेशान जरूर थीं लेकिन नाउम्मीदी के बेगैर खुदा पर पूरा भरोसा रखती थीं। अल्लाह तआला ने इस मजबूर की सई को केयामत तक के हाजियों के लिये ऐसा बना दिया कि सई के बेगैर हज मुकम्म्ल ही नहीं हो सकता है।
अल्लाह के घर के मेहमान आज मीना में हैं कल इन्शाअल्लाह अरफात जायेंगें। कुर्बानी भी करेंगेें। रमी जमार भी करेंगेें। अरफा का दिन वह दिन है कि शैतान इस दिन से ज्यादा कभी जलील नहीं होता है। अरफा के दिन सबसे नीचे के आसमान से उतर कर फरिश्तो ंसे फख्र के तौर पर फरमाते, कि मेरे बन्दों को देखों कि मेरे पास ऐसी हालत में आये है कि सर के बाल बिखरे हुये हैं, सफर के सबब बदन और कपडे पर गुबार पडा हुआ है, लब्बैक लब्बैक का शोर है। यह बंदे दूर से आ रहे हैं, तुम्हें गवाह बनाता हॅू कि मैंने इनके गुनाह माफ फरमा दिये। फरिश्ते अर्ज करते हैं कि ऐ अल्लाह तआला फलां शख्स को बहुत गुनहगार है, और फलां मर्द और औरत के गुनाह तो बहुत है।, अल्लाह तआला जवाब मकें फरमाते हैं कि मैंने सबकी मगफिरत कर दी। रसूले करीम सल0 फरमाते हैं कि यौमे अरफा से ज्यादा किसी दिन लोग जहन्नम की आग से आजाद नहीं हुये।
एक हदीस में तो यहां तक जिक्र है कि अल्लाह तआला फरमाते हैं कि मेरे बूँदें बिखरे हुये बालों के साथ मेरे पास आये हैं, मेरी रहमत के उम्मीदवार हैं, इसके बाद बंदों से फर माते है कि अगर तुम्हारे गुनाह रेत के जर्रो के बराबर हैं, आसमान की बारिश के कतरों के बराबर हैं और तमाम दुनिया के दरख्तों के बराबर हैं तब भी बख्श दिये जयेंगेें और बख्शे बख्शाये अपने घर चले जाओ।
एक रवायत में है कि रसूले करीम सल0 ने अरफा की शाम को अरफात के मैदान में उम्मत की मगफिरत की दुआ मांगी और बहत देर तक दुआ मांगते रहे। रहमते इलाही जोश में आयी ओर अल्लाह तआला का इरशाद हुआ कि हमने तुम्हारी दुआ कुबूल कर ली और वह गुनाह जो बंदों ने किये हैं वह माफ कर दिये लेकिन जिसने किसी पर ुजल्म किया उसका बदला लिया जायेगा। रसूलुल्लाह सल0 ने फिर दरख्वास्त की और बार बार दरख्वास्त करते रहे कि ऐ अल्लाह तू उस पर कादिर है कि मजलूम के जुल्म का बदला तू अता फरमा दे और जालिम के कुसूर को माफ फरमा दे और मुजदलफ की सुबह को अल्लाह ताअला ने यह दुआ भी कुबल फरमा ली। इस वक्त हमारे आकाये नामदार, मुस्कुराये तो साहबे केराम ने अर्ज किया कि आपने दुआ के दरमियान तबस्सुम फरमाया। तो रसूले करीम सल0 ने फरमाया कि जब अल्लाह तआला ने मेरी दुआ को कुबूल फरमाया और शैतान को इसका पता चला तो चीखने और चिल्लाने लगा और अपने सर पर मिट्टी डालने लगा।
जिन हाजियों को अल्लाह तआला कल यानी अरफा के दिन इस तरह नवाजेगा कि जैसे आज ही पैदा हुआ हो। मालिक की इस नवाजिश का तकाजा यह है कि अब जिन्दिगी र्कुआन और हदीस की ही रोशनी में गुजारे। अल्लाह तआला ने शैतान को केयामत तक की मुहलत दी है। यह अरफात में जलील व रूस्वा हुये और सर पीटने के बाद भी चैन से नहीं बैठेगा।उ इसलिए रसूले करीम सल0 ने फरमाया कि जैसे दौराने हज एक दूसरे की जान माल और इज्जत आबरू उन पर हराम है ऐसे ही पूरी जिन्दिगी हराम है और जिन्दिगी के झमेलों में तुझे बहुत सम्भल कर कदम रखना है कि मुबादा शैतान समझाते ओैर गुनाह कराते कि तोबा कर लेना फिर हज कर लेना।