“कैंसर दिवस” पर इरम यूनानी मेडिकल कॉलेज में जागरूकता कार्यक्रम
लखनऊ
आज संपूर्ण देश में ” राष्ट्रीय कैंसर जागरुकता दिवस” मनाया जा रहा है, जनमानस को इस घातक एवं मानव जीवन को संकट में डालने वाले रोग के संबंध में जागरूक करने हेतु भिन्न भिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
“चिकित्सकीय अनुसंधान एवं प्रयोगों से अभी तक इस रोग का उपचारात्मक उपचार खोजने में कुछ हद तक सफ़लता प्राप्त हुई है किंतु उक्त रोग की कुछ जटिल अवस्थाओं को उपचारित करना अभी भी चिकित्सा विज्ञान के लिए चैलेंज बना हुआ है, ऐसी दशा में जनमानस को कैंसर जैसे जानलेवा रोग के खतरों एवं आशंकाओं के प्रति सचेत तथा जागरुक करना एवं यथा संभव प्राथमिक अवस्था में ही इस बीमारी का पता लगाकर उपचार करना अति आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है।”
उपरोक्त विचार इरम यूनानी मेडिकल कॉलेज के हकीम मुहम्मद अजमल खां सेमिनार हॉल में अपराह्न: 02 बजे “कैंसर दिवस” के अवसर पर संयुक्त रूप से “कैंसर एवं डायबिटीज़ रोग” विषय पर मोआलजात संकाय के तत्वाधान एवं संकायाध्यक्ष प्रोo मोहम्मद आरिफ़ इस्लाही, डॉक्टर शाहिद सुहैल एवं डॉक्टर तारिक़ सिद्दीक़ी के मार्गदर्शन में बीयूएमएस बैच 2018 (अंतिम वर्ष) के छात्र-छात्राओं द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर अब्दुल हलीम क़ासमी ने व्यक्त किए, उन्हों ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में वर्तमान में लग भग हर परिवार में शर्करा रोग (डायबिटीज़) के बढ़ते खतरों पर भी प्रकाश डाला। उन्हों ने चिकित्सा विज्ञान की ओर से उक्त बीमारियों का उपचार खोजने हेतु चल रहे निरंतर प्रयासों की सराहना की।
कार्यक्रम में विभाग के प्रोफ़ेसर मुहम्मद आरिफ़ इस्लाही के अलावा कॉलेज के सभी शिक्षक, बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एवं अन्य कर्मचारीयों ने भाग लिया। कार्यक्रम में उक्त बैच के छात्रों के अतिरिक्त प्रोफ़ेसर मुहम्मद आरिफ़ इस्लाही (अध्यक्ष मोआलजात संकाय) एवं डॉक्टर तारिक़ सिद्दीक़ी ने संयुक्त रूप से बीमारी “कैंसर एवं डायबिटीज़” के संबंध में विस्तृत चर्चा की, जो वैश्विक स्तर पर मानव जाति के जीवन और स्वास्थ्य के लिए ख़तरा है। उन्होंने प्राचीन एवं आधुनिक चिकित्सा सिद्धांतों के प्रकाश में कैंसर के अलग अलग प्रकार, बचाव, उपचार तथा इसके बारे में सुरक्षात्मक उपाय, जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव एवं जन जागरूकता की योजना पर बहुत महत्वपूर्ण और विस्तृत जानकारी दी।
कार्यक्रम का समापन प्रोफ़ेसर मुहम्मद आरिफ़ इस्लाही के शोधात्मक एवं प्रयोगात्मक टिप्पणियों के साथ हुआ।