“अवध के दुलारे बाबू जी लालजी टंडन”
साधक राज कुमार
लखनऊ के सोंधी टोला पिछले साल से सबकुछ होने के बाद भी सुना सुना लगता है। राजनीति क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को बाबू जी की कमी खलती रहती है। आज़ादी के बाद भारतीय राजनीति में जनसंघ का उदय हुआ। उसी समय से लखनऊ की राजनीति में एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में टण्डन जी का नगर निगम पार्षद के रूप में राजनीति में प्रवेश होता है । उनके राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव आए। बाबू जी संघ के बाल स्वयंसेवक थे संघ परिवार में पालक के रूप में हमेशा उनकी भूमिका रही।उनके पं दीनदयाल उपाध्याय जी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से बहुत आत्मीय संबंध रहे । इसके साथ लखनऊ सहित प्रदेश के असँख्य कार्यकर्ता बाबू जी को मित्र, अविभावक, पालक सभी मानते थे। इंदिरा जी का चाहें आपातकाल हो या मुलायमसिंह यादव जी का कोपभाजन रामजन्मभूमि आंदोलन सभी प्रकार की विकट परिस्थितियों में टण्डन जी अटल पर्वत जैसे संगठन कार्यकर्ताओ के साथ खड़े रहे।
इधर के दो दशकों से बाबू जी शाम के तीन बजे के आस पास 9 विधानसभा मार्ग कैम्प कार्यालय पहुँच जाते थे। लखनवी अंदाज में मसनद के सहारे अधलेटे सबकी कुशल क्षेम लेते रहते थे।किसी कार्यकर्ता के लिये कोई रोक टोक नही रहता था। कमरा कार्यकर्ताओं से भरा रहता था सबके साथ,सबके सामने ही सबकी बातें, समस्या समाधान होता रहता था। उसी में कोई कान में अपनी बात कह रहा ,उसी में कोई सम्मान स्नेह में पैर भी दबाने लगता था। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी एक साथ जुटते जिसमे “सबका साथ,सबका विकास,सबका विश्वास ” झलकता था।इनके व्यवहार के कारण स्व.पं. विद्यानिवास मिश्र जी लिखते है कि राजनेताओं पर लिखना खाड़े की धार पर चलने के समान है।किसी के सद्प्रयासो की चर्चा को भी लोग चाटुकारिता मान बैठते है,जबकि अच्छे कार्यो की प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए। यह एक सामाजिक दायित्व है। टण्डन जी के अंदर एक पत्रकार का भी मन छिपा था। भाजपा के मुखपत्र वर्तमान कमलज्योति के वो संस्थापक संपादक भी रहे। अटल जी के अतिनिकट का सम्बंध रहा।जब 1952, 1957 और 1962 तक लगातार तीन चुनाव में हार मिली तो अटल जी का दिल लखनऊ से टूट गया था। 1991 में उन्होंने यहां से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। जब लालजी टंजन ने वजह पूछी तो उन्होंने हंसते हुए कहा था कि अभी भी कुछ बताने को बचा है क्या? टंडन जी ने उन्हें चुनाव लड़ने की संगठन की बात बताई और इसके साथ ही उन्हें भरोसा दिया कि लखनऊ अब उनके साथ है। वह सिर्फ नामांकन भरने के लिए आएं, बाकी चुनाव हम पर छोड़ दें। अटल जी तैयार हो गए और इस चुनाव में विजयश्री मिली।
लालजी टंडन का जन्म 12 अप्रैल, 1935 में सोंधी टोला,चौक पुराने लखनऊ में हुआ था। शिशु स्वयंसेवक लालजी टंडन संघ से जुड़ गए थे। उन्होंने स्नातक कालीचरण डिग्री कॉलेज लखनऊ से किया। 26 फरवरी शादी 1958 में कृष्णा टंडन के साथ पाणिग्रहण संस्कार हुआ। टंडन जी के तीन पुत्र हैं, बड़े बेटा गोपालजी टंडन वर्तमान सरकार में मंत्री है।
बाबू जी का राजनीतिक करियर 1960 से शुरू वह दो बार सभासद चुने गए। दो बार विधान परिषद के सदस्य बने। 1974 का इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ आपातकाल जेपी आंदोलन में सक्रियता से उनके राजनीतिक सफर को उड़ान मिली।
मायावती से भी करीबी रिश्ते
90 के दशक में उत्तर प्रदेश में बनी भाजपा और बसपा की सरकार में उनका अहम भूमिका थी। मायावती लालजी टंडन को राखी बांधती थीं । 1978 से 1984 तक और फिर 1990 से 96 तक लालजी टंडन दो बार यूपी विधानपरिषद के सदस्य रहे। 1991 में वह यूपी के मंत्री पद पर भी रहे।अटल जी के बाद लखनऊ की सीट से वे सांसद बने, उनके बाद लखनऊ सीट से वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी लखनऊ का प्रतिनिधित्व कर रहे है। आज लखनऊ का समग्र विकास दिख रहा है इसके शिल्पकार टण्डन जी को माना जाता है जिसे आज राजनाथसिंह जी सँवार रहे है।
2018 में उन्हें उन्हें बिहार का राज्यपाल और फिर बाद में मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। 21 जुलाई टण्डन जी की पुण्यतिथि है। वर्तमान में भाजपा की सरकार है पर उनकी याद में लखनऊ की हृदयस्थली हजरतगंज में उनकी प्रतिमा स्थापित कर उनको श्रधांजलि देने वाली है ,जिसमे मा. राजनाथसिंह मा. योगी जी शामिल होने वाले है। यह एक सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता को जो लखनऊ की विकिपीडिया माने जाते थे को सच्ची श्रधांजलि होगी ।