दवा खिलाए बिना देहरी नहीं छोड़ती आशा कार्यकर्ता अंजूरानी
फाइलेरिया उन्मूलन अभियान में निभा रही हैं अहम भूमिका
हमीरपुर:
नाम अंजूरानी, पेशा आशा कार्यकर्ता। शहर के वार्ड नं.17 खजांची मोहल्ले में बतौर आशा कार्यकर्ता अपनी सेवाएं दे रही हैं। रोज सुबह सूरज से पहले उठ जाती हैं। घर के कामकाज निपटाती हैं और 10 बजते-बजते हाथ में झोला और फाइल लेकर निकल पड़ती हैं, एक-एक घर दस्तक देने। बीमारों का हालचाल लेना, स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देना, गर्भवती को प्रसव पूर्व जांच कराने को तैयार करने जैसी कामकाज करते-करते कब शाम हो जाती है, पता नहीं चलता। फाइलेरिया अभियान में जब तक लोग दवा नहीं खाते, तब तक वह देहरी नहीं छोड़ती हैं।
अंजूरानी बताती हैं कि अभी फाइलेरिया उन्मूलन अभियान चल रहा है। वार्ड में कुल 158 घरों की जिम्मेदारी उनके ऊपर है। 10 फरवरी से रोज सुबह निकल जाती हैं। एक-एक घर में दस्तक देती हैं। किसी को दवा देकर नहीं लौटती, बल्कि अपनी मौजूदगी में अपने सामने जब तक लोग दवा नहीं खाते, वह दरवाजा नहीं छोड़ती। उन्होंने बताया कि अभी उनके वार्ड में एक-दो परिवार ऐसे हैं, जो दवा को लेकर शंका व्यक्त कर रहे हैं और अभी तक दवा का सेवन नहीं किया है। जबकि ऐसे आधा दर्जन परिवार जो दवा खाने को तैयार नहीं थे, उन्हें उन्होंने फाइलेरिया की गंभीरता से रूबरू कराकर दवा खाने को राजी कर लिया है। वार्ड में फाइलेरिया ग्रसित इकलौते मरीज की गतवर्ष वृद्धावस्था की वजह से निधन हो गया। वार्ड में एक भी फाइलेरिया ग्रसित मरीज नहीं है। एक महिला को दवा खाने की वजह से कुछ उलझन हुई थी, तब उन्होंने उसे समझाया था कि उसके शरीर में फाइलेरिया का परजीवी था, दवा खाने की वजह से जब उस पर असर हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप बुखार आया। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या कम थी, जिन्हें दवा खाने के बाद से दिक्कत महसूस हुई।
प्रसव पूर्व जांचें और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए करती हैं जागरूक
स्वास्थ्य कार्यक्रमों के अलावा अगर किसी गर्भवती को कभी भी कोई दिक्कत महसूस होती है तो वह उनकी मदद को निकल पड़ती हैं। प्रसव पूर्व जांचें कराना, किशोरियों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, अन्नप्राशन, गोद भराई जैसे कार्यक्रम भी उनके केंद्र में होते रहते हैं।
कोरोना संक्रमण में परदेसियों की करती रही निगरानी
कोरोना संक्रमणकाल की याद करते हुए अंजूरानी बताती हैं कि उनके वार्ड के बहुत से लोग दिल्ली, मुंबई और गुजरात में मजदूरी करते हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान ऐसे लोगों की जब वापसी हुई तब उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। बाहर से आने वालों को पंद्रह-पंद्रह दिन तक अपने परिवार से दूर रहने को लेकर प्रेरित किया। लोगों ने बात मानी तो संक्रमण के केस भी कम हुए।