25 वर्ष की उम्र की बाद भी आश्रितों के इलाज से इंकार नहीं कर सकती सेना :आर्मी कोर्ट
सैनिकों के पच्चीस वर्ष से अधिक के आश्रितों का इलाज करायेंगी सेना :विजय कुमार पाण्डेय
लखनऊ: देश की सरहदों पर दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम करने के लिये सीना तानकर खड़े हमारे जांबाज़ सैनिकों के लिये उत्तर प्रदेश की राजधानी में स्थापित सशत्र बल अधिकरण(सेना कोर्ट) बड़ी राहत देते हुये एक फैसला किया है कि सैनिकों के 25 वर्ष की उम्र की बाद भी आश्रितों के इलाज से इंकार सेना नहीं कर सकती है। बताते चलें कि अब तक सैनिकों के आश्रितों का इलाज करने की सीमा पन्द्रह वर्ष निर्धारित थी।
सेना कोर्ट के इस फैसले के सम्बन्ध में एएफटी बार एसोसिएशन के प्रवक्ता व वरिष्ठ अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि रायबरेली निवासी सेवानिवृत्त हवलदार अवधेश कुमार के 29 वर्षीय पुत्र अरविंद की दोनों किडनी फेल हो गई है। जिसका इलाज सेना द्वारा अप्रैल, 2019 में यह कहते हुुये बंद कर दिया गया यह बीमारी “विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016” की लिस्ट में नहीं है और आश्रित की उम्र भी 25 वर्ष से ऊपर है। पीड़ित के अधिवक्ता पंकज कुमार शुक्ला ने सेना कोर्ट के समक्ष रक्षा-मंत्रालय के पत्र दिनांक 5 दिसंबर, 2017 के पैरा 7 का हवाला देते हुए कहा कि 40 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांग हैं, उनके इलाज के मामले में 25 वर्ष की उम्र और शादीशुदा होना बेमानी है, जबकि याची का पुत्र 80 फीसदी विकलांग है। इसलिए सेना का इलाज से इंकार करना गैरकानूनी है, जिसे स्वीकार करते हुए सेना कोर्ट के न्यायाधीश यूसी श्रीवास्तव और वाईस एडमिरल एआर कर्वे की पीठ ने सेना को इलाज करने का आदेश जार्री किया। सेना द्वारा यह कहना कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की लिस्ट में किडनी की बीमारी नहीं आती विधि-विरुद्ध है क्योंकि, पीड़ित के पुत्र का डायलिसिस वर्ष 2015 से हो रहा था, उस पर यह अधिनियम लागू नहीं होता, यह निर्णय देकर पीठ ने सैनिकों और उनके आश्रितों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिंक परेशानियों से भी निजात दिलाने का रास्ता खोल दिया। जिसका लाभ भविष्य में अन्य सैनिक के आश्रित भी उठा सकेंगे l